चत्वारि सोपान
चार धाम यात्रा प्रारंभ दिवस पर विशेष,
चत्वारि सोपान
@मानव
कलियुग में चारधाम यात्रा का
सीधा संबंध मन,
विचार
और आत्मा की शुद्धि से है,
जो अंतरात्मा को
बदलने की क्षमता रखती है,
मानवता,
सहिष्णुता
और आपसी विश्वास की
भावनाओं को
सिंचित व पोषित करती है
अतः सतयुग तुल्य है।
यात्रा के दौरान
हम स्वच्छ-निर्मल
नयनाभिराम दृश्यों के बीच
जीवन के समस्त
सांसारिक उलझनों को
पीछे छोड़ देते हैं,
तनावमुक्त हो जाते हैं,
उल्लास की प्रतीति
करने लगते हैं,
फलत: हमारे भीतर
खुलकर जीने की
उत्कंठा उत्पन्न कर जाते हैं।
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव,
यमुनोत्री धाम
भक्ति का उद्गम माना गया है।
अंतर्मन में
भक्ति संचार होने पर ही
ज्ञान चक्षु खुलते हैं,
अतः ज्ञान की अधिष्ठात्री
साक्षात् सरस्वती स्वरूपा गङ्गा का,
उद्गम स्थल गंगोत्री
यात्रा का द्वितीय सोपान बनता है।
ज्ञान ही जीव में
वैराग्य-भाव जगाता है
भगवान केदारनाथ के दर्शनों से ही
जिसकी प्राप्ति संभव है।
जीवन का अंतिम पड़ाव
मोक्ष पारिभाषित है
जो बदरीनाथ से ही
प्राप्त होना सँभव है।
इसीलिए चारधाम यात्रा
जीवन के पड़ावों की
यात्रा का प्रतीक है।
~मनोज श्रीवास्तव
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