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Showing posts from April, 2023

अद्वैत के व्याख्याकार

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  शंकराचार्य जयन्ती पर विशेष अद्वैत के व्याख्याकार       @मानव अद्वैत वेदांत व उपनिषद के व्याख्याता, तथा सनातन धर्म के  ध्वजवाहक व प्रचारक, दार्शनिक आदि शंकराचार्य जी  जिन्होंने अपनी यात्राओं व प्रवचनों से धार्मिक विसंगतियों का निस्तारण किया और राष्ट्र को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में आबद्ध किया;  फलतः प्रतिक्रियावादी तत्वों की उग्र प्रतिक्रिया से धर्म के प्रति आस्था की  रक्षा में सफल रहे। सर्वभूत प्राणियों में ब्रह्म ही समाया है, वह अलग-अलग रूपों में  क्रियाशील होने पर भी  एक है, उसके गुण, कर्म और स्वभाव में अंतर नहीं आता अत: मानव-मानव में भेद  यानी छूत-अछूत का व्यवहार सर्वथा बेमानी है, यही व्यावहारिक अद्वैत है। विराट विश्व ही  परमात्मा का स्वरूप है, वही ईश्वर  सम्पूर्ण जीवधारियों, वृक्ष,वनस्पति,जल-थल में भावना रूप में विद्यमान है।  उसी की चेतना वायु में प्राण बनकर इधर से उधर घूमती है; अग्नि में दाहकता बनकर  जलाती है, जल में विद्युत बनकर प्रकाश और जीवन देती है,  अनंतर ग्रह-नक्षत्रों और लोक-लोकांतरों में सर्वत्र व्याप्त, सत् और चेतनशील है;  निराकार विराट ब्रह्म का ध्यान करने से मनुष्य क

चत्वारि सोपान

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  चार धाम यात्रा प्रारंभ दिवस पर विशेष , चत्वारि सोपान       @मानव कलियुग में चारधाम यात्रा का  सीधा संबंध मन, विचार  और आत्मा की शुद्धि से है, जो अंतरात्मा को  बदलने की क्षमता रखती है, मानवता, सहिष्णुता  और आपसी विश्वास की भावनाओं को  सिंचित व पोषित करती है अतः सतयुग तुल्य है। यात्रा के दौरान हम स्वच्छ-निर्मल नयनाभिराम दृश्यों के बीच जीवन के समस्त सांसारिक उलझनों को  पीछे छोड़ देते हैं, तनावमुक्त हो जाते हैं,  उल्लास की प्रतीति करने लगते हैं, फलत: हमारे भीतर  खुलकर जीने की उत्कंठा उत्पन्न कर जाते हैं। चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव,  यमुनोत्री धाम भक्ति का उद्गम माना गया है। अंतर्मन में  भक्ति संचार होने पर ही  ज्ञान चक्षु खुलते हैं, अतः ज्ञान की अधिष्ठात्री साक्षात् सरस्वती स्वरूपा गङ्गा का, उद्गम स्थल गंगोत्री  यात्रा का द्वितीय सोपान बनता है।  ज्ञान ही जीव में  वैराग्य-भाव जगाता है  भगवान केदारनाथ के दर्शनों से ही  जिसकी प्राप्ति संभव है। जीवन का अंतिम पड़ाव  मोक्ष पारिभाषित है जो बदरीनाथ से ही प्राप्त होना सँभव है।  इसीलिए चारधाम यात्रा  जीवन के पड़ावों की  यात्रा का प्रतीक है।   ~मनोज

माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः

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  पृथ्वी दिवस (२२ अप्रैल) पर विशेष , माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः       @मानव माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः           ( पृथ्वीसूक्त, अथर्वेद ) मनुष्य का प्रथम पहचान-पत्र है जिसे सांस्कृतिक, धार्मिक और दार्शनिक मान्यता मिली।  धरती का रत्न गर्भा, शस्य - श्यामला, और सुजलां सुफलां होना  उसके मातृत्व का श्रृंगार है। धरती है तभी हमारा अस्तित्व है इसी विचारधारा से  'वसुधैव कुटुम्बकम्' का उदात्त महावाक्य भारतीय संस्कृति व भारतीय दृष्टि ने महास्वप्न की भाँति  आर्यावर्त समेत  विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसमें उत्कट जिजीविषा  भिन्न-भिन्न विश्वास और आस्थाओं के दर्शन होते हैं। यह धरती समूचे ब्रह्माण्ड का तीर्थ स्थल है, यहाँ हर पल मेला हर पल आनंन्द है, जो ज्ञान-भक्ति-कर्म के  विस्तार के लिए भी है। जीवन मूल्यों के पवित्र स्मारक अनादि काल से ही दीपस्तंभ बनकर  धरती पर खड़े हैं, जिनके पथ प्रदर्शन में मनुष्य लक्ष्य को चूमता है,  आनन्द के महासागर और स्वाभिमान के  उच्चतम शिखर स्थापित करता है। सभ्यता की लिखी इबारत में हमने मिट्टी की सौगंध खाई, मिट्टी की खातिर मिट्टी में मिल जाता उचित समझा।  ~म

अक्षय तृतीया

  अक्षय तृतीया           @मानव शुभ कार्यों का अक्षय फल प्रदाता दिवस; स्वयंसिद्ध मुहूर्त; युगादि तिथि;        ( भविष्य पुराण ) सत् व त्रेता युगों की  प्रारंभ तिथि; भगवान विष्णु के नर-नारायण, हयग्रीव  और परशुराम स्वरूप का  अवतरण दिवस; भगवान बद्रीनाथ की  प्रतिमा का स्थापना दिवस;  महाभारत युद्ध  की समाप्ति का दिवस,  जिसने सत्य की स्थापना कर महान भारत के दर्शन कराए; द्वापरयुग का समापन दिवस जो हमारे कर्मों के परिणाम को  अक्षय करने का संदेश देता है।   ~मनोज श्रीवास्तव

बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना

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  हनुमत् जन्मोत्सव पर विशेष बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना       @मानव जिसमें शील हो वही चरित्रवान है,  चरित्रवान ही वास्तविक बलवान है, इसी लिए श्री हनुमान जी  अतुलित बलधाम हैं। पवन तनय का बल  पवन समान है वे बुद्धि, विवेक व विज्ञान के  अप्रतिम निधान हैं; बल,बुद्धि,विद्या आ जाने पर  क्लेश एवं विकार से   मुक्त होने की क्षमता विकसित हो जाती है,  इसलिए श्री हनुमान जी श्री राम के बड़े-बड़े कार्य सकुशल कर सके, राम काज के लिए अपना अवतार सिद्ध कर सके। रामनाम अभ्यासी बजरंगी सम पवित्रता दुर्लभ है, वे अर्थ-पावित्र्य हैं, काम-पावित्र्य हैं, मोक्ष-पावित्र्य है, विनम्र हैं, नीति निपुण हैं नीति निर्धारिक हैं; उनका जन्म भी दिव्य है  और कर्म की दिव्य है; उनका जीवन चरित्र हमारी सकारात्मक सोच का  मार्ग दर्शक बन हमें मोक्ष प्रदान करने वाला है।  ~मनोज श्रीवास्तव

महावीर

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  महावीर जयन्ती पर विशेष महावीर       @मानव वस्तुओं को,  संसार को  रागी मन पकड़ता है; जबकि विरागी उन्हें ही छोड़ने लगता है;  जिसे हम छोड़ रहे हैं उसके प्रति कोई आशा-तृष्णा  हममें शेष न रहे, जो इनके पार की बात करे, राग और विराग भविष्य बन जाएं; जो शीत-उष्ण ही नहीं  हर प्रकार की अनुकूलता व प्रतिकूलता को  सह सके, जिसका जीवन  समता,  अपरिग्रह,  ब्रह्मचर्य,  अचौर्य और सत्य से परिपूर्ण हो, वही "महावीर" है।  जिनका प्राथमिक धर्म मानवता है, जो सम्पूर्ण विश्व के  शांतिमयता की कामना करते हैं जो छोटे बडे जीव को अपनी ही तरह मानते हैं,  वे भी आत्मास्वरूप हैं,  प्राणियों के समत्व की  यह अनुभूति ही  व्यक्ति का आदर्श है।  जग मुक्ति पर जो बचता है वही सार है असार का;  सार- असार भेद का ज्ञाता ही शत्रु-मित्र, अपना-पराया से  पार चला जाता है; वही द्वंद्वातीत होकर  "महावीर" बन जाता है । "मैं"शरीर का बोध है , शरीर बृहद सिंधु तरंग की  एक बूँद भर है, इसी भान से  मन जलनिधि हो जाता है,  राग-विराग के किनारे निमग्न हो जाते हैं, और वीतराग तत्व  खिल उठता है  इस तरह "मैं" का विसर्जन