"मेरा शरीर मेरी पसंद"वाला नारीवाद प्रस्तुति- मनोज श्रीवास्तव मैने नारीवाद को सभी महिलाओं की समानता और मुक्ति के लिए एक आवश्यक सामाजिक आंदोलन के रूप में जाना और समझा था जहाँ समूहगत महिलाओं की पीड़ा या शोषण ही असल मुद्दा होता था । दशकों पूर्व जिस नारीवादी आन्दोलन का आरंभ पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खात्मे के लिए हुआ था वह आज उन्मुक्तता और स्वच्छन्दता में अपनी राह तलाश रहा है। साधन सम्पन्न, धनाढ्य, चर्चित, तथाकथित प्रतिष्ठित वर्ग समूह व्यक्तिविशेष की स्वतंत्रता एवं उन्नति को नारीवाद की सफलता के रूप में प्रस्तुत करने में लगा है। " मेरा शरीर मेरी पसंद " को नारीवादी मुहिम मानने वाले पोल डांस से लेकर नग्न सेल्फी, टॉपलेस सेल्फी,सिगरेट,शराब और ऊँची हील की सैंडिल को काल्पनिक नारीवादी आदर्श पर खरा उतरना तो बताते ही हैं साथ ही इसे पुरुषों के खिलाफ असली संघर्ष सिद्ध करते हैं। इस दर्शन का विरोधी "पुराना हारा" बताया जाता है जिसने " बाडी शेमिंग " (शारीरिक संरचना का मजाक उड़ाना) को प्रोत्साहित किया है।इस नवनारीवादी संकल्पना में न तो महिलाओं की मुक्ति का उल्लेख ह