विघ्नहर्ता गणेश

 विघ्नहर्ता गणेश


         @मानव

गणपति संप्रदाय के सर्वोच्च देवता

सनातनियों के प्रथम पूज्य

शुभारंभ के लिए सुद्धि प्रदाता हैं,

और कार्य पूरा करने की शक्ति भी;

वे विघ्न को दूर कर अभय देते हैं,

और सही-गलत का भेद बता कर

न्याय भी करते हैं। 


गणेश जी विघ्नहर्ता के रूप में

प्रथम पूज्य देव हैं

अतः हिन्दू परंपरा में

प्रत्येक शुभ कार्य की शुरुआत भी

गणेश-आराधना से होती है।


गणेश जी की पूजा से 

मनोवांछित कार्यों में 

सफलता मिलती है;

गणेश पूजन से घर,परिवार में

सकारात्मक ऊर्जा का

प्रवाह होता है।


भगवान गणेश

बुद्धि और ज्ञान के भी देव हैं;

इसलिए विद्यार्थियों के भी

उपास्य हैं। 


वे ही सिद्धि विनायक भी हैं, 

जिन्होंने हर युग में 

अलग-अलग रूपों में

अवतार लिया है,

उनकी शरीर की संरचना में 

विशिष्ट और गहरा अर्थ निहित है।


शिवमानस पूजा में 

गणेश प्रणवरूप में उल्लिखित हैं;

बड़े कान अत्यधिक ग्राह्यशक्ति

और छोटी-पैनी आँखें 

सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं;

उनकी लंबी सूँड़

महाबुद्धित्व का प्रतीक है।


गणेश जी का एकदंत 

एकाग्रता का परिचायक है;

वे लंबोदर हैं

क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि 

उनके उदर में विचरती है।


गणेश की चार भुजाएँ

चारों दिशाओं में 

सर्वव्यापकता के प्रतीक 

व सूक्ष्म शरीर की

चार आंतरिक विशेषताओं का

प्रतिनिधित्व करती हैं;

ये हैं-मन,बुद्धि,अहंकार

और विवेक।


भगवान गजानन की सवारी मूषक

बंधनों को काटता है;

तात्पर्य यह कि अगर हम

लोभ,मोह,अहंता,ईर्ष्या,द्वेष आदि

बंधनों को काट कर आगे बढ़ें,

तो हम भी उनका वाहन

बन सकते हैं;

भगवान गणेश की कृपा

हम पर निरंतर बरसती रहेगी।


मूषक उस मंत्र के समान है, 

जो अज्ञान की अनन्य परतों को

पूरी तरह काट सकता है, 

और उस परम ज्ञान को 

प्रत्यक्ष कर सकता है, 

जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं।


शब्द में बदलाव संभव हैं, 

लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते,

दिव्यता को शब्दों की बजाय 

इन प्रतीकों के रूप में दर्शाना

पूर्वजों की बुद्धिशाली

सोच का प्रमाण थी।


हम उस सर्वव्यापी का

जब भी ध्यान करें,

तब इन गहरे प्रतीकों को 

अपने मन में रखें

साथ ही यह याद रखें

कि गणेश जी हमारे भीतर ही हैं;

यही वह ज्ञान है,

जिसके साथ गणेश चतुर्थी

मनाना श्रेयस्कर है।


 ✍️मनोज श्रीवास्तव

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