शक्ति की आराधना

 शक्ति की आराधना

       @मानव

शक्ति उपासना के पर्व नवरात्र में

देवी के जिन रूपों की 

आराधना की जाती है 

वे शक्ति के मूर्तिमंत स्वरूप हैं

और नारी शक्ति के परिचायक हैं।


इस पर्व की मूल परिकल्पना यही है

कि जो कुछ भी अच्छा है 

वह स्त्री से ही

सृजित या निर्मित होता है;

माँ दुर्गा इसी स्त्री शक्ति को 

प्रतिबिम्बित करती हैं।


एक तुच्छ कण के स्पंदन हेतु भी

शक्ति की अपेक्षा होती है,

शक्ति का अर्जन

देवी आराधना का मुख्य उद्देश्य है।


सनातन संस्कृति में

नारी शक्ति की अधिष्ठात्री रही है।

शक्ति के अभाव में

जब ब्रह्मा भी

सृष्टि को जीवंत नहीं कर पा रहे थे

तब आदिदेव शिव

अपने एक अंश से नर

और दूसरे से नारी बन गए;

सृष्टि के कण-कण में

शक्ति संचरित करने वाला 

यह उनका अर्धनारीश्वर रूप था,

इससे उन्होंने जगत में 

नर-नारी के सह-अस्तित्व को

प्रतिष्ठापित किया

और पुरुष को अहसास कराया

कि नारी सम्मान से ही 

पुरुष को शिवत्व (कल्याण) की

प्राप्ति हो सकती है।


"शिव और शक्ति

शब्द और अर्थ के समान 

अभिन्न हैं।" 

  (रघुवंश में कालिदास)

अन्योन्याश्रय संबंध से 

दोनों का अस्तित्व 

एक-दूसरे पर निर्भर है;

इसीलिए हर पुरुष में नारीत्व

और हर नारी में पुरुषत्व का

अंश होता है;

यह समाज में नर-नारी के 

समभाव का द्योतक है।


हमारी संस्कृति में स्त्री

न केवल प्रकृति का अभिन्न अंग है

बल्कि शक्ति का

एकमात्र स्रोत भी है;

अतः नारी का सम्मान ही

स्त्रीत्व के आनन्दोत्सव पर्व पर

शक्ति की आराधना है।


नवरात्र का पर्व

अंत: शुद्धि का पर्व है 

जिसका मूल उद्देश्य

इन्द्रियों का संयम

और आध्यात्मिक शक्ति का

संचय करना है;

नवरात्र की नौ रातों में

व्रत,पूजा,मंत्र-जाप

संयम,नियम,यज्ञ,तंत्र, 

त्राटक,योग आदि

नौ अलौकिक सिद्धियाँ

प्राप्त हो सकती है।


✍️मनोज श्रीवास्तव

Comments

Popular posts from this blog

रामकथा

'सीतायाः चरितं महत्'

आत्मा की समृद्धि का पर्व