शक्ति साधना
शक्ति साधना पर्व पर
शक्ति साधना
@मानव
उद्भव,स्थिति और संहार
अनवरत चलते रहने वाले
सृष्टि में तीन कार्य हैं
यही सृजन,पालन
और विनाश भी हैं;
इनका संचालन स्वतः होता है,
पर शक्ति के अभाव में
न सृजन संभव है,
न पालन और न संहार,
क्योंकि शक्ति जगत के
अस्तित्व का मूल कारण है।
इसी उपादेयता के कारण
भारतीय संस्कृति में
शक्ति साधना का महत्व है;
शक्ति का अर्जन,
संरक्षण और सदुपयोग
इसके उद्देश्य हैं।
जिस शक्ति के बिना
जीवन संभव नहीं,
उसी के संरक्षण
एवं सदुपयोग के बिना
आत्मकल्याण
और लोककल्याण भी
संभव नहीं है।
देव और दानव संस्कृति में
विभेद का मुख्य हेतु यही है;
इसी से कोई मानव भी
दानव बन जाता है
और दानव भी देव;
अतः शक्ति का प्रयोजन
लोकहित में
उसका कल्याणकारी प्रयोग है।
ऊर्जा ब्रह्माण्ड की
केंद्रीय शक्ति है
और उसके संचलन का आधार भी;
इसीलिए सृष्टि के कण-कण में
अपरिमित ऊर्जा व्याप्त है,
जिसका मानव ने
विविध रूपों में
अर्जन भी किया है।
शक्ति के सुनियोजित
एवं कल्याणकारी प्रयोग से
दुर्लभ अभीष्ट की प्राप्ति कर
विश्व को स्वर्ग से भी सुंदर
बनाया जा सकता है;
यही मानवता की विजय
और पराजय का भी हेतु है,
शक्ति के अमांगलिक प्रयोग से
उपजते हैं त्रिविध दुख;
लोकमंगल भाव के बिना
शक्ति दुख का कारण बनती है;
अतः मानव विजय के लिए
शक्ति साधना की सार्थकता
उसके सदुपयोग में है।
✍️मनोज श्रीवास्तव
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