गुरु-शिष्य परंपरा
गुरु-शिष्य परंपरा
@मानव
शिक्षक दिवस भारत में
गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है;
छात्रों तथा शिक्षकों के लिए
संकल्प और प्रेरणा का समय है;
चरित्र द्वारा संपूर्ण
गुणात्मक शक्ति को
ग्रहण करने का काल है।
शिक्षा से ज्ञान और उद्धार का
मार्ग खुलता है;
ज्ञान से मोक्ष का द्वार मिलता है;
इसलिए क्रमिक विकास की यह गति
केवल शिक्षा से ही संभव है।
शिक्षा मानव विकास का
शीर्ष साधन है,
जो घर से आरंभ होकर पाठशाला
और विश्वविद्यालय तक
पल्लवित होती है।
शिक्षक विद्या का
अधिष्ठाता है,
नियामक है;
वह शिष्य को लक्ष्य तक
पहुँचाने में अनन्य सहायक है।
विद्या प्रसार करने के लिए
शिक्षा माध्यम है;
विद्या ही जीवन की
सबसे कठिन साधना है,
जो ज्ञान का लक्ष्य साधती है।
ज्ञान ही मानव का
परम लक्ष्य है,
जिससे ईश्वर की प्राप्ति संभव है;
ईश मिलन ही इस शरीर का
अनन्य उद्देश्य है;
अतः अज्ञान में भटकने वाले मानव
पशु के समान हैं।
हमारा जन्म क्यों हुआ,
और मृत्यु क्यों होगी
यह रहस्य ज्ञान-अधीन है;
शिक्षा ही इस ज्ञान वृक्ष का बीज है।
शिक्षा देश का बल है,
संसार का संबल है;
जीवन का संपूर्ण सार है;
शिक्षा का तात्पर्य
विद्या के लिए मानव मात्र को
सुपात्र बनाना है।
विद्या का उद्देश्य
ज्ञानार्जन है;
ज्ञान ही ईश्वर है,
सत्य है,शिव है,सुंदर है;
यही अमृत पान है,
मानवता का अमरत्व है।
गुरु का महत्व आदि काल से
सनातन धर्म का आधार है;
जिसे युगों तक बुद्धिमानों ने
अभिसिंचित किया।
शिक्षक की गुरुता को
स्वीकार करना
समग्र समाज के लिए
हितकर होगा;
गुरु के रूप में माता-पिता का
अनौपचारिक योगदान भी
अविस्मरण योग्य है।
✍️मनोज श्रीवास्तव
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