रंगों का आध्यात्म
होली पर्व पर विशेष
रंगों का आध्यात्म
@मानव
होली पर्व पर
हमारे उल्लास को
रंग ही प्रकट करते हैं
जिनकी अपनी भाषा है।
हम अपनी बातें,
भावनाएं,
विचार,
कर्म,
व आनन्द को
अपनी चेतना के
प्रेम,
करुणा,
भक्ति,
ज्ञान,
और वैराग्य से सजा पाएं
यह सब रंग बिना असंभव है।
अत: होली रंगों का पर्व है।
रंगो के साथ
हमारी चेतना का
बहुत गहरा संबंध है।
हर व्यक्ति के आभामण्डल का
सीधा संबंध
हमारे विचार,
आचरण,
चरित्र,
रहन-सहन
और अध्यात्म से होता है
जो हमारा वास्तविक संबंध है;
हर रंग की विशेषता है,
स्वभाव व चरित्र है,
इन रंगों के साथ
हमारे प्रतिबिम्बित रंग
हमारे प्रतिनिधि बन जाते हैं।
लाल रंग जीवंतता का प्रतीक है
जो प्राचुर्यता का भाव है,
जो बिना बोले
स्व आस्तित्व से अवगत कराता है,
इस जीवंतता में कृपा,
करुणा,
मातृत्व के भाव की
प्रचुरता पाई जाती है,
यह शक्ति उपासना का भी प्रतीक है।
भगवान कृष्ण नीलवर्ण हैं,
शिव नीलकंठ हैं,
नीले रंग से व्यापकता,
समावेशिता जैसे भाव आते हैं,
आकाश व सागर की तरह;
आकाश से अधिक व्यापक
सागर से गहरा
कुछ भी नहीं है।
नीलांबरा धरो राधा
पीताबंरा धरो हरिः,
जीवन निधने नित्यम्
राधाकृष्ण गतिर्मम ।
जहाँ पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण
और नीलांबर धारिणी श्री राधा
श्री युगल सरकार मिलें
वहाँ हरीतिमा खिल जाती है।
यानी कलाकार की तूलिका द्वारा
नील व पीत रंगो के मिश्रण से
हरे रंग का सृजन
सपूर्ण हरी प्रकृति में
राधा-कृष्ण के मिलन का
स्वरूप प्रतीत होता है ।
धर्म पथ पर अग्रसर
आध्यात्म-पथिक के
आभा मंडल से
प्रतिबिम्बित रंग से,
आध्यात्मिक ज्ञान पूरक
आज्ञा चक्र पर
ध्यानस्थ की आभा का रंग
नारंगी हो जाता है
जो सूर्योदय का प्रतीक है।
इससे नित्य नया प्रकाश
प्रवेश करता है।
जब धर्म पथिक शांत,
पवित्र भाव से पूरित हो जाता है,
आभा मण्डल श्वेत हो जाता है।
वैराग्य से तात्पर्य
रंगों के पार
अर्थात पारदर्शी होता है।
जो निष्यक्ष है,
पूर्ण है,
संपूर्ण निजता में है,
यही वास्तविक,
आध्यात्मिक होली है।
~मनोज श्रीवास्तव
आज्ञा चक्र -भौहों के बीच माथे के केन्द्र में स्थित प्राणिक प्रणाली का हिस्सा जिसका आभास ध्यान करते समय होता है, जिसके जागरण से मनुष्य के अंदर सभी शक्तियाँ जाग पड़ती हैं और मनुष्य एक सिद्धपुरुष बन जाता है।इसके पवित्र हिस्से के प्रति श्रद्धा दिखाने के लिए ही तिलक लगाया जाता है।
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