शिव चेतना का जागरण

महाशिवरात्रि पर

 शिव चेतना का जागरण



       @मानव

शिव गहन मौन

और स्थिरता के आकाश हैं, 

जहाँ पर मन की

सभी गतिविधियाँ

घुल जाती है;

यही आकाश,

हमें दिव्यता देता है,

जिस क्षण हम केंद्र में स्थित होते हैं,

दिव्यता को हर क्षण,

हर स्थान पर देखते हैं;

ध्यान में ऐसा ही होता है।


जिसका कोई आदि और अंत ना हो,

उन्हीं भगवान शिव का

एक नाम अद्यंतहीन है,

शिव व्यक्ति नहीं चेतना हैं। 


शिव वह हैं,

जिसमें से हर एक का

जन्म होता है,

जो इस क्षण को चला रहे हैं,

जिसमें हर रचना

विलीन हो जाएगी;

वे समस्त रचनाओं में समाए हैं;

जन्म-मृत्यु से परे

वे शाश्वत हैं।


जिसका कोई आकार ना हो, 

लेकिन वह सब देखता हो;

इन्हीं शिव को

विरुपाक्ष भी कहा जाता है।


दिव्यता हमारे चारों ओर है 

और हमें देख रही है;

यह हमारे अस्तित्व का 

निराकार भाग है,

यह निराकार दिव्यता ही शिव है। 


शिव सर्वगत होते हुए भी 

प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर नहीं होते। 

अतः जो जीव

गर्भ,जन्म,वृद्धावस्था से युक्त हैं,

वे भला उनके अपरिमित गुणों को

किस प्रकार बता सकते हैं?

   (महाभारत)


शिव अद्वैत चेतना हैं,

जो सब जगह हैं;

इसलिए पूजन से पहले

स्वयं को शिव में

विलीन करना होता है।


शिव की पूजा तभी कर सकते हैं,

जब हम स्वयं शिव हों;

चिदानंद रूप,

शुद्ध आनंद की चेतना;

शिव तपोयोगगम्य हैं,

उन्हें तप और योग के माध्यम से

जाना जा सकता है।


क्षिति जल पावक गगन समीर

ये पञ्चतत्व

शिव के पाँच मुख हैं;

इसलिए शिव पञ्चमुख हैं;

पाँच तत्वों को समझना ही 

तत्वज्ञान है।


शिव पूजन का अर्थ है,

शिव तत्व में विलीन होना 

और फिर प्रत्येक के प्रति 

शुभेच्छा रखना;

सर्वे जना सुखिनो भवन्तु। 


वेदों में एक ही तत्व को 

अनेक रूपों में ब्रह्म, 

परमात्मा,भगवान,ईश्वर

तथा सदाशिव कहा गया है, 

जबकि पुराणों में शिव के 

सगुण रूप के दर्शन होते हैं।


पुराणों की सगुण शिव महिमा में

शिव की अतिशय प्रिय रात्रि ही

शिवरात्रि है;

भगवान शिव जिस पर्व को 

स्वयं उत्सव रूप में मनाते हैं।

पर्वोत्सवमयीह्येषा

शिवरात्रि प्रशस्यते'।


चतुर्दशी तिथि के स्वामी 

भगवान शिव हैं,

इसी तिथि की मध्यरात्रि में 

ब्रह्मा एवं विष्णु के विवाद का

शमन करने हेतु

अनंत ज्योतिर्लिंग का 

प्राकट्य हुआ था। 

   (ईशानसंहिता)


इसी तिथि को

भगवान शिव का परिणय 

हिमालय-पुत्री पार्वती से हुआ था।

  (शिवपुराण)


माँ पार्वती रात्रि स्वरूपा

और भगवान शिव दिवा स्वरूप हैं।

इसी रात्रि के समय

शिव अपनी समस्त शक्तियों 

एवं गणों के साथ

उत्सव मनाते हैं।

   (स्कंदपुराण)

रात्रि जागरण की महिमा

इसीलिए अति विशिष्ट है।


महाशिवरात्रि के दिन

शिव तत्व को अनुभव करना ही

जागृति है;

गहन विश्वास

और जागृति के साथ

उत्सव ही शिवरात्रि है;

इसमें हम पूरी सजगता के साथ

विश्राम करते हैं।


शिवरात्रि पर हम विश्राम 

सजगता के साथ करते हैं;

योगी के लिए हर दिन 

शिवरात्रि होती है;

योग में शिव चेतना की

चौथी अवस्था है-तुरीय अवस्था;

ध्यानस्थ अवस्था,

जो जागृति,निद्रा

और स्वप्नावस्था से परे है।


महाशिवरात्रि पर

अनेकता से युक्त चेतना को 

एकरूप चेतना में

परिवर्तित करना है,

जो कि हर रचना का कारण है।


✍️मनोज श्रीवास्तव

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