Posts

Showing posts from August, 2024

सर्व भूत हिते रतः

Image
  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सर्व भूत हिते रतः             @मानव भारतीय सनातन परंपरा में  श्रीकृष्ण श्रीविष्णु का नवम् अवतार हैं  उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विशालता एवं व्यापकता  उन्हें पूर्णावतार बनाती है।  श्रीकृष्ण संपूर्ण भारत के पूर्व व पश्चिम को जोड़ते हुए  देश के समस्त क्षेत्रों के शासकों के राजनीतिक और सामरिक कौशल एवं क्षमता का एकत्रीकरण करते हैं तथा विश्व के वृहत्तम महायुद्ध के संचालक,सूत्रधार और नायक बनकर धर्म की स्थापना करते हैं।  धर्म की ग्लानि होने पर  साधुओं के परित्राण के लिए  और दुष्टों के विनाश के लिए  प्रतिबद्ध होकर समयानुकूल  एवं युगानुकूल निर्णय लेने की अद्भुतशक्ति से संपन्न  श्रीकृष्ण के आभामंडल के प्रति सामान्य जन के मन में  कौतूहल,आकर्षण,अनुरक्ति,श्रद्धा और विश्वास एक साथ प्रकट होते हैं। श्रीकृष्ण वास्तव में भारत की लोक चेतना के  सहज स्वर हैं; वे मानवीय शक्तियों के साथ-साथ दुर्बलताओं को सुगमता से  स्वीकार करने की  प्रतिबद्धता से संयुक्त हैं। वे अनन्य भक्ति से ओतप्रोत  व्यक्तियों के योगक्षेम को  वहन करने को तत्पर हैं; वे ज्ञानयोग के मर्मज्ञ हैं; वे कर्मयोग के प्र

प्रेम,समर्पण और मर्यादा

Image
  रक्षाबंधन पर प्रेम,समर्पण और मर्यादा        @मानव (१) भारतीय सभ्यता सामाजिक संबंधों की  सर्वोत्कृष्ट पाठशाला है, जहाँ प्रत्येक संबंध का  परस्पर निर्वहन संपूर्ण प्रेम समर्पण और मर्यादा से होता है; रक्षाबंधन इसका अनुपम उदाहरण है ।  सावन आते ही बेटियों को  मायका हूक देने लगता है, तो विदा होता हुआ सावन  कलाई में रक्षा सूत्र बंधवाने को व्याकुल भाइयों और प्रतीक्षा करती बहनों को पुकारने लगता है; भाई-बहन के स्नेह और विश्वास के पर्व रक्षाबंधन को  पूर्णमासी के दिन मनाकर ही विदा होता है  मनभावन सावन। रक्षाबंधन एक अद्वितीय पर्व है, भाई-बहन के निष्कलंक स्नेह की मिसाल है, भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध होता है और बहन अपने भाई की  खुशियों की प्रार्थना करती है। यह रिश्ता स्नेह,समर्थन और सामंजस्यपूर्णता की मिसाल है; रक्षासूत्र एक ऐसा धागा है  जिसका आधार रक्षा का वचन है और स्नेहसिक्त दिव्य तिलक उसका पुष्टिकरण। बहन को संकट से बचाने का  विश्वास दिलाता भाई जब अपनी कलाई आगे बढ़ाकर राखी बंधवाता है, तो मन ही मन इस संकल्प को दोहराता है  और धागे में ममता व स्नेह घोलती बहन जब भाई को टीका लगाकर  राखी बा

अनमोल स्वतंत्रता

Image
  अनमोल स्वतंत्रता        @मानव स्वाधीनता दिवस भारत के लिए दो तरह की अनुभूतियाँ  लेकर आता है पहला, जिन असंख्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संघर्ष के कारण हम ब्रिटिश दासता के चंगुल से मुक्त हुए उनके प्रति श्रद्धा के भाव मन में स्वयं उपज जाते हैं। दूसरा देश को आजादी के साथ  बंटवारे का दंश भी झेलना पड़ा विभाजन के त्रासद की मार के बाद नए देश बने पाकिस्तान से  लाखों हिंदू और सिख शरणार्थी देश के अनेक हिस्सों के साथ  दिल्ली में भी आए। ये वे सौभाग्यशाली थे जो बचकर आ गए थे अन्यथा तो लाखों अभागे  अमानवीय हिंसा व अत्याचार में काल कवलित हुए थे। विभाजन की त्रासदी इतनी वीभत्स थी कि शरणार्थियों का रेला आता-समाता रहा। वे पहाड़ों से लेकर जंगलों तक जाकर बसे; फीनिक्स पक्षी की तरह राख से जिंदा होकर फिर उठ खड़े हुए। सरकार ने उन्हें बोझ समझा, उन्हें ताने सुनाए जा रहे थे जबकि उनकी यह दुर्गति उन्हीं सत्ता के दलालों का त्रासद उपहार थी। देश के बंटवारे के समय  इंसानियत एक तरह से मरी पड़ी थी, तब देश में सरकार नाम की  कोई चीज मुश्किल से ही थी; सब तरफ अराजकता और अव्यवस्था का आलम था; उस दौर में निःस्वार्थ भाव से 

समुद्र मंथन

Image
  समुद्र मंथन         @मानव हमारा हृदय ही सागर है, जिसमें अनेकानेक  आध्यात्मिक ज्ञान- विज्ञान  और भक्ति रूपी दिव्यरत्न भरे हैं। आज भी संसार में  सकारात्मक और नकारात्मक विचारधारा के लोगों के मध्य  द्वंद्व चलता रहता है। परमात्मा रूपी अमृत को प्राप्त करने के लिए हमें अपने मन रूपी समुद्र को भक्ति,ज्ञान और वैराग्य रूपी  मथानी से मथना पड़ेगा। सबसे पहले हमारे मन का विकार रूपी विष ही बाहर निकलेगा; इस विष को भगवद्भक्ति के अवलंबन से  हमें ग्रहण करना होगा। मन के मंथन की प्रक्रिया में  पहले अभद्र विचार ही बाहर निकलेंगे, यही विचार विषतुल्य हैं।  लोक कल्याण के लिए यदि हमें तिरस्कार,उपेक्षा, शारीरिक या मानसिक वेदना स्वरूप विष पीना पड़ता है, तो न ही उसे किसी से  अभिव्यक्त करना चाहिए, ना ही उससे व्यथित होना चाहिए अर्थात उसे न ही बाहर निकालें और ना ही अंदर स्थान दें; इससे समाज विकृत नहीं होगा और स्वयं भी वेदना नहीं होगी। भगवान शिव कल्याण के प्रतीक हैं; शिवत्व उसे ही प्राप्त होता है,  जो सबकी वेदना दूर करने के लिए स्वर्य को समर्पित कर देता है; ऐसे ही जग ताप हरना भगवान नीलकण्ठ का उद्देश्य है। समुद्र मंथन

शिवतत्व की प्राप्ति

Image
  श्रावण मास के सोमवार पर शिवतत्व की प्राप्ति         @मानव शिवतत्व की प्राप्ति जग कल्याण हेतु आवश्यक है, किंतु यह सहज नहीं है; इसके लिए लोकहित में  अमृत का लोभ छोड़कर  गरल पीना पड़ता है वह समुद्र मंथन का हो या जीवन मंथन का। सांसारिक गरल पिए बिना  सुख की प्राप्ति संभव नहीं,  विषपान वही कर सकता है,  जिसमें शिव संकल्प का भाव हो। सृष्टि की रक्षा के लिए  किए गए विषपान के कारण  वे देवों के देव महादेव कहलाए; अतः शिव संकल्प शिव उपासना का मूल मंत्र है, जिसके बिना शिव उपासना अधूरी है। महादेव पूर्णतः निर्विकार एवं समदर्शी हैं; वे देव और दानवों में कोई भेद नहीं करते; शिव तो नवसृजन के सूत्रधार और कल्याण के पर्याय हैं; संहार तो उनकी सिद्धि का  साधन मात्र है। जल विधाता की आदि सृष्टि है, जिसके बिना सृष्टि का  प्रयोजन सिद्ध नहीं होता; जड़-चेतन सभी का अस्तित्व  जल में निहित है; अतः जल जीवन का पर्याय है। ग्रीष्म का गरल पीकर धरती के संताप को दूर करने के लिए श्रावण अमृतवर्षा का  अनमोल उपहार देता है; इसी शिवसंकल्पी भाव के कारण श्रावण मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। गरल पान से दग्ध कंठ वाले  भगवान शिव का