ॐ पितृ देवतायै नमः
ॐ पितृ देवतायै नमः
@मानव
वही संस्कृति टिकी रहती है
जो अपनी जड़ों से,
अपने परिवार से
जुड़ी रहती है।
सनातन धर्म में पितरों को
हर मांगलिक अवसर पर
श्रद्धापूर्वक स्मरण करने की
परंपरा है।
पितृ पक्ष
पूर्वजों को समर्पित समय है
इस पक्ष में पितरों को
प्रसन्न करने,
क्षमा माँगने
और पितृ दोष से मुक्ति के लिए
प्रयास किए जाते हैं।
पितृ पक्ष के माध्यम से
अपने पितरों को
प्रणाम करने का,
पूर्वजों की पुण्यस्मृति में
गङ्गा में स्नान करने का
समय आ गया है;
विशेष अनुष्ठान-पूजा द्वारा
जहाँ अपनी कृतज्ञता
व्यक्त की जाती है ।
आधुनिक समाज में व्यक्ति
अपने पूर्वजों के प्रति
कर्तव्यों को भूलता जा रहा है,
पितृपक्ष का आयोजन
उन्हें याद दिलाने का,
परिवार को जोड़ने का
महत्वपूर्ण माध्यम है।
मान्यता है कि पितृपक्ष में
पितृदेव धरतीलोक पर आते हैं
और सप्रेम अर्पित प्रसाद को
ग्रहण करते हैं,
प्रसन्न हो आशीर्वाद भी देते हैं;
"तर्पण-पिंडदान और श्राद्ध
वस्तुतः मृत्यु के बाद का कर्म है!"
(गरुण पुराण)
जो परिजन पृथ्वीलोक को
छोड़कर जा चुके हैं,
उनके आत्मा की शाँति
और पितरों का ऋण
उतारने के लिए
पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म
अपेक्षित है।
मृत्यु के पश्चात
मृतक व्यक्ति की आत्मा
प्रेतरूप में यमलोक की
यात्रा शुरू करता है,
इस यात्रा के दौरान
संतान द्वारा प्रदत्त पिंडों से
आत्मा को बल मिलता है;
पितरों को शाँति
एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।
(गरुण पुराण)
शास्त्रानुसार पितर
देवताओं के समान
पूजनीय हैं;
पितरों के दो रूप हैं-
देव पितर और मनुष्य पितर।
देव पितर का काम
न्याय करना है;
यह मनुष्य एवं अन्य जीवों के
कर्मों के अनुसार
उनका न्याय करते हैं;
गया में भगवान विष्णु
स्वयं पितृदेव के रूप में
निवास करते हैं।
मृत्युलोक पर हमारे पूर्वज
अपने परिवार के हर सदस्य पर
नजर रखते हैं;
प्रसन्न पूर्वज अपनी संतति की
अपरोक्ष रूप से
सहायता करते हैं,
रक्षा करते हैं
और दुखी पूर्वज श्राप देते हैं,
इसी श्राप को
पितृ दोष माना जाता है।
(गरुण पुराण)
पितृपक्ष को
केवल धार्मिक दृष्टिकोण से
नहीं देखा जाना चाहिए;
यह सनातन धर्म ही नहीं
कई विदेशी संस्कृतियों का भी
अविभाजित हिस्सा है।
पितरों की पूजा सार्वभौमिक है;
विश्व की उन्नत सभ्यताओं में
पितृ पूजा की जाती है;
चीन में छिंग मिंग,
जापान में बौन पर्व,
पितरों की पूजा का अवसर है।
इसके पीछे भावना यही है
कि पितर अपनी संतति का
भला चाहते हैं
एवं विशेष पूजा-प्रार्थना पर
अपनी संतानों की रक्षा के लिए
सक्रिय हो जाते हैं।
ब्रिटिश कथा हैरी पॉटर में
हैरी अपने मृत माता पिता से
जादुई संरक्षण माँगता है,
पिशाच से बचने के लिए
'एक्सपेक्टो पेट्रोनम'
(अर्थात 'पितृदेव संरक्षणम्',
'हे पितृगण मेरी रक्षा करो!')
मंत्र पढ़ता है।
हम अपनी जड़ों से जुड़ें,
पारिवारिक इतिहास का
स्मरण करें
और अपने पितरों के प्रति
कृतज्ञता व्यक्त करें,
जिनके कारण आज हम हैं,
यह जीवन है।
यह समय हमें
हमारी जड़ों से जोड़ता है
और हमारे परिवार के
इतिहास को
याद रखने का अवसर देता है।
✍️मनोज श्रीवास्तव
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