महावीर

 महावीर जयन्ती पर विशेष

महावीर



      @मानव

वस्तुओं को, 

संसार को 

रागी मन पकड़ता है;

जबकि विरागी

उन्हें ही छोड़ने लगता है; 

जिसे हम छोड़ रहे हैं

उसके प्रति कोई आशा-तृष्णा 

हममें शेष न रहे,

जो इनके पार की बात करे,

राग और विराग

भविष्य बन जाएं;

जो शीत-उष्ण ही नहीं 

हर प्रकार की

अनुकूलता व प्रतिकूलता को 

सह सके,

जिसका जीवन 

समता, 

अपरिग्रह, 

ब्रह्मचर्य, 

अचौर्य

और सत्य से परिपूर्ण हो,

वही "महावीर" है। 


जिनका प्राथमिक धर्म

मानवता है,

जो सम्पूर्ण विश्व के 

शांतिमयता की कामना करते हैं

जो छोटे बडे जीव को

अपनी ही तरह मानते हैं, 

वे भी आत्मास्वरूप हैं, 

प्राणियों के समत्व की 

यह अनुभूति ही 

व्यक्ति का आदर्श है। 


जग मुक्ति पर जो बचता है

वही सार है असार का; 

सार- असार भेद का ज्ञाता ही

शत्रु-मित्र,

अपना-पराया से 

पार चला जाता है;

वही द्वंद्वातीत होकर 

"महावीर" बन जाता है ।


"मैं"शरीर का बोध है ,

शरीर बृहद सिंधु तरंग की 

एक बूँद भर है,

इसी भान से 

मन जलनिधि हो जाता है, 

राग-विराग के किनारे

निमग्न हो जाते हैं,

और वीतराग तत्व 

खिल उठता है 

इस तरह "मैं" का विसर्जन

महावीर में समष्टि का 

एकमेव सूत्र है।


 ~मनोज श्रीवास्तव

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