उगिऽहो सुरुज देव....!

 उगिऽहो सुरुज देव....!



       @मानव

धार्मिक परंपरा,

रीति रिवाज

और पर्व-त्योहार 

इस देश की संस्कृति के 

सच्चे आभूषण हैं;

भारतीयता के सार को 

आकार देने में

लोक,संस्कृति की भूमिका 

बहुत महत्वपूर्ण रही है।


छठ पूजा की पूजा-अर्चना में

किसी मंत्र या पुरोहित की 

आवश्यकता नहीं होती, 

भगवान सूर्य व छठी मइया तक

भावनाओं संवेदनाओं को

लोकगीतों से अभिव्यक्त करते हैं;

इन लोकगीतों में

छठ पर्व की भव्यता, 

भावुकता,

भक्ति से लेकर

पूजन के सूक्ष्म विधि-विधान

तथा सूर्यदेव की महिमा गान से लेकर

उनसे गुहार-मनुहार जैसी 

मानवीय अभिव्यंजनाओं तक की

मनोरम छवि प्रतिबिंबित होती है।


छठ पर्व के लोकगीत

भगवान और भक्त के बीच 

संबंधों की गाथा भी हैं;

हमारी भारतीय धार्मिक आस्थाएं

भगवान के साथ गहरी हैं 

व्रती अपनी जिद मनवाने के लिए

भगवान सूर्य से भी नोकझोंक

और मनुहार कर बैठते हैं।


छठ पूजा की सादगी, 

पवित्रता और लोकपक्ष 

निर्विवाद रूप से

सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं,

जिसमें धन या गुरु की 

प्रार्थना पर निर्भरता नहीं रहती।


प्रकृति के लिए जागरूकता

छठ पर्व का एक मुख्य अंग है,

साथ ही सामाजिक भेदभाव का

खण्डन करते हुए

एक सामाजिक स्वीकृति का

भाव प्रबल है;

सभी के दुखहर्ता

एक ही दीनानाथ हैं;

उनसे गुहार है

कि अब आप उदयाचल हो जाएं

और हमें कष्टों से निवृत्त करें।


✍️मनोज श्रीवास्तव

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