गतिमान है हिन्दी

 गतिमान है हिन्दी


       @मानव

'राष्ट्रभाषा के बिना

राष्ट्र गूँगा है;

हिंदी हृदय की भाषा है

और हिंदी का प्रश्न

स्वराज्य का प्रश्न हैं।'

  (महात्मा गाँधी)


सँविधान सभा द्वारा

देवनागरी लिपि में

हिंदी को संघ की

राजभाषा के रूप में

स्वीकार करने का निर्णय 

स्वतंत्र और लोकतांत्रिक 

भारत के निर्माण के लिए 

अति महत्वपूर्ण था।


भाषा की विविधता के बावजूद

एक ऐसी भाषा को 

राजभाषा चुना गया,

जो देश के

अधिकाँश लोगों के लिए

सहज और सुलभ थी।


हिंदी में भावी भारत की

सँपर्क भाषा बनने की ताकत है;

वस्तुतः यही विचार

हिंदी की मूल ऊर्जा बना।


हिंदी ने न केवल

एक भाषा के रूप में,

बल्कि भारतीय सांस्कृतिक 

धरोहर के प्रतीक के रूप में भी 

महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


यह वह भाषा है,

जिसने देश की आत्मा को 

प्रतिबिंबित किया है

और स्वतंत्रता के बाद के भारत में

सामाजिक

और सांस्कृतिक एकता को

सुदृढ़ किया है।


तकनीकी और वैज्ञानिक 

प्रगति के साथ

हिंदी ने परंपरा

और आधुनिकता के बीच 

एक पुल का काम किया है।


आज नई पीढ़ी के लिए

हिंदी भारत बोध

और राष्ट्रीय अस्मिता का 

प्रसारक साधन है।


जब किसी राष्ट्र को

विश्व बिरादरी

महत्व और स्वीकृति देती है 

तथा उसके प्रति

अपनी निर्भरता में

वृद्धि पाती है

तो उस राष्ट्र के मान बिंदु 

स्वतः महत्वपूर्ण हो जाते हैं;

अतः भारत की विकासमान 

अंतरराष्ट्रीय स्थिति

हिंदी के लिए वरदान है।


हिंदी अपने सशक्त साहित्य, 

समृद्ध सांस्कृतिक विरासत 

और बढ़ते डिजिटल 

माध्यमों के साथ

भविष्य में

और अधिक महत्वपूर्ण भूमिका

निभाने के लिए तैयार है।


हिंदी को बढ़ावा देने के साथ-साथ

अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी

सहेजने और संरक्षित करने की

जिम्मेदारी हिंदीप्रेमियों की ही है।


 ✍️मनोज श्रीवास्तव

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