आनन्दमय कोष का उत्सव
आनन्दमय कोष का उत्सव
@मानव
अन्नमयकोष,
प्राणमय कोष,
मनोमय कोष,
विज्ञानमय कोष के पश्चात
प्रवेश होता है
आनंदमय कोष में।
अयोध्या में श्रीराम पधारे
तो जड़,चेतन
स्वजन,परिजन,
प्रकृति व सब
आनंदमय कोष में स्थित हो गए;
लोगों के हृदय में
आनंद के अनगिनत दीपक जल गए,
भक्ति मणियों के प्रकाश से
द्वैत मिट गया।
आनंद की यह स्थिति
मेरा-तेरा की मिथ्या स्थिति से
ऊपर उठकर
चित्त के उस प्रांजल शिखर पर
स्थित हो जाना है,
जहाँ प्रवृत्ति और निवृत्ति का
भेद समाप्त होकर
केवल राम तत्व ही शेष रह जाए।
प्रेम से भर जाने में ही तो आनंद है;
सनातन संस्कृति में
हम अहं का विसर्जन करते हैं;
राम की प्राप्ति के बिना
आनंद संभव ही नहीं है;
राम के बिना दीपक में तेल
और बाती जल सकती है,
पर आनंद का प्रकाश संभव नहीं;
यह आनंदमय कोष है
परमानंद, अखंडानंद,
आत्मानंद,विशुद्धानंद
व चिन्मयानंद की प्राप्ति।
ज्ञान-प्रकाश के
अनावरण का नाम ही
दीपावली है,
जिसमें संसार में जड़-चैतन्य के
मिथ्या भेद को जानकर
साधक अपने अंदर
ज्ञान दीप प्रज्वलित करता है।
ज्ञान के द्वारा सुख,शांति
और आनंद प्राप्त करना ही
दीपावली का प्रकाश है।
वास्तविक दीपावली वह है,
जिसमें ज्ञान का दीपक जल जाए,
भक्ति की मणि मिल जाए
और आनंदमय कोष प्राप्त हो जाए।
जब तक अपने गुणों,
अपनी क्षमता,योग्यता
और अपने अस्तित्व की
संपूर्ण विस्मृति नहीं हो जाती,
तब तक जीवन में
दीपावली संभव नहीं है;
अंधेरा ही बना रहेगा,
अमावस्या बनी रहेगी।
दीपावली वही है,
जिसको प्राप्त करने के लिए
क्रमश: अन्न,प्राण,
मन, विज्ञान के रास्ते
अखण्ड आनंदमय कोष में
प्रवेश हो जाता है।
✍️मनोज श्रीवास्तव
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