रामनामामृत


 ज्येष्ठ मास के मंगलवार पर विशेष

रामनामामृत


       @मानव

वेद का सार

और सृष्टि का सार

रामनाम है,


राम नाम का अमृत 

पूर्णानंद,

अखण्डानंद,

आत्मानंद,

परमानंद है ।


वही पूर्ण ज्ञान है

और वही पूर्ण भक्ति है

जिसका दर्शन

हनुमान जी के जीवन में 

पग-पग पर होता है।


सदैव हनुमान जी 

उस रामामृत का

पान करते रहते हैं 

जिसमें तृप्ति

कभी संभव नहीं है।


पूर्ण को पा लेने के बाद भी 

बार-बार उसी का ध्यान करना 

पूर्ण भक्ति है

और हनुमान जी

इसके साक्षात् प्रमाण हैं।


निष्ठा का सच्चा स्वरूप 

राम नाम है

जिसमें अपने

विरोधी के प्रति भी 

अहित भावना का

अभाव रहता है।


महानतम विवेक के कारण 

हनुमान जी का

शौर्य और धैर्य,

सत्य और शील

सबमें एकरसता

और स्थिरता,

बनी रहती है,

मूलाधार में स्थित रहना 

इसका कारण है।


चारों दिशाओं में

एक ही तत्व के दर्शन, 

करने वाले हनुमान जी 

दक्षिणमुख होकर भी 

पूज्य हैं।


सबकी योग्यता का

उपयोग कर लेना ही 

श्रीराम और हनुमान जी की

पूर्णता है,

यही उनकी व्यापकता है।


यही व्यापकता

सीता जी व श्री राम हैं 

जिनमें हनुमान जी लीन हैं।


  ~मनोज श्रीवास्तव

Comments

Popular posts from this blog

रामकथा

'सीतायाः चरितं महत्'

आत्मा की समृद्धि का पर्व