माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः
पृथ्वी दिवस (२२ अप्रैल) पर विशेष,
माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः
@मानव
माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः
(पृथ्वीसूक्त, अथर्वेद)
मनुष्य का प्रथम पहचान-पत्र है
जिसे सांस्कृतिक,
धार्मिक
और दार्शनिक मान्यता मिली।
धरती का रत्न गर्भा,
शस्य - श्यामला,
और सुजलां सुफलां होना
उसके मातृत्व का श्रृंगार है।
धरती है तभी हमारा अस्तित्व है
इसी विचारधारा से
'वसुधैव कुटुम्बकम्' का
उदात्त महावाक्य
भारतीय संस्कृति
व भारतीय दृष्टि ने
महास्वप्न की भाँति
आर्यावर्त समेत
विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया,
जिसमें उत्कट जिजीविषा
भिन्न-भिन्न विश्वास
और आस्थाओं के दर्शन होते हैं।
यह धरती
समूचे ब्रह्माण्ड का
तीर्थ स्थल है,
यहाँ हर पल मेला
हर पल आनंन्द है,
जो ज्ञान-भक्ति-कर्म के
विस्तार के लिए भी है।
जीवन मूल्यों के पवित्र स्मारक
अनादि काल से ही
दीपस्तंभ बनकर
धरती पर खड़े हैं,
जिनके पथ प्रदर्शन में
मनुष्य लक्ष्य को चूमता है,
आनन्द के महासागर
और स्वाभिमान के
उच्चतम शिखर
स्थापित करता है।
सभ्यता की लिखी इबारत में
हमने मिट्टी की सौगंध खाई,
मिट्टी की खातिर
मिट्टी में मिल जाता
उचित समझा।
~मनोज श्रीवास्तव
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