छठ की छटा
छठ की छटा
@मानव
उगते सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं,
पर भारतीय लोक पर्व छठ
अस्त होते सूर्य को भी
उतना ही प्रणम्य मानता है।
छठ पर्व जिन जल राशियों
और सूर्य के इर्दगिर्द केंद्रित है,
वे प्राकृतिक शक्तियाँ
सदियों से संपूर्ण सृष्टि को
पोषित करती आई हैं।
यह पर्व विश्व को
सनातन दर्शन का संदेश देता है
कि अस्त होना और उगना
सृष्टि की सामान्य
एवं स्वाभाविक प्रक्रिया है,
जो जीवन गति और स्थिरता
दोनों का नाम है;
सूर्यास्त और मृत्यु समानार्थ भी।
सूर्य उपासना के छठ पर्व में
हर तालाब नदी के किनारे,
गन्ने के मंडप के नीचे,
मिट्टी की वेदी पर
हल्दी,कुमकुम,सिंदूर से पूरे चौक,
बड़े से मिट्टी के कसोरे में छह दीपक,
कोसी में भरे गए कुमकुम नारियल
और अनेक फल नैवेद्य से
बिना कोई मंत्र बुदबुदाए
एक साथ झुंड में बैठी स्त्रियाँ
चुपचाप सूर्य के दिव्य आलोक को
अपने भीतर उतारती
दृष्टिगत होती हैं।
नाक से प्रारंभ होकर
बालों के बीचों-बीच तक सिंदूर की
चौड़ी चटक रेखा,
वातावरण में तैरते
छठी मैया के गीत,
स्वर में कच्चे बाँस की लचक,
सूर्य की प्रतीक्षा,
शक्ति का सान्निध्य
और छठी मैया का आशीष
लोक जीवन की इस सहज भव्यता की
छटा को निखार देता है।
मंत्रोच्चार के बिना
आस्था-विश्वास का
मौन आत्मनिवेदन
हमारे वेद की 'नेति नेति' कहते
अंत में मौन हो जाने की
प्रवृत्ति का प्रमाण है;
जहाँ सब अस्पष्ट
एकदम स्पष्ट होता जाता है।
✒️मनोज श्रीवास्तव
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