जगदम्बा :गुणों का संतुलन

 जगदम्बा :गुणों का संतुलन


       @मानव


जगत की प्रत्येक वस्तु, 

चर या अचर का मूल स्रोत

एक निगूढ़ शक्ति है, 

जो तर्क और बुद्धि की 

सीमा के परे है! 


जीवन को गढ़ने हेतु 

सहनशीलता,धैर्य,

करुणा और क्षमता

एक माँ में ही होती है, 

अतः विश्वमातृत्व की 

अनंत शक्ति ही

इतने महत्

एवं विशाल जगत् को 

जन्म दे सकती है।


नवरात्र में पूजित

दुर्गा,लक्ष्मी व सरस्वती

क्रमशः तमोगुण, 

रजोगुण

व सतोगुण के प्रतीक हैं।


दुर्गा तम की प्रतीक हैं

भौतिक जगत में तमोगुण

थोड़ा-बहुत आवश्यक है।

तमस पर्याप्त न हो

तो हम ठीक से

सो भी नहीं पाएंगे।


लक्ष्मी रजोगुण के रूप में हैं,

अत्यधिक रजोगुण होगा

शांति-विश्रांति भी दूर रहेगी;

यदि अति न्यून होगा

तो कार्य समुचित न होंगे;

अतः सन्तुलन आवश्यक है।


सरस्वती देवी सतोगुण 

अथवा सत्व गुण का प्रतीक हैं,

जो  पांडित्य,ज्ञान

और शांति रूप में

प्रकट होता है। 

सांसारिक सफलता, 

सुख-सुविधाएं

और खुशियाँ

इन तीन गुणों को 

संतुलन में रखना होगा।


नवरात्र में

कुमारी पूजन का निहितार्थ है

कि स्त्रियों को

जगदम्बा मानना है;

इन पूजनीय महिलाओं पर

कोई आक्रमण न करे,

दुर्व्यवहार न करे।

लक्ष्मी समान पूजित नारी

कभी निर्धन न हो;

सरस्वती रूप में पूजित नारी

कभी शिक्षा से वंचित न रहे!

काली-रूप में पूजित स्त्रियों की

कभी अपेक्षा हो

निंदा न हो!

सब स्त्रियों को वह पद, 

मान-सम्मान प्राप्त हो, 

जिसकी वे अधिकारी हैं।


माँ का वात्सल्य 

भाषातीत होता है। 

इस मातृ-वात्सल्य का 

सार है जगदंबा। 

जगदंबा इस सृष्टि के 

चर-अचर

सब प्राणियों का प्रेम

व स्नेह के साथ 

मार्गदर्शन करती हैं;

जगत के उद्धार

एवं धर्म की रक्षा हेतु 

वो बारंबार अवतार लेती हैं।


जगत को धारण

व उसका पालन करने वाली

जगदंबा की उपासना से

हम हर संभव आशीष पा लेंगे;

इस शक्ति के प्रति

छोटे बच्चे जैसा समर्पण-भाव

और नि:स्वार्थ प्रेम 

विकसित कर लें

तो हमारा जीवन

धन्य हो जाए!


 ✍️मनोज श्रीवास्तव

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