अद्वैत के व्याख्याकार
शंकराचार्य जयन्ती पर विशेष
अद्वैत के व्याख्याकार
@मानव
अद्वैत वेदांत
व उपनिषद के व्याख्याता,
तथा सनातन धर्म के
ध्वजवाहक व प्रचारक,
दार्शनिक आदि शंकराचार्य जी
जिन्होंने अपनी यात्राओं व प्रवचनों से
धार्मिक विसंगतियों का
निस्तारण किया
और राष्ट्र को
सांस्कृतिक एकता के सूत्र में
आबद्ध किया;
फलतः प्रतिक्रियावादी तत्वों की
उग्र प्रतिक्रिया से
धर्म के प्रति आस्था की
रक्षा में सफल रहे।
सर्वभूत प्राणियों में
ब्रह्म ही समाया है,
वह अलग-अलग रूपों में
क्रियाशील होने पर भी
एक है,
उसके गुण, कर्म और स्वभाव में
अंतर नहीं आता
अत: मानव-मानव में भेद
यानी छूत-अछूत का व्यवहार
सर्वथा बेमानी है,
यही व्यावहारिक अद्वैत है।
विराट विश्व ही
परमात्मा का स्वरूप है,
वही ईश्वर
सम्पूर्ण जीवधारियों,
वृक्ष,वनस्पति,जल-थल में
भावना रूप में विद्यमान है।
उसी की चेतना
वायु में प्राण बनकर
इधर से उधर घूमती है;
अग्नि में दाहकता बनकर
जलाती है,
जल में विद्युत बनकर
प्रकाश और जीवन देती है,
अनंतर ग्रह-नक्षत्रों
और लोक-लोकांतरों में
सर्वत्र व्याप्त,
सत् और चेतनशील है;
निराकार विराट ब्रह्म का
ध्यान करने से
मनुष्य की अंतवृत्तियाँ
विकसित होती हैं;
ब्रह्म की ज्ञानाराधना से
मनुष्य के कष्ट दूर होते हैं,
और जीवन लक्ष्य की
पूर्ति होती है।
ब्रह्म के विराट स्वरूप का
यही दिग्दर्शन है।
(मनीषा पञ्चकम्)
~मनोज श्रीवास्तव
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