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त्रिभुवन सुखदाता

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  पावन गङ्गा दशहरा पर त्रिभुवन सुखदाता        @मानव निर्मल और पवित्र है माँ गङ्गा का जल, अध्यात्म से लेकर विज्ञान तक इसके आगे नतमस्तक है; पूर्वजों के तर्पण से लेकर  पाप मुक्ति व मोक्ष प्रदान करने वाली माँ गङ्गा सौभाग्य का सूचक हैं। भारतीय ऋषि-महर्षियों को गङ्गा के वैज्ञानिक महत्व एवं अद्‌भुत प्राकृतिक संरचना का ज्ञान था, तभी तो शास्त्र-पुराणों में गङ्गा भारतीय संस्कृति का प्राण है। गङ्गा माँ भारत की प्राण हैं।  वह जीवनदायिनी और मोक्षप्रदायिनी हैं उनके दर्शन मात्र से पाप और शोक नष्ट हो जाते हैं। गङ्गा एक पवित्र नदी मात्र नहीं, बल्कि सभ्यता की अधिष्ठात्री हैं, जो आध्यात्मिक महत्व के कारण हमारी संस्कृति में आदर के  सर्वोच्च सोपान पर हैं। गङ्गा माँ के आँचल में  हर भारतीय शिशु की भाँति  अठखेलियाँ कर आशीर्वाद की आश्वस्ति पाता है, जिनके तट पर बैठ वह दुख-सुख सब कह पाता है, जिनके जल से अभिषेक कर  वह नई ऊर्जा से भर जाता है; गंग सकल मुद् मङ्गल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला।।   (गोस्वामी तुलसीदास) भारत के लिए माँ गङ्गा किसी वरदान से कम नहीं हैं, वह सतयुग से लेकर आज तक करोड़ों श्रद्धालुओं को शांति,

शिवाजी राज्यारोहण :स्वाभिमान का अभिषेक

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ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी शालिवाहन शक संवत १५९६ (छह जून,1674 ई.)  शिवाजी राज्यारोहण :स्वाभिमान का अभिषेक         @मानव छत्रपति शिवाजी का नाम सुनते ही जहाँ वीरों की बाँहें फड़कने लगती थीं तो वहीं दुश्मनों के खेमे में  भगदड़ मच जाती थी; शिवाजी न सिर्फ जनतंत्र को  स्थापित करने में सफल हुए,  बल्कि उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि बुद्धि-कौशल,साहस व सांस्कृतिक उन्नयन के बलबूते कोई भी संगठन खड़ा किया जा सकता है। रायगढ़ दुर्ग में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की सिंहगर्जना थी, जो आज भी पूरे देश में गूँजती है। शिवाजी का राज्याभिषेक  भारतीय संस्कृति के इतिहास की अनमोल घटना है जो वेदकालीन राज्याभिषेक की याद दिलाता है; और जिसने भारत के जन-मन को बहुत ज्यादा प्रभावित किया।    यह उस दौर का ऐसा महान सांस्कृतिक और राजनीतिक महोत्सव था जिसका उल्लास आज तक बना हुआ है।  शिवाजी ने जिस तरह  स्वराज्य का संकल्प लेकर  मुगलों से लोहा लिया, हिंदुत्व-मूल्यों की रक्षा के लिए सदा संघर्ष करते रहे, उसी संकल्प से राज्यारोहण भी किया। राज्याभिषेक शिवाजी की ही बनाई हुई  महत्वाकांक्षी योजना थी, 

बुढ़वा मङ्गल

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  बुढ़वा मङ्गल         @मानव मङ्गलवार को हनुमान जी की उपासना से  आसन्न संकट दूर होते हैं। ज्येष्ठ मास के मङ्गल के पर्व को मास नामानुरूप बड़ा मंगल भी कहते हैं। श्रीहनुमान जी चिरंजीवी हैं  और हर युग में उनकी उपस्थिति रहती है। अनेक कथाओं के आधार पर यह मान्यता है कि किसी न किसी का मान मर्दन करने के लिए हनुमानजी ने हर युग में वृद्ध वानर का रूप  धारण किया है। अतः हनुमान जी के वृद्ध स्वरूप की इस दिन पूजा की जाती है, और इन मङ्गलवार को बुढ़वा मङ्गल के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है।  ✍️ मनोज श्रीवास्तव

देवर्षि नारद

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  नारद जयंती पर देवर्षि नारद          @मानव ब्रह्मा जी के छह पुत्रों में से एक नारद जी ने कठिन तप-साधना के बाद  देवर्षि की उपाधि प्राप्त की; तपोबल से ही वे भगवान के मन में उठने वाले विचारों को समझ जाया करते हैं;  इसीलिए वे भगवान का मन कहलाते हैं।  उन्होंने प्रत्येक युग में  घूम-घूम कर ईश्वर के प्रति भक्ति भाव जगाया है। वे भूत,वर्तमान और भविष्य,  तीनों कालों के ज्ञाता हैं; जो धर्म के प्रचार तथा लोक- कल्याण हेतु  सदैव प्रयत्नशील रहते हैं; अतः सभी युर्गों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गों में नारद जी महत्वपूर्ण हैं। देवर्षि नारद भक्ति के प्रधान आचार्य हैं; उनके रचित भक्ति सूत्रों में  भक्ति तत्वों की बड़ी सुंदर व्याख्या है। देवर्षि नारद सभी वेदों के ज्ञाता, इतिहास और पुराणों के मर्मज्ञ, भूत,वर्तमान और भविष्य की जानकारी रखने वाले, प्रखर वक्ता, नीतिज्ञ, ज्ञानी,कवि,संगीतज्ञ,  शंकाओं का समाधान करने वाले तथा अपार तेजस्वी हैं। वे ज्ञान के स्वरूप, विद्या के भंडार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर और हर प्राणी के हितकारी हैं।            ( महाभारत ) वे ईश्वर के परम प्रिय और कृ

करुणा गौतम बुद्ध की

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  बुद्ध पूर्णिमा पर्व पर करुणा गौतम बुद्ध की         @मानव ध्यान  पहले स्वयं में पर्याप्त था, पर आध्यात्मिक क्षेत्र में ध्यान के साथ करुणा पर जोर असामान्य घटना थी, जो गौतम बुद्ध की महानता को, प्रतिष्ठित करती है। बुद्ध प्रतिपादित करते हैं कि ध्यान करने से पहले  करुणा से परिचित हो जाओ, तुम अधिक प्रेमपूर्ण, अधिक दयावान, अधिक करुणावान हो जाओ। इसमें सन्निहित विज्ञान यही है कि व्यक्ति संबुद्ध हो, यदि उसके पास करुणा भरा हृदय हो तो संभव है कि ध्यानोपरांत वह दूसरों को वही सौंदर्य,  वही ऊंचाई, वही उत्सव, जो उसने प्राप्त किया है,  पाने में मदद कर सके। बुद्ध ने पहली बार आत्मज्ञान को नि:स्वार्थ बनाया; आत्मज्ञान से पहले करुणा सीखना अनिवार्य बनाया। संबुद्ध हो जाने का मतलब नहीं कि हम सद्‌गुरु भी हो जाएं; सद्‌गुरु हो जाने का अर्थ है  कि हममें अनंत करुणा है  और हम अपने भीतर की  परमशांति के सौंदर्य में अकेले जाने से शर्मिंदगी महसूस करते हैं,  जो आत्मज्ञान द्वारा प्राप्त है।  हम उनकी मदद करना चाहते हैं जो अंधकार में अपना मार्ग टटोल रहे हैं; इनकी मदद करना आनंददायी है। जब हम अपने आसपास  लोगों को खिलते देखे

मतदान

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  लोकतंत्र का पर्व मतदान         @मानव मतदान की महिमा विशिष्ट है; लोकतंत्र में जनमत ही निर्णायक है; जनमत का प्रयोग मतदान से ही संभव है, यह स्वाभाविक है। मतदान ही लोकतंत्र का भाजक है; नागरिक अधिकार का स्रोत है; अन्य दानों की तरह ही आत्मिक ऊर्जा का स्रोत है।  मतदान को राजनीति या समाज या व्यक्ति से नहीं जोड़ना, यह आत्मसत्ता का भजनफल है; मतदान तंत्र का बल है, तंत्र के बिना मंत्र भी व्यर्थ ही सिद्ध होगा। राजा हो या प्रजा, दोनों का संपूर्ण प्रभाव  मतगणना से ही लगाना  सैद्धांतिक है; व्यावहारिकतः सही मतदान की सही मतगणना ही जनजीवन की राह है।  मतदान का दर्शन प्रथम नागरिक को भी ज्ञात हो और अंतिम नागरिक को भी; सो,मतदाता से लोकतंत्र का अस्तित्व है; वर्तमान युग में मतदान ही  सबसे बड़ा दान है।   ✒️मनोज श्रीवास्तव

'सीतायाः चरितं महत्'

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  सीता नवमी पर 'सीतायाः चरितं महत्'        @मानव ' सीतायाः चरितं महत् '   ( वाल्मीकि ) रामकथा में महत्वपूर्ण चरित्र है तो वह सीता का ही है।  तुलसी दास ने सबसे पहले  'सीता' शब्द का प्रयोग  मंगलाचरण में किया  ' सीतारामगुणग्राम- पुण्यारण्य विहारिणौ।' वहाँ सीता राम दोनों की कथा है। स्वतंत्र रूप में सीता की वंदना तुलसी ने 'मानस' में की है  उद्भववस्थिति संहारकारिणीम्, क्लेशहारिणीम्, सर्वश्रेयस्करी सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ।।  यह माँ संसार को प्रकट करने वाली, पैदा करने वाली, फिर पालन करने वाली अंततः सँहार करने वाली भी है। वे क्लेश हरने वाली हैं, सर्व कल्याण करने वाली हैं सबका मङ्गल करने वाली हैं, वे राम वल्लभा हैं अतः उन्हें प्रणाम है।   सीता तो जगदम्बा हैं, परमात्मा की आह्लादिनी  शक्ति हैं, पतञ्जलि के योगसूत्र के पाँच स्वाभाविक क्लेश राग,द्वेष, अविद्या,अस्मिता और जिजीविषा  माँ सीता का स्मरण मात्र से मिट जाते हैं। 'मानस' में जो प्रधान पात्र हैं,  उनका श्रेय (कल्याण)  प्रत्यक्ष या परोक्ष सीता ने ही किया है; उनके श्रेय का प्रथम पात्र सुग्रीव हैं ज