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Showing posts from February, 2023

त्रिशूल

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  त्रिशूल       @मानव आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक  ये वे तीन ताप हैं अपने भक्तों के लिए जिन्हे हरने के निमित्त  भगवान शंकर  त्रिशूल धारण करते हैं।  ज्ञान दृष्टि में  त्रिताप की वास्तविक सत्ता नहीं  वरन्  मिथ्या रूप है  जो तीनों कालों में  साधकों को कष्ट देती है।  भक्ति-दृष्टि में ये त्रिताप  भगवान का प्रसाद हैं  जो विष रूप होकर भी  अमृत सा परिणाम देते हैं।  कर्म दृष्टि से  त्रिताप से मुक्ति हेतु साधना करके निर्मूलन  आवश्यक है।   शरणागति मार्ग में साधक नहीं वरन् उसका आराध्य ही  उसका कर्ता है; जब कर्तृत्व है ही नहीं  भोक्तृत्व भी स्वत:  निर्मूल हो जाता है। दुख निर्मूलन के लिए  दुःख के मूल कारण का अधिष्ठान अज्ञान है। काल,कर्म,स्वभाव और गुण-मायाजाल  वे कारण हैं जिनसे त्रिताप  ताप प्रतीत होता है। ईश्वर से भिन्न हर एक मूल संसारी है। अपनी इच्छाओं के वशीभूत स्वनिर्मित मूल ही  दुःख के मूल हैं; ईश्वर, ग्रंथ अथवा धर्म से भिन्न  मूल होने के कारण दुःख से मुक्त होना असंभव है। शरीरजन्य रोगादि आधिभौतिक शूल हैं  जबकि आध्यात्मिक शूल सिर्फ स्वयं को ज्ञानी  अन्य को अज्ञानी व मूर्ख मानने को विवश कर द

यतो शिवः ततो आनन्द:

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  यतो शिवः ततो आनन्द :       @मानव चन्द्रमास का एकादश माह फाल्गुन पाँच ज्ञानेन्द्रिय  पाँच कर्मेन्द्रिय एवं एक मन का सूचक है। ग्यारह इन्द्रियों के साथ तीन लोकों का जुड़ाव से चतुर्दशी तिथि अति महत्त्वपूर्ण हो जाती है। बसंत का संक्रमण काल फाल्गुन प्रकति की मोहकता आने से पूर्व ही,  प्रकृतिस्वरूपा माता पार्वती का  सायुज्य कराता है  ताकि शीश पर जल और वायुमण्डल में  अपने डमरू से नाद-सृष्टि का रोपण करने वाले  देवाधिदेव महादेव प्रकृति की पर्याय  माता पावती के साथ मिलकर लोक कल्याण का  परिवार स्थापित कर सकें। विवाहोपरान्त जन्मे  महादेव पुत्र  व देव सेनापति कार्तिकेय प्रकृति में विद्यमान विषाणु रूपी दैत्यों का वध  अपने वाहन मोर के  माध्यम से करते हैं। पशु मानव के संयुक्तस्वरूप  गणेश के माध्यम से  पशुता से मानवता की ओर  चलने का संदेश महादेव देते हैं। गजानन को प्रदत्त  बुद्धि-विवेक का दायित्व  सिद्ध करता है बौद्धिक कार्य मे संलग्न होने पर रूप-रंग तथा सौदर्य का विषय  गौण हो जाता है।  गणेश के भोज्य कैथ व जम्बू  स्थापित करते हैं  बुद्धि-विवेक के साथ  कसैली तथा मीठी परिस्थितियों में  भाव समान होना चाहिए

श्रीरामवल्लभा

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  सीता जयंती(फाल्गुन कृष्ण पक्ष अष्टमी)पर विशेष , श्रीरामवल्लभा       @मानव श्रीराम की वामांगी,  भूमिजा, शक्तिस्वरूपा, साक्षात् महाशक्तिरूपा, जगज्जननी सीता, क्लेशों का दमन करने वाली लोक कल्याण अधिष्ठात्री हैं। भीषण अकाल से प्रजा को मुक्त कराने के लिए राजा जनक द्वारा, "सीत" का ग्रहण करना उस मूल भारतीय कृषिकर्म का जीवंत उपादान है  जिसका अवगाहन बिना हल के धनधान्य और लक्ष्मी की प्राप्ति संभव न होने का संदेश देता है। इसीलिए मैथिली श्रम और लोकरक्षण की  प्रबल भावना व औदार्य की देवी हैं जो श्रीराम के जीवन में आए संकटों में  निर्भीकता के साथ सहगागिनी रहकर उनकी आह्लादिनी शक्ति बनीं।  गिरा अरथ जल बीचि सम,  कहियत भिन्न न भिन्न  बंदउँ सीता रामपद  जिन्हहि परम प्रिय खिन्न ।    (तुलसीकृत रामचरित मानस) शब्दार्थ - सीत - हल (मैथिली में) गिरा- वाणी बीचि - लहर  ~मनोज श्रीवास्तव

अर्चन ननु स्वराज्यम्

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  स्वामी दयानन्द सरस्वती के २०० वें जन्मदिवस पर विशेष अर्चन ननु स्वराज्यम्       @मानव (१) अपने वैदुष्य,  तार्किकता,  निर्भीकता,  वक्तृत्व- कौशल,  सांगठनिकता,  ऊर्जा  और वैविध्य से  अद्यतन चमत्कृत करने वाली  प्रतिभा के धनी, भारतीय सांस्कृतिक वैभव के  प्रबल पक्षधर  और वैदिक परंपरा की  वैज्ञानिकता के प्रतिपादक; आत्मावलंबन,  आत्मगौरव,  आत्मनिर्भरता  और आत्माभिमान का  पाठ पढ़ाने वाले; देश के पतन मार्ग पर  प्रवृत्त होने के कारणों    आलस्य,  प्रमाद,  द्वेष,  विषयासक्ति,  पुरुषार्थहीनता  तथा विद्या- पराङ्मुखता की विशद समीक्षा करके उन्हें चिह्नित करने वाले; भारतीय सन्त परम्परा के विराट वृक्ष; जिन्होंने वेदों की प्रामाणिकता  प्रतिपादित की; आर्य-समाज  सामाजिक सांस्कृतिक संस्था स्थापित की; ऊँच-नीच,  छुआछूत के विरुद्ध  घोष किया; अछूतोद्धार का आंदोलन चलाया; मूर्तिपूजा में व्याप्त हो गए  आडंबर का विरोध किया;  पाखंड का सार्वजनिक खंडन किया; राष्ट्रीय गौरव का बोध कराया; राष्ट्रीय एकता के प्रयत्न किए; स्वदेशी का विचार प्रणयन किया; जन-जन को स्वराज्य के लिए  प्रेरित करने का प्रयास किया; तार्किक शास्त्रार्

शुचिता संवर्धन पर्व

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  माघी पूर्णिमा पर विशेष शुचिता संवर्धन पर्व        @मानव मघा नक्षत्र के नामपर  उत्पत्ति वाले माघ मास की  पूर्णिमा तिथि से  फाल्गुन का प्रारंभ होता है।  कठिन व्रतदान  और तपस्या से  अर्जित होने वाला  पुण्य लाभ माघ मास के स्नान मात्र से ही  प्राप्त हो जाता है।  {उत्तर खंड (प‌द्मपुराण)}  प्रत्येक नदी का जल  माघ मास के दौरान  गंगा जल तुल्य  पवित्र व दिव्य हो जाता है। माघी पूर्णिमा के दिन सकल भगवदीय सत्ता और स्वयं नारायण पृथ्वी लोक की जल राशियों में  विशेषकर गंगाजल में  अधिवास करते हैं। "माघ पूर्णिमा के दिन  स्वयं भगवान विष्णु  गंगाजी में निवास करते हैं।"      ( ब्रह्मवैवर्त पुराण )   आदि पुरुष  भगवान नारायण का  अस्तित्व भी नीर से ही है ।  उनकी सहचरी  जगन्माता लक्ष्मी नीरजा नाम ख्यात है। अत: गंगाजी में स्नान व ध्यान  और गंगा जल के स्पर्श मात्र से  आत्मिक आनंद  और आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है। माघ कल्पवास के दौरान पधारे कल्पवासी  एवं देवी-देवता इस दिन अंतिम स्नान कर निज धाम गमन करते हैं। भारत की नदियाँ मात्र जल स्रोत ही नही, अपितु हमारे  सांस्कृतिक संवेगों की  प्रवाहिकाएं है