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Showing posts from July, 2022

समन्वय देवता

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  समन्वय देवता प्रस्तुति-मनोज श्रीवास्तव शिव  विरक्त हैं,गृहस्थ भी; योगी हैं,संसारी भी; तपस्वी हैं, दानी भी! विरोधाभासी शक्तियाँ  शिव सानिध्य में ही  आपसी द्वेष भूल जाती हैं, जो देवाधिदेव को  समरसता का प्रतीक सिद्ध करती हैं।  ~ मनोज श्रीवास्तव

अधीर की अधीरता के बहाने

  अधीर की अधीरता के बहाने प्रस्तुति - मनोज श्रीवास्तव अधीर रंजन द्वारा दो-दो बार "राष्ट्रपत्नी" शब्द का प्रयोग करना मन की भड़ास का बाहर आना ही हो सकता है;जबान का फिसलना कहना सिर्फ बहाना है,क्योंकि बंगाली में भी राष्ट्रपति शब्द ही अपना अस्तित्व रखता है राष्ट्रपत्नी कतई नहीं। वास्तव में भाजपा इस मुद्दे को ऐसा उछाल देगी इसका उन्हें अहसास नहीं था जो वर्त्तमान काँग्रेस-नेतृत्व की अपरिपक्व राजनीति का प्रमाण है। वर्त्तमान संसद सत्र में मंहगाई,बेरोजगारी, अग्निपथ, खाद्य पदार्थों पर जी एस टी जैसे मुद्दों पर सरकार पर दबाव बनाते सफल दिख रहे विपक्ष की हवा काँग्रेस दल-नेता  की राष्ट्रपति पर की गई इस अशोभनीय टिप्पणी ने फुस्स कर दी। इसे भी विपक्ष को स्वीकार करना होगा,और अपने नेतृत्व का पुनः समीक्षात्मक दृष्टि से आँकलन करना होगा। संसद के सदन बात और बहस की जगह हैं।पर देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल की अध्यक्षा द्वारा उसी सदन में तल्खी से फरमान जारी करना "डोन्ट टॉक टु मी" उनका "राजशाही" परिवार का सदस्य होने का अहंकार व दम्भ है या अपनी पारंपरिक सीट अमेठी से अपने पुत्र के पराजय

शिव सन्देश

  शिव सन्देश प्रस्तुति-मनोज श्रीवास्तव (१) शिव अति सरल देवता हैं। लोकहित के लिए गरल पीते हैं।  जब व्यक्ति सहजता से विसंगतियों का जहर आत्मसात करता है, वह भयाक्रान्त नहीं होता। (२) शिव सिर्फ एक लोटा जल से प्रसन्न हो जाते हैं। जीवन की हर लब्धि प्रयत्न का परिणाम है। अतःइससे संतुष्ट होने की  आदत ही सुख देती है।. (३) असफलता व धोखा  जैसी विपरीतता हो कोई छल-छ्द्म करे अप्रिय स्थिति उत्पन्न करे विष सम पीने की स्थिति आन पड़े तो भोले की तरह  कंठ में रोक लेना चाहिए। अन्यथा  हृदय में उतरने पर मन क्षुब्ध होगा, बदला-भाव जागरित होगा  क्रोध,क्षोभ,अवसाद होगा। यही शिव सन्देश है। ~ मनोज श्रीवास्तव

गुरु परम्परा

  गुरु परम्परा प्रस्तुति - मनोज श्रीवास्तव (१) आत्मसाक्षात्कार  और ज्ञान की भूमि है भारत ! ज्ञान की यही प्रज्ज्वलित अग्नि  सन्निहित है भारतीय संस्कृति में । ज्ञान के शिखर हैं गुरु ! गुरु तत्व ही  मानवीय चेतना की  क्रान्ति है। यही गुरुतत्व भारत भूमि की समग्र विश्व को अनुपम देन है । (२) गुरु परंपरा सत्य का साक्षात्कार  कर चुकी होती है। गुरू के भीतर  साक्षात्कार की शक्ति शिष्य को स्थानान्तरित करने की क्षमता होती है। गुरु का यह रूप शिव होता है। गुरू के भीतर निहित गुरु परंपरा की शक्ति गौरी बन जाती है ! जब गुरु शिष्य को उपदेश या ज्ञान देता है , ब्रह्मा का स्वरूप होता है। इसीलिए  गुरु और ईश्वर में  अभेद है। (३) यदि ज्ञान रूपी अग्नि प्रज्ज्वलित हो गयी, सत्य-दिग्दर्शन हो गया, विषय वासना  सम्पर्क में आकर भी समाप्त हो जाएगी, ज्ञानी  निर्लिप्त हो जाएगा, यही  मानव चेतना की  क्रान्ति है। यही  गुरुपूर्णिमा का  संदेश है। ~ मनोज श्रीवास्तव

श्री गुरवे नमः

  श्री गुरवे नमः प्रस्तुति-मनोज श्रीवास्तव अज्ञान के तम से  निकालकर  ज्ञान के प्रकाश में  ले जाने वाले  परम तत्व का नाम गुरु है ।  वह शिष्य को  असत् से  सत् की ओर, मृत्यु से  अमृत की ओर  ले जाता है।  गुरु भगवान के चरणों में  अनुराग के द्वारा  शिष्य को ऐसा वैराग्य करा देता है जिससे जीवन से असद् वृत्ति का समूलोन्च्छेदन  हो जाता है। गुरु वह शिव है  जो जिह्वा और हृदय में रामनाम रखकर विष पीकर भी  अमृतमय रहता है; यही राम नाम का अमृत शिष्य के हृदय में  स्थापित करके  उसे भी  अमृतमय बना देता है । फलतः शिष्य  शुद्ध,बुद्ध और मुक्त  हो जाता है। ~ मनोज श्रीवास्तव

मेरा शरीर मेरी पसंद वाला नारीवाद

"मेरा शरीर मेरी पसंद"वाला नारीवाद प्रस्तुति- मनोज श्रीवास्तव मैने नारीवाद को सभी महिलाओं की समानता और मुक्ति के लिए एक आवश्यक सामाजिक आंदोलन के रूप में जाना और समझा था जहाँ समूहगत महिलाओं की पीड़ा या शोषण ही असल मुद्दा होता था । दशकों पूर्व जिस नारीवादी आन्दोलन का आरंभ पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खात्मे के लिए हुआ था वह आज उन्मुक्तता और स्वच्छन्दता में अपनी राह तलाश रहा है।  साधन सम्पन्न, धनाढ्य, चर्चित, तथाकथित प्रतिष्ठित वर्ग समूह व्यक्तिविशेष की स्वतंत्रता एवं उन्नति को नारीवाद की सफलता के रूप में प्रस्तुत करने में लगा है। " मेरा शरीर मेरी पसंद " को नारीवादी मुहिम मानने वाले पोल डांस से लेकर नग्न सेल्फी, टॉपलेस सेल्फी,सिगरेट,शराब और ऊँची हील की सैंडिल को काल्पनिक नारीवादी आदर्श पर खरा उतरना तो बताते ही हैं साथ ही इसे पुरुषों के खिलाफ असली संघर्ष सिद्ध करते हैं। इस दर्शन का विरोधी "पुराना हारा" बताया जाता है जिसने " बाडी शेमिंग " (शारीरिक संरचना का मजाक उड़ाना) को  प्रोत्साहित किया है।इस नवनारीवादी संकल्पना में न तो महिलाओं की मुक्ति का उल्लेख ह

भद्रकाली मंदिर के बहाने

  भद्रकाली मन्दिर के बहाने ~ मनोज श्रीवास्तव मैं इस तथ्य से पूर्ण सहमत हूँ कि " मंदिर-मस्जिद या मंदिर- मजारों के विवाद यदि पंथनिरपेक्ष नेताओं और बामपंथी बुद्धिजीवियों के दखल से परे रहें तो उनके सौहादपूर्ण समाधान की गुंजाइश बनती है । पावागढ़ विवाद सुर्खियों से भी दूर रहा और बुद्धिजीवी एवं इतिहासकारो की मक्कारी से भी !" संभवत: हिन्दू आस्था के  केंद्र,बावन शक्तिपीठों में से एक,ग्यारहवीं सदी के प्रसिद्ध कालिका माता मंदिर के शिखर को 1484 ईस्वी में चंपानेर शासक जयसिंह रावल के समय गुजरात सल्तनत के तत्कालीन कुख्यात शासक महमूद बेगड़ा द्वारा तोड़कर ठीक ऊपर अदनपीर की दरगाह स्थापित कर देने के समाज विध्वंसक कृत्य का समाधान हो सका है जो भारतीय सभ्यता की आहत हुई अस्मिता और क्षय हो रहे वैभव को वापस पाने का सुदीर्घ और धैर्यशाली प्रयास है ।यह बात दीगर है कि कालान्तर मैं कनकाकृति महाराज दिगंबर भद्रक ने अट्ठारहवीं शताब्दी में मंदिर का पुनर्निर्माण तो करवाया परंतु दरगाह बने होने की वजह से शिखर ना बन सका। यह भी ज्ञातव्य हो कि आईबेरिया प्रायद्वीप, वर्तमान में स्पेन के बाद भारत विश्व का पहला राष्ट्र है