संस्कृति की ऊष्मा का पर्व

 संस्कृति की ऊष्मा का पर्व



          @मानव

संसार में परिवर्तन शाश्वत है

और नवागत का स्वागत 

हमारा धर्म है।

समस्त लोक को धारण 

और संचालित करने वाली 

जगतधारिणी माँ जगदंबा के

शक्तिवंदन के पर्व की

यह अद्भुत परंपरा है,

यह नवदुर्गा के नौ स्वरूपों वाले

नवरात्र का दिव्य अभ्यागत स्वागत है।


हमारी सनातन संस्कृति 

इसी मान्यता पर खड़ी है 

कि आदिशक्ति ही

संसार में सभी घटित 

क्रियाओं का कारण हैं;

यह उनकी ही ऊर्जा है

जो सब कुछ संचालित कर रही है,

इसी कारण हमारे यहाँ 

मातृशक्ति का सम्मान है। 


स्त्री को शक्ति माना गया है 

और माता,बहन या बेटी, 

सबके भीतर हम 

आदिभवानी का रूप देखते हैं;

इसीलिए नवरात्र में

कन्या पूजन की परंपरा है। 


देवी के नौ स्वरूप 

मातृशक्ति के विभिन्न नौ रूप हैं।

यदि नारी माँ चंद्रघंटा की 

सौम्यता का स्वरूप लिए है 

तो दुष्टों के लिए वह 

कालरात्रि है,

यदि ब्रह्मचारिणी जैसी 

वह तेजोमयी है

तो महिषासुर जैसे राक्षस का

वध करने वाली महादुर्गा भी है।


नवरात्र की अद्भुत परंपरा में

नौ दिन देवी के

विभिन्न स्वरूपों को समर्पित होकर

हम स्त्री की सत्ता की

ऊर्जा को अनुभूत करते हैं। 


स्त्री का सम्मान हो

अथवा मातृशक्ति का गुणगान,

हमारे पूर्वजों ने हर दृष्टि से 

जीवन दर्शन सिखाने की 

सार्थक परंपराएं प्रचलित कीं।


सनातन के ये उत्सव

संस्कृति की ऊष्मा का 

अहसास कराते हैं।

जहाँ सभी में भारत की सांस्कृतिक

एकरूपता दिखाई देती है,

जहाँ सनातन के मूल में शक्ति है

और कलाएं शक्ति के विस्तार की

अमर बेल।


✍️मनोज श्रीवास्तव

Comments

Popular posts from this blog

रामकथा

'सीतायाः चरितं महत्'

आत्मा की समृद्धि का पर्व