अद्वैत के व्याख्याकार
शंकराचार्य जयन्ती पर विशेष अद्वैत के व्याख्याकार @मानव अद्वैत वेदांत व उपनिषद के व्याख्याता, तथा सनातन धर्म के ध्वजवाहक व प्रचारक, दार्शनिक आदि शंकराचार्य जी जिन्होंने अपनी यात्राओं व प्रवचनों से धार्मिक विसंगतियों का निस्तारण किया और राष्ट्र को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में आबद्ध किया; फलतः प्रतिक्रियावादी तत्वों की उग्र प्रतिक्रिया से धर्म के प्रति आस्था की रक्षा में सफल रहे। सर्वभूत प्राणियों में ब्रह्म ही समाया है, वह अलग-अलग रूपों में क्रियाशील होने पर भी एक है, उसके गुण, कर्म और स्वभाव में अंतर नहीं आता अत: मानव-मानव में भेद यानी छूत-अछूत का व्यवहार सर्वथा बेमानी है, यही व्यावहारिक अद्वैत है। विराट विश्व ही परमात्मा का स्वरूप है, वही ईश्वर सम्पूर्ण जीवधारियों, वृक्ष,वनस्पति,जल-थल में भावना रूप में विद्यमान है। उसी की चेतना वायु में प्राण बनकर इधर से उधर घूमती है; अग्नि में दाहकता बनकर जलाती है, जल में विद्युत बनकर प्रकाश और जीवन देती है, अनंतर ग्रह-नक्षत्रों और लोक-लोकांतरों में सर्वत्र व्याप्त, सत् और चेतनशील है; निराकार विराट ब्रह्म का ध्यान करने से मनुष्य क