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Showing posts from May, 2023

गङ्गा केवल नदी नहीं

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  ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, गङ्गा अवतरण दिवस पर विशेष , गङ्गा केवल नदी नहीं         @मानव गङ्गा महनीय एवं अलौकिक  ईश्वरीय द्रव वाली मोक्षदायिनी और पवित्रतम नदी जो मात्र नदी नहीं  अपितु अमृतत्व का प्रवाह है। गङ्गा त्रय योग सिद्धि कारक है  जो ब्रह्म कमंडल से निकलकर ज्ञानयोग, विष्णु चरण स्पर्श करते हुए  भक्तियोग, शिव जटा से धरा-धाम पर अवतरित हो वैराग्य योग  सिद्ध करती है। गंगा का अवतरण  पूर्वजों के असीम श्रम साधन का  ही परिणाम है, जो मर्त्य लोक में पतितों के उद्धार का माध्यम बनी।  तभी तो गंगा में अस्थि प्रवाहन से  भोग,भाग्य और मुक्ति से  हम निश्चिंत हो जाते हैं। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को दस दिव्य योगों में  माँ गङ्गा का  धरा पर अवतरण  तीन दैहिक, चार वाणी जनित व तीन मानसिक, कुल दस पापों का  क्षरण करती है। गंगा स्नान से अक्षय और अनंत फलश्रुति, व पितरों को  अक्षय तृप्ति की प्राप्ति होती है; और सकल देव सत्ता हमारे अनुकूल हो जाती है; गंगा का स्मरण, पूजन और संस्पर्श से हमारे देवता और पितृ  स्वत: तृप्त हो जाते हैं।  ~ मनोज श्रीवास्तव

रामनामामृत

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  ज्येष्ठ मास के मंगलवार पर विशेष रामनामामृत         @मानव वेद का सार और सृष्टि का सार रामनाम है, राम नाम का अमृत  पूर्णानंद, अखण्डानंद, आत्मानंद, परमानंद है । वही पूर्ण ज्ञान है और वही पूर्ण भक्ति है जिसका दर्शन हनुमान जी के जीवन में  पग-पग पर होता है। सदैव हनुमान जी  उस रामामृत का पान करते रहते हैं  जिसमें तृप्ति कभी संभव नहीं है। पूर्ण को पा लेने के बाद भी  बार-बार उसी का ध्यान करना  पूर्ण भक्ति है और हनुमान जी इसके साक्षात् प्रमाण हैं। निष्ठा का सच्चा स्वरूप  राम नाम है जिसमें अपने विरोधी के प्रति भी  अहित भावना का अभाव रहता है। महानतम विवेक के कारण  हनुमान जी का शौर्य और धैर्य, सत्य और शील सबमें एकरसता और स्थिरता, बनी रहती है, मूलाधार में स्थित रहना  इसका कारण है। चारों दिशाओं में एक ही तत्व के दर्शन,  करने वाले हनुमान जी  दक्षिणमुख होकर भी  पूज्य हैं। सबकी योग्यता का उपयोग कर लेना ही  श्रीराम और हनुमान जी की पूर्णता है, यही उनकी व्यापकता है। यही व्यापकता सीता जी व श्री राम हैं  जिनमें हनुमान जी लीन हैं।   ~मनोज श्रीवास्तव

ऋत सत्य के संवाहक

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  देवर्षि नारद जयन्ती (ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया) पर विशेष   ऋत सत्य के संवाहक         @मानव भगवान के कल्याणकारी,  करुणामय संकल्प को  मूर्त रूप देने का कार्य  देवर्षि नारद जी करते हैं। जिन कारणों से  लोगों के मन में नारद-सम भक्तों के प्रति  भ्रम की स्थिति होती है, वे शुद्ध आध्यात्मिक हैं,  ऋत सत्य के संवाहक  नारद जी वह किरण हैं जो रामचन्द्र व कृष्णचन्द्र की ही किरणों के प्रकाशक हैं, हर कार्य में उनका उद्देश्य  जीव का आध्यात्मिक कल्याण ही है। भगवान के भक्तों में  विश्वास और समर्पण के  संस्कारों का बीजारोपण कर भक्ति, भक्त और भगवंत को एकाकार करने की भूमिका  नारद जी की है। चाहे वे भक्त हों  या वे दिग्भ्रमित जन  जो भगवान की लीला  न समझ पा रहे, उन्हें सन्मार्ग पर लाने का महान कार्य नारद जी ही करते हैं। भगवान के साथ बंधन को  मुक्ति मानना भक्ति है और यही मुक्ति भी; भक्ति के अभाव में  मुक्ति-सुख असंभव है नारद जी भक्त को भक्ति  और ज्ञानी को मुक्ति का  वितरण करते हैं। भक्ति-सत्य-सन्मार्ग के,  संवाहक नारद जी सदैव जो करते है  भगवद् प्रेरक कार्य ही करते हैं अतः सदा वंदनीय हैं।  ~मनोज श्रीवास्तव

सुखद जीवन-सूत्र बुद्ध

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  बुद्ध पूर्णिमा हेतु विशेष सुखद जीवन-सूत्र बुद्ध      @ मानव जीवन की पीड़ादायी और असंतोषजनक स्थिति  बुद्ध विचार यात्रा का मूल है। उनकी चिंतन प्रक्रिया  व्यावहारिक समाधान की ओर उन्मुख रही है। इच्छाओं के बाण को निकालने वाले शल्य चिकित्सक महात्मा बुद्ध अस्थायित्व, संतोष का अभाव, और आत्मा की अनुपस्थिति को जीवन-लक्षण बताते हैं जो अस्थाई हैं। चार आर्य सत्य व सम्यक् आचरण का अष्टांगिक मार्ग, स्थाई और शाश्वत आत्मा की मुक्ति का संदेश प्रदाता है। संदेह होने पर  किसी और पर नहीं वरन् अपने साक्षात अनुभव को प्रमाण मानें। मानव आचरण के लिए  मन की प्रधानता है सब कुछ मन से शुरू होता है और मनोमय है।           ( धम्मपद ) अबैर से ही बैर समाप्त होता है, जीवन नश्वर है, जो यह जानता है कि दुनिया से विदाई अनिवार्य है, दूसरों के प्रति कटुता पर धकेल देता है। विजय से दूसरे के साथ  बैर जन्म लेता है, जो जय और पराजय दोनों से परे रहता है, वह चैन से सुख की नींद सोता है, जबकि शांति से बड़ा कोई सुख नहीं होता।                 ( धम्म पद)   अक्रोध से क्रोध को,  भलाई से 'दुष्ट को दान से कंजूस को और सच से झूठ को जीतना चाहिए