पितृपक्ष:दायित्वबोध का अवसर

 पितृपक्ष:दायित्वबोध का अवसर



       @मानव

पितृपक्ष

हमारे पूर्वजों के प्रति

हमारे दायित्वबोध का 

विशेष अवसर है।


पितृकर्म का मूल आधार 

हमारा वेद हैं।;

वेद का एक नाम श्रुति है;

श्रुतियों में उल्लिखित कर्म 

श्रौतकर्म कहलाते हैं;

श्रौतकर्म के मुख्य तीन स्वरूप

होम, इष्टि एवं सोम हैं;

वेदों में ही पितृश्राद्ध का महत्व

व्यापक स्तर पर वर्णित है।


पितृकर्म का सांगोपांग वर्णन

गरुड़ पुराण में है,

जहाँ उत्तरखण्ड में

महर्षि कश्यप के पुत्र 

पक्षीराज गरुड़ द्वारा 

जिज्ञासा किए जाने पर 

भगवान विष्णु के श्रीमुख से

मृत्यु के उपरांत के

गूढ़ तथा परम कल्याणकारी 

वचन प्रकट हुए थे,

इसलिए यह पुराण

‘गरुड़ पुराण’ कहा गया है। 


जो भी जीव इस संसार से 

परलोक हेतु प्रयाण करता है,

वह प्रेत नाम से संज्ञित होता है;

अतःउत्तरखण्ड को 

प्रेतकल्प भी कहते हैं। 


‘प्रेतकल्प’ के पैतीस अध्यायों में 

मृत्यु का स्वरूप, 

मरणासन्न व्यक्ति की अवस्था

तथा उनके कल्याण के लिए

अंतिम समय में कृत्य 

क्रिया-कृत्य का विधान है;

इसमें अनुष्ठान

और श्राद्धकर्म आदि का  

सविस्तार वर्णन है।


इक्ष्वाकुकुलभूषण 

महाराज भगीरथ ने

कठिन तपस्या द्वारा 

सर्वपापापहारिणी, 

दुर्गतोद्धारिणी माता गङ्गा को

स्वर्ग से पृथ्वी पर लाकर 

नानाविध जीवनमूल्यों के 

सूत्र प्रतिपादित किए।


प्रमुख द्वादश श्राद्धों में

जब पृथ्वी देवताओं का

आलय बन जाती है

महालया पितृपक्ष कहलाता है,

जिसमें श्राद्ध पितरों को

साक्षात प्राप्त होता है;

अतएव पितृपक्ष का

संपूर्ण कालखंड

पितरों की प्रसन्नता के लिए 

अत्यंत महत्वपूर्ण है।


✍️मनोज श्रीवास्तव

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