विकास से संवाद की भाषा
विकास से संवाद की भाषा
@मानव
गगनयान,
व्योम मित्र,
विक्रम,
प्रज्ञान,
आदित्य,
शिवशक्ति,
यह शब्दावली हिन्दी को
ज्ञान-विज्ञान
और सामर्थ्य की भाषा बना रही है;
यह हिन्दी का नया जगत है,
हिंदी का नए जगत के साथ
सामर्थ्य का संवाद है;
यह हिन्दी का नया उत्साह भाव है;
यह आशा की भाषा बन रही है;
इन रूपों में हिन्दी
धरती से लेकर आकाश तक
हर भारतवासी को
गौरवान्वित कर रही है;
यह राष्ट्र के संकल्प
और ताकत का प्रतीक है
यही नया भारत है।
हिन्दी विकास की भाषा है
जो बाजार और आमजन के साथ
आगे बढ़ने का रास्ता खोज लेती है;
विकास पर बात करना
उत्तरदायित्व पर भी बात करना है,
जीवन की गतिशीलता पर
बात करना है,
जो भारत के जीवनराग को बनाते हैं,
इस जीवनराग की व्याख्या
भारत के सपने की व्याख्या है,
इसे समझना
हिंदी के चरित्र को समझना है।
हिंदी
स्वाधीनता आंदोलन की चेतना को
अभिव्यक्त करने के लिए
भाषायी जरूरत का उत्तर थी;
जिन महानुभावों ने
हिन्दी की पक्षधरता की
वह किसी लाभ के लिए नहीं
बल्कि सायास चयन था
जो अपने देश को
अपनी भाषा के माध्यम से
चलाने की प्रतिबद्धता थी;
राष्ट्रीय जागरण का अभ्युदय था।
हिंदी ज्ञान की भाषा है,
नए भारत में करोड़ो लोगों के
संवाद की भाषा है;
नया समाज इसी चेतना का
वहन कर रहा है।
हिन्दी पर सवार विज्ञापन की भाषा
पूँजी को भी साथ लेकर
चलने लगी है
अतः यह पूँजी की भाषा भी है।
हिन्दी मध्यमवर्गीय इच्छा
और भावना को अभिव्यक्त करने वाली
भाषा बन गई है;
यह हिन्दी की नई दुनिया है
जिसमें तमाम रंग
और स्वर आए हैं
जो आकर्षक हैं
और भविष्योन्मुखी भी
इन तमाम रंगों और स्वरों के साथ
संवाद करना
हिन्दी की ताकत के साथ
संवाद करना है।
हिन्दी का सौभाग्य है
कि वह गली-मोहल्लों की भाषा है
हिन्दी का सौभाग्य है
कि वह नागरी है
वह बाजार की भाषा है
इसीलिए हिन्दी बची रहे
तो इस देश के स्वप्न बचे रहेंगे
सांस्कृतिक सातत्यता बची रहेगी,
गरीब आदमी का सपना बचा रहेगा,
गरीबों को माननीय होने के लिए
जगह बची रहेगी,
यह सपना बचाना है
इसे बड़ा करना है
इस सपने की हद और जद में
भारत के सबल होने का
सपना समाहित है।
✍️मनोज श्रीवास्तव
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