सर्व भूत हिते रतः
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर
सर्व भूत हिते रतः
@मानव
भारतीय सनातन परंपरा में
श्रीकृष्ण श्रीविष्णु का
नवम् अवतार हैं
उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की
विशालता एवं व्यापकता
उन्हें पूर्णावतार बनाती है।
श्रीकृष्ण संपूर्ण भारत के
पूर्व व पश्चिम को जोड़ते हुए
देश के समस्त क्षेत्रों के शासकों के
राजनीतिक और सामरिक कौशल
एवं क्षमता का एकत्रीकरण करते हैं
तथा विश्व के वृहत्तम महायुद्ध के
संचालक,सूत्रधार
और नायक बनकर
धर्म की स्थापना करते हैं।
धर्म की ग्लानि होने पर
साधुओं के परित्राण के लिए
और दुष्टों के विनाश के लिए
प्रतिबद्ध होकर समयानुकूल
एवं युगानुकूल निर्णय लेने की
अद्भुतशक्ति से संपन्न
श्रीकृष्ण के आभामंडल के प्रति
सामान्य जन के मन में
कौतूहल,आकर्षण,अनुरक्ति,श्रद्धा
और विश्वास एक साथ प्रकट होते हैं।
श्रीकृष्ण वास्तव में
भारत की लोक चेतना के
सहज स्वर हैं;
वे मानवीय शक्तियों के साथ-साथ
दुर्बलताओं को सुगमता से
स्वीकार करने की
प्रतिबद्धता से संयुक्त हैं।
वे अनन्य भक्ति से ओतप्रोत
व्यक्तियों के योगक्षेम को
वहन करने को तत्पर हैं;
वे ज्ञानयोग के मर्मज्ञ हैं;
वे कर्मयोग के प्रतिपादक हैं;
वे भक्तियोग के समन्वयक हैं;
वे राजयोग के प्रवक्ता हैं;
वे शरणागत वत्सल हैं;
वे युद्धनीति में विशारद हैं;
वे कूटनीति के प्रयोक्ता हैं;
वे दूतनीति के संवाहक हैं;
वे धर्म के संस्थापक हैं;
वे प्रेम का आदर्श हैं;
वे मैत्री के प्रतिमान हैं;
वे बंधुत्व का निकष हैं;
वे गूढ़ तत्व के ज्ञाता हैं;
वे गुरुओं के भी गुरु हैं;
वे योगेश्वर हैं;
वे विपत्ति में सखा हैं;
वे संपत्ति में सावधानी हैं;
वे शक्ति संपन्न होने पर भी
निरभिमानी हैं;
वे अपनी चिरस्थायी स्मित से
आकर्षक हैं;
वे शत्रुओं के संहार में निपुण हैं;
वे वंशी के लोकप्रिय वादक हैं;
वे माखन-दधिप्रिय हैं;
वे 'सर्वभूत हिते रतः' का प्रमाण हैं;
वे सचमुच में योगेश्वर पूर्णावतार हैं।
क्रूर एवं अत्याचारी आततायी
एवं दुराचारी का उन्मूलन कराने में
श्रीकृष्ण संपूर्ण चतुराई की
प्रतिमूर्ति हैं।
वे सत्ता-लोभी अधर्मी
एवं कपटी से भी
युद्ध से पूर्व संधि-प्रयत्न करते हैं;
कोई मार्ग शेष न रहने पर-
'संघर्ष महाभीषण होगा' का
हुँकार भी भरतें हैं।
यदि वे वृंदावन में
प्रेम की वंशी बजाकर
मोहित करते हैं,
तो वहीं कुरुक्षेत्र में
माया के बंधन काटकर
कर्मयोग का शंख फूँकते हैं
शाँति के लिए विनम्र वार्तालाप से उनमें संकोच नहीं,
वहीं,सामर्थ्य ऐसा
कि अवहेलना पर
विराट रूप प्रदर्शितकर
कंपित कर दें शत्रुपक्ष।
सनातन के संरक्षक
योगेश्वर कृष्ण का विराट व्यक्तित्व
भारत का अतीत ही नहीं,
वर्तमान भी है
और भविष्य भी।
अपने संपूर्ण चरित्र में श्रीकृष्ण
स्वाभाविक,मानवीय
और अपनत्व से परिपूर्ण हैं;
वे देवत्व से संपृक्त होकर भी
मनुष्यत्व का प्रतिरूप दिखते हैं;
वे अनवरत मुस्कुराते हुए भी
अपने निश्चयों पर दृढ़ दिखते हैं।
श्रीकृष्ण अनासक्त भाव से
कर्म करते रहते हैं;
वे ईशोपनिषद के अमर मंत्र-
'तेन त्यक्तेन भुंजीथा' के
विग्रह स्वरूप दिखते हैं।
वे कर्म में संबद्ध रहते हैं
परंतु कर्म से लिप्त नहीं रहते हैं;
वे ज्ञान को पवित्रतम मानते हैं
परंतु कर्म की उपेक्षा नहीं करते;
वे भक्ति को प्रोत्साहित करते हैं
परंतु अकर्मण्यता को
पोषित नहीं करते हैं;
वे आश्रित के संरक्षक हैं
पर स्वधर्म को किसी भी दशा में
न त्यागने का संदेश देते हैं;
वे कर्म में कुशलता को योग बताते हैं
पर आजीविका के साधनों का
समुचित सम्मान करते हैं।
वे भारतवर्ष की सहस्रों वर्षों की
अक्षुण्ण सांस्कृतिक परंपरा के
सर्वोत्कृष्ट प्रतिनिधि हैं।
श्रीकृष्ण परिस्थितियों के अनुरूप
त्वरित एवं युक्तिसंगत
निर्णय लेते हैं;
वे संकटों में अविचलित रहते हैं;
वे कुशलतापूर्वक
आपदा प्रबंधन के
सूत्रपात कर्ता हैं।
वे विपरीत स्थितियों में
स्थिरप्रज्ञ रहने का मार्ग सिखाते हैं;
वे अनासक्त भाव से
परंतु संपूर्ण मनोयोग से
अपने कर्तव्य में
तल्लीन रहते हैं;
वे अनपेक्षा,शुचि,दक्षता,
व्यथाहीनता तथा लाभ-अलाभ,
जय-पराजय,सुख-दुख में
समान भाव की मूर्ति हैं।
श्रीकृष्ण नीति के मर्मज्ञ हैं
तो कर्म के प्रवर्तक हैं;
वे धर्म के प्रतिपादक हैं
तो अधर्म के विध्वंसक हैं;
वे राजनीति के सर्वज्ञ हैं
तो योग के प्रसारक हैं;
वे रस की खान हैं
तो भक्ति के सूर्य हैं।
वे भारत की लोक चेतना का
सबसे अधिक प्रभावी स्वर हैं;
वे भारतवर्ष की भूमि में
अनेक शताब्दियों से उद्भूत
विश्वकल्याण की सांस्कृतिक
वाग्धारा के अजस्र प्रवाह हैं।
वे राष्ट्रनीति के पथ प्रदर्शक हैं;
वे पर-राष्ट्रनीति के
प्रयोगधर्मी दिग्दर्शक हैं;
वे समाज धर्म के संरक्षक हैं।
अपने ज्ञान के अनुप्रयोग से
वे श्रद्धा के आस्पद हैं;
वे आत्म तत्व विद् हैं;
वे ज्ञान की सार्वकालिक
वरेण्यता के उद्गाता हैं;
वे गूढ़ रहस्यों के जानकार हैं;
वे सर्वश्रेष्ठ गुरु हैं।
वे 'यथेच्छसि तथा कुरु' का
उत्कृष्ट पाथेय
प्रदान करने में सक्षम हैं;
श्रीकृष्ण वास्तव में
भारतीय मनीषा की
सर्वतोन्मुखी एवं सर्वोत्तम
अभिव्यक्ति हैं;
वे 'गुरुणां गुरु' हैं;
वे जगद्गुरु हैं।
✍️मनोज श्रीवास्तव
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