श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ ...

 'श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ ...'


        @मानव

अर्पण,तर्पण और समर्पण 

भारतीय संस्कृति के 

आधारभूत स्तंभ हैं;

आज हम जो कुछ भी हैं, 

माता-पिता और पूर्वजों के 

आशीर्वाद से हैं,

अतः पितृपक्ष आत्म-अस्तित्व

और जड़ों से जुड़ने का 

पाक्षिक दिव्य महोत्सव है। 


सामर्थ्यवान और अनुग्रहशील

परम कृपालु पितृसत्ता

हम सभी का

सर्वथा मंगल करे,

हम अपने पूर्वजों के प्रति 

श्रद्धा भाव रखें।

'पुनंतु मा पितर: सौम्यास: 

पुनंतु मा पितामहा:

पुनंतु प्रपितामहा:

पवित्रेण शतायुषा।

पुनंतु मा पितामहा:

पुनंतु प्रपितामहा:

पवित्रेण शतायुषा 

विश्वमायुर्व्यश्नवै।।'


परिवार की प्रसन्नता देखकर 

पितृ प्रसन्न होते हैं।

अतः पितृ पक्ष में प्रसन्न रहकर

दान-पुण्य करना चाहिए। 

'श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ ...'

(जो श्रद्धा से किया जाए, 

वह श्राद्ध है।)


अपने पूर्वजों के प्रति स्नेह, 

विनम्रता,आदर व श्रद्धा भाव से

विधिपूर्वक किया जाने वाला

मुक्त कर्म ही श्राद्ध है;

यह पितृ ऋण से मुक्ति का 

सरल व सहज उपाय है;

इसे पितृयज्ञ भी कहा गया है।


सनातन में माता-पिता की सेवा

सबसे बड़ी पूजा मानी गई है,

जन्मदाता माता-पिता को 

मृत्यु-उपरांत लोग

विस्मृत न कर दें,

इसलिए उनके श्राद्ध का 

विशेष विधान है। 


आर्ष ग्रन्थों में

पितृ-ऋण सर्वोपरि है,

जिसमें पिता के अतिरिक्त 

माता तथा वे सब बुजुर्ग हैं,

जिन्होंने हमें जीवन धारण करने 

तथा उसका विकास करने में 

निःस्वार्थ सहयोग दिया;

लोकभाषा में वही पितर हैं।


शाश्वत,सार्वभौमिक,समीचीन,

सत्य को उजागर करने

और पूर्वजों से संबंध 

स्थापित करने की

वैज्ञानिक विधि श्राद्ध है।


श्राद्ध और तर्पण-विधि

गङ्गा के किनारे

अथवा तीर्थों में होती है;

(ब्रह्मकपाल,मेघंकर,लोहागर 

सिद्धनाथ,प्रयाग,पिंडारक 

लक्ष्मणबाण और गया

तथा गङ्गा के तट

प्रतिनिधि तीर्थ हैं;)

गङ्गा के जल में वह तत्व है, 

जो सीधा पितरों के साथ 

सँवाद करा देता है।


श्राद्ध पूर्वजों के प्रति

सच्ची श्रद्धा का प्रतीक है; 

हिंदू धर्म में 

प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारंभ में

माता-पिता,पूर्वजों को 

प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है।


पूर्वजों की वंश परंपरा से ही

हम यह जीवन देख रहे हैं, 

जीवन का आनंद पा रहे हैं;

पितृपक्ष में श्राद्ध करने से 

पितृगण वर्षभर तक

प्रसन्न रहते हैं।


पितरों का पिंडदान

करने वाला गृहस्थ

दीर्घायु,पुत्र-पौत्रादि,यश, 

स्वर्ग,पुष्टि,बल,लक्ष्मी, 

सुख-साधन

तथा धन-धान्य आदि की

प्राप्ति करता है।

 ✍️मनोज श्रीवास्तव

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