लोकाभिराम श्री राम
लोकाभिराम श्री राम
@मानव
श्रीराम मानवीय आचरण,
जीवन-मूल्यों
और आत्म-बल के
ऐसे मानदंड बन गए
कि उन्हें 'मर्यादा पुरुषोत्तम' रूप में
स्वीकार किया गया।
राम के माध्यम से
व्यापक लोकहित
या समष्टि का कल्याण
ऐसा लक्ष्य सिद्ध होता है
कि उसके समक्ष सब कुछ
छोटा एवं फीका पड़ जाता है।
राम का भाव
भारतीय मानस और प्रज्ञा की
कभी न चुकने वाली
ऐसी अक्षय निधि
और उद्भावना है
जो सुख-दुख,
हर्ष-विषाद,
युद्ध-शांति
और विरक्ति- आसक्ति जैसे
द्वंद्वों की स्थितियों में
हमारे लिए प्राण वायु की तरह
जीने का आधार प्रदान करती है।
श्रीराम का अवतार
लोकहित साधन के लिए ही हुआ,
किसी सुखोपभोग
या राज्य लिप्सा के लिए नहीं।
शासन तो उन्होंने
राज करने के आदर्शों को
स्थापित करने के लिए किया।
उनमें लोक चिंता
और समाजसेवा भाव
जन्मजात थे;
प्रत्येक दशा में दशरथ का
एक वचन भंग होना ही था;
या तो राजसभा को दिया गया
राम को राज्य देने का वचन
या कैकेयी को दिया गया वचन;
तब राम ने वरीयता लोक भ्रमण
और सेवा को ही दी,
राज्य को नहीं।
राम द्वारा लोक को
सदा वरीयता देने के चरित्र
व व्यवहार के आधार पर ही
वे लोकाभिराम बने।
रामलीला सदियों से
आम जनों के लिए
उत्सुकता,आह्लाद
और संवेदना का
आश्रय बन कर
रंजन करती आ रही है,
जो सामान्य जन को
राममय यानी मंगलमय
बनाने का उपाय है।
इसीलिए भारत की जनता
अपने नायकों- नेताओं में
ऐसे चरित्र को ढूँढती है
जो राम की तरह
लोककल्याण के प्रति समर्पित हो।
✍️मनोज श्रीवास्तव
Comments
Post a Comment