वाग्देवी तु सरस्वती
बसन्त पँचमी पर विशेष
वाग्देवी तु सरस्वती
@मानव
विद्या-बुद्धि अधिष्ठात्री देवी
भगवती सरस्वती के
प्रादुर्भाव के कारण ही
वसंत पंचमी तिथि
विद्या जयंती है;
जो उनकी कृपा का
वरदान प्राप्त होने की
पावन तिथि है।
दिव्य शक्तियों को
मानवीय आकृति में
चित्रित करके ही
उनके प्रति भावनाओं की
अभिव्यक्ति संभव है;
इसी चेतना विज्ञान को
भारतीय तत्ववेत्ताओं ने
प्रत्येक दिव्य शक्ति को
मानुषी आकृति
और भाव गरिमा से संजोया है,
जो चेतना को देवगरिमा के समान
ऊँचा उठा देती है,
साधना विज्ञान का आधार यही है।
माँ सरस्वती के हाथ में पुस्तक
'ज्ञान' का प्रतीक है;
यह व्यक्ति की आध्यात्मिक
एवं भौतिक प्रगति के लिए
स्वाध्याय की अनिवार्यता की
प्रेरणा देती है,
ज्ञान की गरिमा के लिए
मन में उत्कट अभीप्सा जगाती है।
कर में वीणा
धारण करने वाली भगवती
वाद्य से प्रेरणा प्रदान करती है
ताकि हमारे हृदय रूपी वीणा
सैदव झंकृत रहे;
संगीत गायन जैसी
भावप्रवण प्रक्रिया को
अपनी प्रसुप्त सरसता
सजग करने के लिए
प्रयुक्त करने का अवसर मिले;
हम कला प्रेमी,
कला पारखी,
कला के पुजारी
और संरक्षक भी बनें।
मयूर अर्थात् मधुरभाषी,
हंस अर्थात नीर-क्षीर विवेक,
सरस्वती के अनुग्रह से संभव है;
जो मधुर,नम्र,विनीत,सज्जनता,
शिष्टता और आत्मीय संभाषण
अभिरुचि को परिष्कृत बनाता है।
सरस्वती पूजन का तात्पर्य
शिक्षा की महत्ता स्वीकार
और शिरोधार्य करना है;
विद्या की अधिकाधिक अभिवृद्धि से
वाग्देवी सरस्वती प्रसन्न होती हैं।
अज्ञान से ज्ञान,
व अविवेक से विवेक की ओर
बढ़ने-बढ़ाने का दृढ़ संकल्प हेतु
संसार में ज्ञान गंगा को बहाने के लिए
भगीरथ जैसी तप-साधना की
प्रतिज्ञा लेनी होगी।
✍️मनोज श्रीवास्तव
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