सृष्टि सृजन का हर्ष

 नव संवत्सर पर

सृष्टि सृजन का हर्ष



        @मानव

धरती से लेकर गगन तक, 

चहुँओर नव पल्लव की 

सुगंध फैल रही है,

प्रकृति की प्रसन्नता

बूटे- बूटे में फैली है

और मन उत्सुकता भरी 

प्रतीक्षा में घिरा हुआ है,

मानो खेत-खलिहानों ने 

सुनहरे वस्त्र धारण कर लिए हैं;

आँगन-ओसारे नवधान्य से 

आच्छादित होने को उतावले हैं।

प्रकृति ने कैसा अद्भुत श्रृंगार रचाया है।


आम के बौर प्रौढ़ हो

टिकोरे का आकार ले रहे हैं; 

सेमल के पुष्पों ने धरा पर 

जैसे मनभावन रंगोली बना दी है;

हवा मंद सुगंधित है;

यह तैयारी है

नवसंवत्सर के स्वागत की। 


यह नया प्रात है,

नव प्रभात है;

संपूर्ण सनातन आस्था में 

उत्साह,उमंग,नव्यता की 

प्राण-प्रतिष्ठा है;

यह नूतन वर्ष

सनातन गौरव की

पुनर्स्थापना का वर्ष सिद्ध हो

ऐसी कामना के साथ

आकुल प्रतीक्षा है;

सब मङ्गल मय हो

यह अखिल विश्व की कामना है।


चैत्र मास शुभ मुहूर्तों

और पर्वों का मास है

ब्रह्मा जी ने संपूर्ण सृष्टि का सृजन

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के 

सूर्योदय से किया था;

पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक

इसी दिवस पर हुआ;

विक्रम संवत का नामकरण 

सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर हुआ,

उन्होने उज्जयिनी में शकों पर

अपनी विजय के उपलक्ष्य पर

इस संवत का नामकरण किया;

नौ देवियों की उपासना के

नौ दिवसों का शुभारंभ भी 

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही होता है।


ब्रह्मा जी ने इस तिथि को 

प्रवरा अर्थात सर्वोत्तम माना था;

चैत्र मास प्रकृति के लिए भी 

विशेष होता है,

जब प्रकृति पूर्ण यौवन पर है;

पुष्पों,पल्लवों,फलों से

वृक्ष आच्छादित हैं;

गेहूं की फसल

पककर तैयार है;

किसान कटाई-पिटाई कर 

नवान्न का भंडार

अपनी देहरी पर ला रहे हैं;

मन आह्लादित हो उठना

स्वाभाविक है;

नववर्ष के स्वागत के लिए

यह सर्वोपयुक्त मास है।


नव संवत्सर सृष्टि सृजन का उत्सव है

जिसकी वैश्विकता

और सार्वभौमिकता की

हम अपेक्षा नहीं कर सकते 

पूर्ण उत्साह के साथ

नव संवत्सर का स्वागत,

उपासन,नीराजन,पूजार्चन अपेक्षित है।


 ✒️मनोज श्रीवास्तव

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