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Showing posts from June, 2022

योग: कर्मसु कौशलम्

  योग: कर्मसु कौशलम् योग- एक परिचय  योग  भारतीय प्राच्य विद्या, भारतीय संस्कृति का अंश; एक पूर्ण शास्त्र, विश्व मानव की विरासत, चित्त वृत्तियों का निरोध, संसार सागर से पार होने की  युक्ति वाली साधना। सनातन परंपरा में रचा-बसा  गुँथा जीवन शैली का अनिवार्य भाग । मनोवांछित,इच्छित मार्ग पर अग्रसर होने का  एकमात्र साधन। सिद्धि समाधान और सम्पूर्णता के लिए सुझाए मार्गों में प्रमुख मार्ग है योग। धर्म और विद्या  दोनों का रक्षक है योग। साधना की चरमावस्था में जब परमात्मा से एकाकार हो, आत्मा उसका साक्षात्कार करती है, आत्मा परमात्मा का यही मिलन  योग है। ( समाधि अर्थ में) मन एवं आत्मा  तथा आत्मा और परमात्मा, इनका सँयोग योग है। ( अग्निपुराण के अनुसार) प्रकृति और पुरुष में भेद है परंतु पुरुष का  आत्मस्वरूप में स्थित हो जाना  योग है। ( सांख्य दर्शन में) जब इंद्रियाँ मन के साथ और मन अविचल बुद्धि के साथ  स्थिर हो जाता है  यही अवस्था योग की है। ( कठोपनिषद से) मनुष्य एकाग्र चित्त होकर निष्काम भाव से  कर्म करते हुए  योग को सिद्ध करता है  यही है योग: कर्मसु कौशलम्। ( श्रीमद्भगवत गीता ) चित्तवृत्तियों के  निरो

अग्निवीर के बहाने

  अग्निवीर के बहाने प्रस्तुति- मनोज श्रीवास्तव मेरी नजर में अग्निवीर योजना वेतन/अनुदान/वित्त पोषित एनसीसी का मुफ्त सार्टिफिकेट पाने का परिवर्धित स्वरूप है जो 16 से 25 की ही उम्र में हम पाते रहे हैं।दूसरे शब्दों में जब अग्निवीर अनिवार्य नहीं है तो यह चार साल का स्कॉलरशिप सहित हथियार चलाने, डिग्री पाने, अन्य सेवा में वरीयता के साथ देश प्रेम का जज्बा पैदा करने का एक कोर्स ही तो हुआ! पर मुफ्त राशन, मुफ्त बिजली, मुफ्त घर, मुफ्त शौचालय, मुफ्त ऋण से मुफ्तखोरी की आदत लगाकर अगर 23 साल की उम्र में 4 साल बाद 11 लाख देकर नया काम धंधा शुरू करने का विकल्प दोगे तो वे भड़केंगे ही।स्पष्ट है यह मुद्दा स्वयं सरकार जनित ही है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में प्रत्येक नागरिक को सैनिक शिक्षा दे पाना जटिल व असंभव है। पर प्रतिवर्ष 50,000 युवा नागरिकों को यह शिक्षा उपलब्ध कराकर उसी लक्ष्य को पाने के लिए प्रथम कदम के रूप में अग्निवीर योजना का स्वागत होना चाहिए। अगर अच्छे बच्चे 17 साल की उम्र में काम पा जाएंगे और 4 साल बाद डिग्री व वित्तीय सशक्त होकर नौकरी में वरीयता का हथियार साथ ले वापस आएंगे तो बाबू की

पावनि गङ्गा

  गङ्गा दशहरा पर विशेष पावनि गङ्गा समस्त तीर्थों का समन्वितस्वरूप  तीर्थों की मूर्धन्या सर्वतीर्थमयी। परमपुनीत त्रिदेव की साक्षात विग्रहरूप विधि हरिहरमयी । जलमय रूप में द्रवित ब्रह्मा जी का रूप  ब्रह्मद्रवा। स्वर्गलोक में मंदाकिनी(आकाशगंगा) पृथ्वीलोक में भागीरथी  पाताललोक में भोगावती गंगा  बनी त्रिपथगा। संस्कृति की प्राण, भक्तों की मान, ज्ञान का आधार, चरैवेति सूत्र की निर्देशिका, लोकमाताओं में प्रथमगण्य, कर्मनिष्ठों के लिए स्वावलंबन की सतत प्रेरक, समस्त पुरुषार्थ व शक्तियों के  सूक्ष्मरूप का अधिष्ठान, सकल लोकहितार्थ अवतरण, दर्शन,स्पर्श,पान एवं स्नान से  महापातकियों के भी पाप का शमन। गंगे तव दर्शनात् मुक्ति:। ~ मनोज श्रीवास्तव १०/०६/२०२२

भाषाई अन्याय के विरुद्ध आशा

  भाषाई अन्याय के विरुद्ध आशा दिनाँक 4 जून को दैनिक जागरण समाचार पत्र में डॉ विजय अग्रवाल ने अपने लेख "प्रशासन का भी भारतीयकरण होना चाहिए" में सिविल सेवा परीक्षा में औपनिवेशिक भाषा अंग्रेजी के प्रभुत्व एवं जकड़न को खत्म किए जाने की वकालत की है।परीक्षा में व्याप्त भाषाई अन्याय की अंदरूनी जटिलताओं के कारण सिविल सेवा परीक्षा में औसतन 5 प्रतिशत छात्र ही हिंदी माध्यम से परीक्षा देना पसंद करते हैं और उनमें सफलता का प्रतिशत तो नगण्य है।अतः गैर अंग्रेजी भाषियों को भाषा संबंधी पूर्ण स्वतंत्रता देने की आवश्यकता है।यद्यपि अंग्रेजी को वैश्विक भाषा के नाम पर थोपने का काम होता रहा है और नौकरशाही भी इसमें बाधा पैदा करने की कोशिश करती रही है। क्योंकि वर्तमान भाषाई व्यवस्था कुछ मुट्ठी भर लोगों को एक अप्रत्यक्ष विशेषाधिकार देती है। पिछले कुछ वर्षों में शासन प्रशासन द्वारा आशा जागृत करने वाले कदम उठाए गए हैं।यथा भाषाओं को गर्व से सिर उठाकर संवाद करने का अवसर मिला है।सरकार ने ईमेल में "इण्डिया" के स्थान पर "भारत" शब्द रखने का निर्णय लिया है।"वोकल फॉर लोकल"के नारे से

कश्मीर के बहाने

  कश्मीर के बहाने कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ जंग चल रही है। टारगेट किलिंग में मारे गए हिंदुओं का बलिदान सेना और पुलिस के बलिदानों से कहीं कम नहीं।तथाकथित कश्मीरियत की बात करने वाले राजनीतिक दल कश्मीरी हिंदुओं के टारगेट किलिंग की रस्मी तौर पर निंदा करके कर्तव्य की इतिश्री कर रहे हैं। आखिर यह कैसी कश्मीरियत है जो घाटी के हिंदुओं के साथ हर उस कश्मीरी की जान का दुश्मन बन गई है जो भारत की बात करता है? इस देश में कोई नाम पूँछने के बाद टैक्सी पर बैठने से मना कर दे तो विमर्श छिड़ जाता है।डिलवरी ब्वॉय का नाम पूँछकर कोई सामान लौटा दे तो अखबारों में महीनों तक आलोचनात्मक संपादकीय छपते हैं।पर नाम पूँछ-पूँछ कर गोली मार देना जैसे कोई अपराध ही नहीं? यदि बचे-खुचे कश्मीरी हिंदू सचमुच घाटी छोड़कर चले जाते हैं तो आतंकी संगठनों का एजेंडा ही पूरा होगा। ~ मनोज श्रीवास्तव

संस्थागत भ्रष्टाचार

संस्थागत भ्रष्टाचार दैनिक जागरण समाचार पत्र के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित सुरेंद्र किशोर के लेख "खत्म हुआ भ्रष्टाचार की अनदेखी का दौर"(दिनाँक 02/06/2022) में बताए गए उद्धरणों का संयोजन आँख खोलने वाला है।जीप घोटाले में दोषी सिद्ध वीके कृष्ण मेनन की मंत्रिमंडल में पुन:वापसी के बाद नेहरू की कलाबाजी वाली भाषण बाजी "भ्रष्टाचारियों को लैंप पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए" ने भ्रष्टाचारियों के लिए सिद्ध कर दिया कि "भ्रष्टाचार सिर्फ मुनाफे का सौदा है"।इसके भी पूर्व महात्मा गाँधी द्वारा बिहार के भ्रष्टाचारी मंत्री को हटाने की सलाह को नकारना, आंध्र की चंदा वसूली के भ्रष्टाचारी को पटेल द्वारा दोषी बताए जाने के बाद भी मुख्यमंत्री बनाना ऐसी घटनाएं हैं जो संस्थागत घोटाले का पोषण करने का प्रमाण है।पंजाब सिंचाई परियोजना में की गई कमीशनबाजी में प्रताप सिंह कैरों की पत्नी व बच्चों ने पैसा बनाया है पर कैरों इसके जिम्मेदार नहीं जैसे अंधेरगर्दी वाले नैरेटिव, बिहार में अय्यर आयोग द्वारा भ्रष्टाचार के दोषी ठहराए गए छह नेताओं को सीना ठोंक कर दंडमुक्त करने का तुगलकी फरमान, इंदिराजी