सुखद जीवन-सूत्र बुद्ध

 बुद्ध पूर्णिमा हेतु विशेष

सुखद जीवन-सूत्र बुद्ध


     @मानव

जीवन की पीड़ादायी

और असंतोषजनक स्थिति 

बुद्ध विचार यात्रा का मूल है।

उनकी चिंतन प्रक्रिया 

व्यावहारिक समाधान की ओर

उन्मुख रही है।


इच्छाओं के बाण को

निकालने वाले शल्य चिकित्सक

महात्मा बुद्ध

अस्थायित्व,

संतोष का अभाव,

और आत्मा की अनुपस्थिति को

जीवन-लक्षण बताते हैं

जो अस्थाई हैं।


चार आर्य सत्य

व सम्यक् आचरण का अष्टांगिक मार्ग,

स्थाई और शाश्वत आत्मा की मुक्ति का

संदेश प्रदाता है।


संदेह होने पर 

किसी और पर नहीं

वरन् अपने साक्षात अनुभव को

प्रमाण मानें।


मानव आचरण के लिए 

मन की प्रधानता है

सब कुछ मन से शुरू होता है

और मनोमय है।

          (धम्मपद)


अबैर से ही बैर समाप्त होता है,

जीवन नश्वर है,

जो यह जानता है

कि दुनिया से विदाई अनिवार्य है,

दूसरों के प्रति कटुता

पर धकेल देता है।


विजय से दूसरे के साथ 

बैर जन्म लेता है,

जो जय और पराजय

दोनों से परे रहता है,

वह चैन से

सुख की नींद सोता है,

जबकि शांति से बड़ा

कोई सुख नहीं होता।      

          (धम्म पद) 


अक्रोध से क्रोध को, 

भलाई से 'दुष्ट को

दान से कंजूस को

और सच से झूठ को जीतना चाहिए।


सबको अपना जीवन प्रिय होता है

सब जीव मुख कामना करते हैं

मनुष्य अपनी ही तरह

सबका सुख-दु:ख जानकर

न तो खुद किसी को मारता

अथवा दूसरों को मारने के लिए

उकसाता है।


इच्छा,मोह राग और द्वेष

सबसे बड़े दोष हैं;

मनुष्य को शीलवान,

समाधिमान,

उद्यमशील

और प्रज्ञावान होकर

जीवन यापन करना चाहिए।


सत्य सर्वप्रथम धर्म है  

मनुष्य स्वयं अपना स्वामी है।

उसे स्वप्रेरित होना चाहिए।

अपने को संयम की शिक्षा से 

व धर्माचरण निष्ठा से,

आत्मजयी सबसे बड़ा विजेता होगा।


जिसका चित्त स्थिर नहीं,

जो सद् धर्म को नहीं जानता,

जिसकी श्रद्धा डॉवाडोल है 

उसकी प्रज्ञा परिपूर्ण नहीं हो सकती।


योग से प्रज्ञा की वृद्धि होती है

जिसे प्रज्ञा नहीं होती

उसे ध्यान नहीं होता,

जिसे ध्यान नहीं होता

उसे प्रज्ञा नहीं होती।


जो अपने लिए नहीं 

बल्कि प्राणिमात्र को 

कल्याण मार्ग पर लाना चाहता है,

सबके दुःख की निवृत्ति 

जिसका लक्ष्य है,

वह व्यक्ति का उत्कृष्ट रूप 

बोधिसत्व कहलाता है।

जो संसार से विरत हुए बिना

कठिनाइ‌यों और संघर्षों से 

विजय की ओर अग्रसर होता है,

लोकोपकार में तत्पर रहता है,

सब जीवों का कल्याण ही 

जिसका अभीष्ट होता है। 


दूसरे प्राणियों को

दुःख से छुड़ाने में

आनंद का जो सागर उमड़ता है।

वही सब कुछ है, 

क्योंकि नीरस मोक्ष निरर्थक है

(बोधिचर्यावतार-शांतिदेव)


वर्तमान त्रासद घड़ी में

बुद्ध के ये विचार

शीतल प्रकाश की तरह 

शक्ति और ऊर्जा देते हैं 

जो सुखद जीवन के सूत्र हैं।


 ~मनोज श्रीवास्तव

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