स्वत्थान का अवसर
देवोत्थान एकादशी पर विशेष
स्वत्थान का अवसर
@मानव
भगवान श्रीहरि विष्णु का
चार मास की योग निद्रा के बाद
देवोत्थान एकादशी को जागना
एक संकेत है
कि हमारा आध्यात्मिक जागरण
अत्यंत आवश्यक है,
चार मास का ‘कैवल्य’
अर्थात एकांत,
स्वयं के साथ रहना,
खुद को जानना-समझना
और अपनी ऊर्जा का संचय कर
पूर्ण सकारात्मकता के साथ
कर्म साधना हेतु
समर्पित हो जाना है।
अतःदेवोत्थान एकादशी
सुषुप्तावस्था से
आध्यात्मिक जागरण का
संदेश देती है,
खुद को संगठित कर
स्व से समष्टि की ओर
बढ़ने का संदेश देती है।
कैवल्य का समय
आंतरिक प्रकृति की शुद्धि कर
बाह्य प्रकृति व पर्यावरण की
शुद्धि हेतु स्वयं को
समर्पित करने का
अवसर प्रदान करता है,
अतः हमारा अपनी जड़ता
एवं विडंबनाओं से जागरण
अत्यंत आवश्यक है।
सार्वकालिक शिक्षक के रूप में
कैवल्य ही हमारे व्यक्तित्व में
गुणात्मक परिवर्तन लाता है
अतः चातुर्मास में हम
अतीत का मंथन,
वर्तमान में जीवन
और भविष्य का चितंन कर
आगे बढ़ सकते हैं।
चातुर्मास के
दिव्य शोध का प्रयोग कर
हम जीवन में सत्य,अहिंसा
और अनुशासन सीख सकते हैं,
नैतिकता,मूल्यों
और श्रेष्ठ गुणों से
समृद्ध हो सकते हैं।
विचार,व्यवहार और सोच पर से
रूढ़ियों के,
आकांक्षाओं के,
ईर्ष्या के पर्दे हटाने से ही
हमारी चेतना
हमारा अंत:करण
प्रकाश से आलोकित हो उठेगा।
यही वास्तविक
देवोत्थान से स्वत्थान है।
✍️मनोज श्रीवास्तव
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