प्रेम,समर्पण और मर्यादा
रक्षाबंधन पर
प्रेम,समर्पण और मर्यादा
@मानव
(१)
भारतीय सभ्यता
सामाजिक संबंधों की
सर्वोत्कृष्ट पाठशाला है,
जहाँ प्रत्येक संबंध का
परस्पर निर्वहन
संपूर्ण प्रेम समर्पण
और मर्यादा से होता है;
रक्षाबंधन इसका
अनुपम उदाहरण है ।
सावन आते ही बेटियों को
मायका हूक देने लगता है,
तो विदा होता हुआ सावन
कलाई में रक्षा सूत्र बंधवाने को
व्याकुल भाइयों
और प्रतीक्षा करती बहनों को
पुकारने लगता है;
भाई-बहन के स्नेह
और विश्वास के पर्व रक्षाबंधन को
पूर्णमासी के दिन
मनाकर ही विदा होता है
मनभावन सावन।
रक्षाबंधन एक अद्वितीय पर्व है,
भाई-बहन के
निष्कलंक स्नेह की मिसाल है,
भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए
प्रतिबद्ध होता है
और बहन अपने भाई की
खुशियों की प्रार्थना करती है।
यह रिश्ता स्नेह,समर्थन
और सामंजस्यपूर्णता की मिसाल है;
रक्षासूत्र एक ऐसा धागा है
जिसका आधार
रक्षा का वचन है
और स्नेहसिक्त दिव्य तिलक
उसका पुष्टिकरण।
बहन को संकट से बचाने का
विश्वास दिलाता भाई
जब अपनी कलाई आगे बढ़ाकर
राखी बंधवाता है,
तो मन ही मन
इस संकल्प को दोहराता है
और धागे में ममता
व स्नेह घोलती बहन
जब भाई को टीका लगाकर
राखी बाँधती है
तो मन ही मन
अपने भाई की प्रसन्नता पर
न्योछावर हो रही होती है।
रक्षाबंधन परस्पर
भरोसे का बंधन है
रेशम के धागे में लिपटा
भाई-बहन के स्नेह
और विश्वास का यह भाव
सदा इसी प्रकार अक्षुण्ण रहे;
इस बंधन की डोर ना छूटे।
(२)
भारतीय संस्कृति और समाज का
सर्वाधिक संवेदनशील पर्व रक्षाबंधन
सांस्कृतिक दर्शन का स्रोत है,
यह सभी लोगों में
एक-दूसरे के प्रति
रक्षा के विश्वास
अर्थात् एकता-प्रदर्शन का महापर्व है।
एकता का यह पर्व सर्वव्यापी है
जो सद्भावना एवं मित्रता का
संदेश देता आया है;
यह संबंधों का
आत्मिक आयाम है;
यह मात्र धागे का बंधन नहीं
बल्कि सशक्त अनुभूति की
अप्रतिम गाँठ है;
भावनाओं की अमर गाथा है।
✍️मनोज श्रीवास्तव
Comments
Post a Comment