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Showing posts from November, 2023

समृद्धि के प्रकाश का पर्व

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  देव दीपावली पर विशेष समृद्धि के प्रकाश का पर्व         @मानव भारतीय समाज का जीवन  धर्ममय होता है और सभी क्रियाकलाप  धर्म की पूर्ति के लिए होते हैं। ऋषि-मुनियों व पूर्वजों ने  पर्वों,त्योहारों,उत्सवों की स्थापना धार्मिक कर्तव्यों का स्मरण कराने और हमें सत्य,न्याय,  त्याग,परोपकार के  सिद्धांतों पर चलकर  अपना और निकटस्थ का  हित साधन करते रहने हेतु की। देवोत्थान एकादशी के दिन  देवता जाग्रत होते हैं और कार्तिक पूर्णिमा के दिन वे यमुना तट पर स्नान कर  दीपावली मनाते हैं दीप प्रज्वलित करते हैं। जनजीवन को सच्चरित्र,  आदर्शवाद,सेवा,  सद्भावना,सहयोग और सज्जनता से परिपूर्ण करने वाली प्रेरणाओं से भर देने वाली  देव दीपावली का मूल उद्देश्य इन्हीं प्रेरणाओं को ग्रहण करना है। देव दीपावली का सच्चा संदेश है कि यदि हम अपने राष्ट्र को  अपने समाज की  समृद्धिशाली संपत्ति का  स्वामी बनाना चाहते हैं, तो हम सबको मिलकर  दैन्य और दरिद्रता के कारणों का मूलोच्छेदन करना चाहिए; तभी देश की आर्थिक स्थिति के साथ समाज विकसित और सुदृढ़ हो जाएगा।  ✍️ मनोज श्रीवास्तव

स्वत्थान का अवसर

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  देवोत्थान एकादशी पर विशेष स्वत्थान का अवसर         @मानव भगवान श्रीहरि विष्णु का चार मास की योग निद्रा के बाद देवोत्थान एकादशी को जागना एक संकेत है कि हमारा आध्यात्मिक जागरण अत्यंत आवश्यक है, चार मास का ‘कैवल्य’ अर्थात एकांत, स्वयं के साथ रहना, खुद को जानना-समझना  और अपनी ऊर्जा का संचय कर पूर्ण सकारात्मकता के साथ कर्म साधना हेतु समर्पित हो जाना है। अतःदेवोत्थान एकादशी  सुषुप्तावस्था से  आध्यात्मिक जागरण का  संदेश देती है, खुद को संगठित कर स्व से समष्टि की ओर  बढ़ने का संदेश देती है। कैवल्य का समय आंतरिक प्रकृति की शुद्धि कर बाह्य प्रकृति व पर्यावरण की शुद्धि हेतु स्वयं को  समर्पित करने का अवसर प्रदान करता है, अतः हमारा अपनी जड़ता एवं विडंबनाओं से जागरण अत्यंत आवश्यक है। सार्वकालिक शिक्षक के रूप में कैवल्य ही हमारे व्यक्तित्व में गुणात्मक परिवर्तन लाता है अतः चातुर्मास में हम अतीत का मंथन, वर्तमान में जीवन और भविष्य का चितंन कर आगे बढ़ सकते हैं। चातुर्मास के दिव्य शोध का प्रयोग कर  हम जीवन में सत्य,अहिंसा  और अनुशासन सीख सकते हैं, नैतिकता,मूल्यों और श्रेष्ठ गुणों से समृद्ध हो सकते हैं। व

छठ की छटा

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  छठ की छटा         @मानव उगते सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं, पर भारतीय लोक पर्व छठ  अस्त होते सूर्य को भी  उतना ही प्रणम्य मानता है। छठ पर्व जिन जल राशियों  और सूर्य के इर्दगिर्द केंद्रित है, वे प्राकृतिक शक्तियाँ  सदियों से संपूर्ण सृष्टि को  पोषित करती आई हैं। यह पर्व विश्व को सनातन दर्शन का संदेश देता है कि अस्त होना और उगना  सृष्टि की सामान्य एवं स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो जीवन गति और स्थिरता दोनों का नाम है; सूर्यास्त और मृत्यु समानार्थ भी। सूर्य उपासना के छठ पर्व में हर तालाब नदी के किनारे, गन्ने के मंडप के नीचे, मिट्टी की वेदी पर हल्दी,कुमकुम,सिंदूर से पूरे चौक, बड़े से मिट्टी के कसोरे में छह दीपक, कोसी में भरे गए कुमकुम नारियल और अनेक फल नैवेद्य से  बिना कोई मंत्र बुदबुदाए  एक साथ झुंड में बैठी स्त्रियाँ चुपचाप सूर्य के दिव्य आलोक को अपने भीतर उतारती दृष्टिगत होती हैं। नाक से प्रारंभ होकर बालों के बीचों-बीच तक सिंदूर की चौड़ी चटक रेखा, वातावरण में तैरते  छठी मैया के गीत, स्वर में कच्चे बाँस की लचक, सूर्य की प्रतीक्षा, शक्ति का सान्निध्य और छठी मैया का आशीष  लोक जीवन की इस सहज भ

उगिऽहो सुरुज देव....!

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  उगिऽहो सुरुज देव....!         @मानव धार्मिक परंपरा, रीति रिवाज और पर्व-त्योहार  इस देश की संस्कृति के  सच्चे आभूषण हैं; भारतीयता के सार को  आकार देने में लोक,संस्कृति की भूमिका  बहुत महत्वपूर्ण रही है। छठ पूजा की पूजा-अर्चना में किसी मंत्र या पुरोहित की  आवश्यकता नहीं होती,  भगवान सूर्य व छठी मइया तक भावनाओं संवेदनाओं को लोकगीतों से अभिव्यक्त करते हैं; इन लोकगीतों में छठ पर्व की भव्यता,  भावुकता, भक्ति से लेकर पूजन के सूक्ष्म विधि-विधान तथा सूर्यदेव की महिमा गान से लेकर उनसे गुहार-मनुहार जैसी  मानवीय अभिव्यंजनाओं तक की मनोरम छवि प्रतिबिंबित होती है। छठ पर्व के लोकगीत भगवान और भक्त के बीच  संबंधों की गाथा भी हैं; हमारी भारतीय धार्मिक आस्थाएं भगवान के साथ गहरी हैं  व्रती अपनी जिद मनवाने के लिए भगवान सूर्य से भी नोकझोंक और मनुहार कर बैठते हैं। छठ पूजा की सादगी,  पवित्रता और लोकपक्ष  निर्विवाद रूप से सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं, जिसमें धन या गुरु की  प्रार्थना पर निर्भरता नहीं रहती। प्रकृति के लिए जागरूकता छठ पर्व का एक मुख्य अंग है, साथ ही सामाजिक भेदभाव का खण्डन करते हुए एक सामाजिक स्वीकृ

आनन्दमय कोष का उत्सव

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  आनन्दमय कोष का उत्सव        @मानव अन्नमयकोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष के पश्चात  प्रवेश होता है आनंदमय कोष में। अयोध्या में श्रीराम पधारे तो जड़,चेतन स्वजन,परिजन, प्रकृति व सब आनंदमय कोष में स्थित हो गए; लोगों के हृदय में आनंद के अनगिनत दीपक जल गए, भक्ति मणियों के प्रकाश से  द्वैत मिट गया। आनंद की यह स्थिति  मेरा-तेरा की मिथ्या स्थिति से  ऊपर उठकर चित्त के उस प्रांजल शिखर पर स्थित हो जाना है, जहाँ प्रवृत्ति और निवृत्ति का भेद समाप्त होकर केवल राम तत्व ही शेष रह जाए। प्रेम से भर जाने में ही तो आनंद है; सनातन संस्कृति में हम अहं का विसर्जन करते हैं; राम की प्राप्ति के बिना  आनंद संभव ही नहीं है; राम के बिना दीपक में तेल  और बाती जल सकती है,  पर आनंद का प्रकाश संभव नहीं; यह आनंदमय कोष है परमानंद, अखंडानंद,  आत्मानंद,विशुद्धानंद  व चिन्मयानंद की प्राप्ति। ज्ञान-प्रकाश के अनावरण का नाम ही  दीपावली है, जिसमें संसार में जड़-चैतन्य के मिथ्या भेद को जानकर  साधक अपने अंदर ज्ञान दीप प्रज्वलित करता है। ज्ञान के द्वारा सुख,शांति  और आनंद प्राप्त करना ही दीपावली का प्रकाश है। वास्तविक

धन त्रयोदशी

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  धन त्रयोदशी         @मानव धनतेरस पर्व के दिन हम यह मानें  कि हम जो चाहते हैं, वह धन हमारे पास है। ज्ञान भी धन है, यह सबसे बड़ा धन है; अपने ज्ञान को संजोना  प्रचुरता का अनुभव करना  जीवन में स्वयं को धन्यभागी अनुभव करना,  कृतज्ञता का अनुभव करना सबसे बड़ा धन है। स्वास्थ्य भी धन है; स्वास्थ्य बिना भौतिक धन  अनुपयोगी हो सकता है, देवताओं के वैद्य धन्वंतरि की जयंती धन त्रयोदशी को ही है, वे समुद्र मंथन में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। अत: धन त्रयोदशी पर  धन्वंतरि का ध्यान कर  अपने स्वास्थ्य के प्रति  सचेष्ट रहने की प्रेरणा मिलती है; क्योंकि मानव शरीर भी  ईश्वर प्रदत्त बड़ा उपहार है, यह भी धन है। हमारी चेतना में  गुण है कि जो बीज बोते हैं, वही प्रकट होता है; यदि हम स्वीकार करें कि मेरे पास पर्याप्त धन है,  तब हम धन के पीछे पागल नहीं होते; इससे चेतना में धैर्य आता है, हिम्मत आती है। कहा गया है, उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः, अर्थात,जो मेहनत करता है और शेर जैसा निर्भय चलता है, लक्ष्मी भी उसी के पास आती हैं; अतः ‘अभाव के भाव’ को चेतना से उखाड़ फेंकना  धनतेरस का प्रयोजन है। अपनी स्थिति को स्वीक