सीता नवमी पर 'सीतायाः चरितं महत्' @मानव ' सीतायाः चरितं महत् ' ( वाल्मीकि ) रामकथा में महत्वपूर्ण चरित्र है तो वह सीता का ही है। तुलसी दास ने सबसे पहले 'सीता' शब्द का प्रयोग मंगलाचरण में किया ' सीतारामगुणग्राम- पुण्यारण्य विहारिणौ।' वहाँ सीता राम दोनों की कथा है। स्वतंत्र रूप में सीता की वंदना तुलसी ने 'मानस' में की है उद्भववस्थिति संहारकारिणीम्, क्लेशहारिणीम्, सर्वश्रेयस्करी सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ।। यह माँ संसार को प्रकट करने वाली, पैदा करने वाली, फिर पालन करने वाली अंततः सँहार करने वाली भी है। वे क्लेश हरने वाली हैं, सर्व कल्याण करने वाली हैं सबका मङ्गल करने वाली हैं, वे राम वल्लभा हैं अतः उन्हें प्रणाम है। सीता तो जगदम्बा हैं, परमात्मा की आह्लादिनी शक्ति हैं, पतञ्जलि के योगसूत्र के पाँच स्वाभाविक क्लेश राग,द्वेष, अविद्या,अस्मिता और जिजीविषा माँ सीता का स्मरण मात्र से मिट जाते हैं। 'मानस' में जो प्रधान पात्र हैं, उनका श्रेय (कल्याण) प्रत्यक्ष या परोक्ष सीता ने ही किया है; उनके श्रेय का प्रथम पात्र सुग्रीव हैं ज
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