नागपञ्चमी
@मानव
सर्प पर्यावरण को संतुलित रखते हैं;
कृषि के शत्रु
और मानवता के
क्षतिकारकों का
भक्षण करते रहते हैं
और विष को आत्मसात करते हैं।
संसार के पालक विष्णु जी,
उन्हें अपनी शय्या बनाए हैं
तो देवों के देव महादेव,
उन्हें हारतुल्य कंठ में डाले हैं।
फिर वे पूज्य क्यों न माने जाएं?
शेषनाग के रूप में
पृथ्वी को धारण करते हैं
और वासुकि के रूप में
कष्ट उठाकर
समुद्र मंथन में
रज्जु का काम करते हैं;
रावण जैसे राक्षसों के संहार में
शेषावतार लक्ष्मण रूप से
श्रीराम की सहायता करते हैं।
सर्पगण कश्यप ऋषि
व उनकी पत्नी कद्रू की संतान हैं।
जब ये मानवता को कष्ट देने लगे,
ब्रह्मा जी ने
वासुकि आदि को बुलवा कर
डाँटा और अभिशप्त किया;
सर्पों के अनुनय-विनय करने पर
उन्हें रहने के स्थान सीमित किए
और काटने की भी
सीमा रेखाएं खींची;
यह वृत्तांत नागपञ्चमी तिथि को हुआ।
(वराह पुराण)
परीक्षित की मृत्यु
तक्षक नाग के डसने से हुई,
जिसका बदला लेने के लिए
उनके पुत्र जनमेजय ने नाग यज्ञ किया;
निर्दोष सर्प आ-आकर
यज्ञाग्नि में भस्म होने लगे;
तक्षक इंद्र-सिंहासन के
पाये में लिपट गए;
उनके यज्ञ कुंड में गिरने से पहले
आस्तिक मुनि ने
यज्ञ रुकवा दिया;
यह प्रजाति
संपूर्ण विनाश से बच गई;
यह घटना भी नागपञ्चमी को ही हुई;
अग्नि ताप के शमन हेतु
सर्पों पर कच्चा दूध डाला गया।
(श्रीमद्भागवत, द्वादश स्कंध)
इस तिथि को दुग्ध स्नान से
उनकी अर्चना निर्धारित है;
उनके रक्षक
आस्तिक मुनि की पूजा,
आराधना
या घर की दीवार पर
उनका नामोल्लेख करने से
सर्प भय नहीं रहता।
~✍️मनोज श्रीवास्तव
Comments
Post a Comment