शिवतत्व की प्राप्ति

 श्रावण मास के सोमवार पर

शिवतत्व की प्राप्ति


        @मानव

शिवतत्व की प्राप्ति

जग कल्याण हेतु आवश्यक है,

किंतु यह सहज नहीं है;

इसके लिए लोकहित में 

अमृत का लोभ छोड़कर 

गरल पीना पड़ता है

वह समुद्र मंथन का हो

या जीवन मंथन का।


सांसारिक गरल पिए बिना 

सुख की प्राप्ति संभव नहीं, 

विषपान वही कर सकता है, 

जिसमें शिव संकल्प का भाव हो।


सृष्टि की रक्षा के लिए 

किए गए विषपान के कारण 

वे देवों के देव महादेव कहलाए;

अतः शिव संकल्प

शिव उपासना का मूल मंत्र है,

जिसके बिना शिव उपासना अधूरी है।


महादेव पूर्णतः निर्विकार

एवं समदर्शी हैं;

वे देव और दानवों में

कोई भेद नहीं करते;

शिव तो नवसृजन के सूत्रधार

और कल्याण के पर्याय हैं;

संहार तो उनकी सिद्धि का 

साधन मात्र है।


जल विधाता की

आदि सृष्टि है,

जिसके बिना सृष्टि का 

प्रयोजन सिद्ध नहीं होता;

जड़-चेतन सभी का अस्तित्व 

जल में निहित है;

अतः जल जीवन का पर्याय है।


ग्रीष्म का गरल पीकर

धरती के संताप को

दूर करने के लिए

श्रावण अमृतवर्षा का 

अनमोल उपहार देता है;

इसी शिवसंकल्पी भाव के कारण

श्रावण मास भगवान शिव को

अत्यंत प्रिय है।


गरल पान से दग्ध कंठ वाले 

भगवान शिव का अभिषेक 

देवताओं ने इसी माह किया था;

इसी माह मृकण्ड ऋषि के 

अल्पायु पुत्र मार्कण्डेय ने 

भगवान शिव का तप करके 

उनसे दीर्घ जीवन का

अमोघ वरदान प्राप्त किया था;

अतः यह मास

दीर्घ जीवन का आधार है।


 ✒️मनोज श्रीवास्तव

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