करुणा गौतम बुद्ध की
बुद्ध पूर्णिमा पर्व पर
करुणा गौतम बुद्ध की
@मानव
ध्यान
पहले स्वयं में पर्याप्त था,
पर आध्यात्मिक क्षेत्र में
ध्यान के साथ
करुणा पर जोर
असामान्य घटना थी,
जो गौतम बुद्ध की महानता को,
प्रतिष्ठित करती है।
बुद्ध प्रतिपादित करते हैं
कि ध्यान करने से पहले
करुणा से परिचित हो जाओ,
तुम अधिक प्रेमपूर्ण,
अधिक दयावान,
अधिक करुणावान हो जाओ।
इसमें सन्निहित विज्ञान यही है
कि व्यक्ति संबुद्ध हो,
यदि उसके पास
करुणा भरा हृदय हो
तो संभव है कि ध्यानोपरांत
वह दूसरों को वही सौंदर्य,
वही ऊंचाई,
वही उत्सव,
जो उसने प्राप्त किया है,
पाने में मदद कर सके।
बुद्ध ने पहली बार
आत्मज्ञान को नि:स्वार्थ बनाया;
आत्मज्ञान से पहले
करुणा सीखना
अनिवार्य बनाया।
संबुद्ध हो जाने का मतलब नहीं
कि हम सद्गुरु भी हो जाएं;
सद्गुरु हो जाने का अर्थ है
कि हममें अनंत करुणा है
और हम अपने भीतर की
परमशांति के सौंदर्य में
अकेले जाने से
शर्मिंदगी महसूस करते हैं,
जो आत्मज्ञान द्वारा प्राप्त है।
हम उनकी मदद करना चाहते हैं
जो अंधकार में
अपना मार्ग टटोल रहे हैं;
इनकी मदद करना आनंददायी है।
जब हम अपने आसपास
लोगों को खिलते देखेंगे
तो यह अधिक समृद्ध
आनंद बन जाता है।
बुद्ध केवल आत्मज्ञानी नहीं,
एक आत्मज्ञानी क्रांतिकारी हैं;
वे सिखाते थे
कि जब हम ध्यान करें
और उससे हमें मौन
और शांति मिले,
आनंद के बुलबुले उठने लगें
तो उसे पूरे संसार में बाँटें।
जितना हम देंगे,
उतना ही और देने के लिए
हम सक्षम हो जाएंगे;
देने का भाव ही
अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
देने से हम कुछ खोते नहीं,
बल्कि पाते हैं;
यह हमारे अनुभवों को
कई गुना बढ़ा देता है;
जिसने कभी करुणा नहीं जानी,
उसे देने के रहस्य का भी पता नहीं;
उसे बाँटने के रहस्य का पता नहीं।
✒️मनोज श्रीवास्तव
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