रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
@मानव
सतयुग में धर्म और सत्य की
रक्षा के लिए
रक्षासूत्र का महत्व रहा।
त्रेतायुग में ऋषि- मुनियों,
संत-महात्माओं ने
श्रीराम को रक्षासूत भेंट कर
रक्षा का सांकेतिक विश्वास
प्रकट किया था।
द्वापर युग में
श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ने
रक्षाबंधन की परंपरा आरंभ की।
कलियुग में
भारतीय उपमहाद्वीप में
बहनों के द्वारा
अपने भाइयों को
रक्षासूत्र समर्पित करके
सुरक्षा का अधिकार
अर्जित करना,
इसका उद्देश्य है।
रक्षाबंधन
भारतीय संस्कृति और समाज का
सर्वाधिक संवेदनशील पर्व है,
जो सांस्कृतिक दर्शन का ही
स्रोत है।
वस्तुतः यह सभी लोगों में
एक-दूसरे के प्रति रक्षा के विश्वास
अर्थात एकता के प्रदर्शन का ही
महापर्व है।
यह एक-दूसरे के प्रति
सम्मान
और प्रेम का भी अवसर है।
भाई-बहन के स्नेह,
प्रेम और संकल्प का
प्रतीक बन कर
राखी समस्त परिवार के लिए
धुरी बन गई है।
इसमें अनंत वात्सल्य छिपा है।
भावनाओं का सबसे बड़ा संकेत
राखी के धागे में अंतर्निहित है।
राखी संसार की महानतम
सांस्कृतिक धरोहर भी है।
सभ्यता का व्यावहारिक प्रयोग
राखी के माध्यम से
समाज में व्याप्त होता है।
भाई बहन की सद्भावना का रूपक
कच्चे धागे में पक्का बन गया है।
भाई रक्षा करेगा,
यह बहन को विश्वास होता है।
जीवन के पलों में
राखी का संदेश
अविस्मरणीय है।
भाई-बहन के प्रेम को
राखी ने अमर बनाया है।
अमिट स्मृतियों को समेटे
यह राखी निश्छल भावों को
सदैव प्रकट करती रहेगी।
~✍️मनोज श्रीवास्तव
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