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Showing posts from May, 2024

बुढ़वा मङ्गल

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  बुढ़वा मङ्गल         @मानव मङ्गलवार को हनुमान जी की उपासना से  आसन्न संकट दूर होते हैं। ज्येष्ठ मास के मङ्गल के पर्व को मास नामानुरूप बड़ा मंगल भी कहते हैं। श्रीहनुमान जी चिरंजीवी हैं  और हर युग में उनकी उपस्थिति रहती है। अनेक कथाओं के आधार पर यह मान्यता है कि किसी न किसी का मान मर्दन करने के लिए हनुमानजी ने हर युग में वृद्ध वानर का रूप  धारण किया है। अतः हनुमान जी के वृद्ध स्वरूप की इस दिन पूजा की जाती है, और इन मङ्गलवार को बुढ़वा मङ्गल के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है।  ✍️ मनोज श्रीवास्तव

देवर्षि नारद

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  नारद जयंती पर देवर्षि नारद          @मानव ब्रह्मा जी के छह पुत्रों में से एक नारद जी ने कठिन तप-साधना के बाद  देवर्षि की उपाधि प्राप्त की; तपोबल से ही वे भगवान के मन में उठने वाले विचारों को समझ जाया करते हैं;  इसीलिए वे भगवान का मन कहलाते हैं।  उन्होंने प्रत्येक युग में  घूम-घूम कर ईश्वर के प्रति भक्ति भाव जगाया है। वे भूत,वर्तमान और भविष्य,  तीनों कालों के ज्ञाता हैं; जो धर्म के प्रचार तथा लोक- कल्याण हेतु  सदैव प्रयत्नशील रहते हैं; अतः सभी युर्गों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गों में नारद जी महत्वपूर्ण हैं। देवर्षि नारद भक्ति के प्रधान आचार्य हैं; उनके रचित भक्ति सूत्रों में  भक्ति तत्वों की बड़ी सुंदर व्याख्या है। देवर्षि नारद सभी वेदों के ज्ञाता, इतिहास और पुराणों के मर्मज्ञ, भूत,वर्तमान और भविष्य की जानकारी रखने वाले, प्रखर वक्ता, नीतिज्ञ, ज्ञानी,कवि,संगीतज्ञ,  शंकाओं का समाधान करने वाले तथा अपार तेजस्वी हैं। वे ज्ञान के स्वरूप, विद्या के भंडार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर और हर प्राणी के हितकारी हैं।            ( महाभारत ) वे ईश्वर के परम प्रिय और कृ

करुणा गौतम बुद्ध की

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  बुद्ध पूर्णिमा पर्व पर करुणा गौतम बुद्ध की         @मानव ध्यान  पहले स्वयं में पर्याप्त था, पर आध्यात्मिक क्षेत्र में ध्यान के साथ करुणा पर जोर असामान्य घटना थी, जो गौतम बुद्ध की महानता को, प्रतिष्ठित करती है। बुद्ध प्रतिपादित करते हैं कि ध्यान करने से पहले  करुणा से परिचित हो जाओ, तुम अधिक प्रेमपूर्ण, अधिक दयावान, अधिक करुणावान हो जाओ। इसमें सन्निहित विज्ञान यही है कि व्यक्ति संबुद्ध हो, यदि उसके पास करुणा भरा हृदय हो तो संभव है कि ध्यानोपरांत वह दूसरों को वही सौंदर्य,  वही ऊंचाई, वही उत्सव, जो उसने प्राप्त किया है,  पाने में मदद कर सके। बुद्ध ने पहली बार आत्मज्ञान को नि:स्वार्थ बनाया; आत्मज्ञान से पहले करुणा सीखना अनिवार्य बनाया। संबुद्ध हो जाने का मतलब नहीं कि हम सद्‌गुरु भी हो जाएं; सद्‌गुरु हो जाने का अर्थ है  कि हममें अनंत करुणा है  और हम अपने भीतर की  परमशांति के सौंदर्य में अकेले जाने से शर्मिंदगी महसूस करते हैं,  जो आत्मज्ञान द्वारा प्राप्त है।  हम उनकी मदद करना चाहते हैं जो अंधकार में अपना मार्ग टटोल रहे हैं; इनकी मदद करना आनंददायी है। जब हम अपने आसपास  लोगों को खिलते देखे

मतदान

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  लोकतंत्र का पर्व मतदान         @मानव मतदान की महिमा विशिष्ट है; लोकतंत्र में जनमत ही निर्णायक है; जनमत का प्रयोग मतदान से ही संभव है, यह स्वाभाविक है। मतदान ही लोकतंत्र का भाजक है; नागरिक अधिकार का स्रोत है; अन्य दानों की तरह ही आत्मिक ऊर्जा का स्रोत है।  मतदान को राजनीति या समाज या व्यक्ति से नहीं जोड़ना, यह आत्मसत्ता का भजनफल है; मतदान तंत्र का बल है, तंत्र के बिना मंत्र भी व्यर्थ ही सिद्ध होगा। राजा हो या प्रजा, दोनों का संपूर्ण प्रभाव  मतगणना से ही लगाना  सैद्धांतिक है; व्यावहारिकतः सही मतदान की सही मतगणना ही जनजीवन की राह है।  मतदान का दर्शन प्रथम नागरिक को भी ज्ञात हो और अंतिम नागरिक को भी; सो,मतदाता से लोकतंत्र का अस्तित्व है; वर्तमान युग में मतदान ही  सबसे बड़ा दान है।   ✒️मनोज श्रीवास्तव

'सीतायाः चरितं महत्'

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  सीता नवमी पर 'सीतायाः चरितं महत्'        @मानव ' सीतायाः चरितं महत् '   ( वाल्मीकि ) रामकथा में महत्वपूर्ण चरित्र है तो वह सीता का ही है।  तुलसी दास ने सबसे पहले  'सीता' शब्द का प्रयोग  मंगलाचरण में किया  ' सीतारामगुणग्राम- पुण्यारण्य विहारिणौ।' वहाँ सीता राम दोनों की कथा है। स्वतंत्र रूप में सीता की वंदना तुलसी ने 'मानस' में की है  उद्भववस्थिति संहारकारिणीम्, क्लेशहारिणीम्, सर्वश्रेयस्करी सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ।।  यह माँ संसार को प्रकट करने वाली, पैदा करने वाली, फिर पालन करने वाली अंततः सँहार करने वाली भी है। वे क्लेश हरने वाली हैं, सर्व कल्याण करने वाली हैं सबका मङ्गल करने वाली हैं, वे राम वल्लभा हैं अतः उन्हें प्रणाम है।   सीता तो जगदम्बा हैं, परमात्मा की आह्लादिनी  शक्ति हैं, पतञ्जलि के योगसूत्र के पाँच स्वाभाविक क्लेश राग,द्वेष, अविद्या,अस्मिता और जिजीविषा  माँ सीता का स्मरण मात्र से मिट जाते हैं। 'मानस' में जो प्रधान पात्र हैं,  उनका श्रेय (कल्याण)  प्रत्यक्ष या परोक्ष सीता ने ही किया है; उनके श्रेय का प्रथम पात्र सुग्रीव हैं ज

आत्मा की समृद्धि का पर्व

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  अक्षय तृतीया पर्व पर (१) आत्मा की समृद्धि का पर्व       @मानव जिसका कभी क्षय नहीं होता वह 'अक्षय' है; आत्मा ही एकमात्र अक्षय है,  जिसका क्षरण नहीं होता। यह पर्व स्मरण कराता है कि भौतिक समृद्धि से  अधिक महत्वपूर्ण हमारे आत्मा की समृद्धि है। जो व्यक्ति उदार होता है,  हमेशा दूसरों की सहायता करता रहता है, वह भी अक्षय पात्र ही है। जब सच्ची भक्ति होती है, वहाँ केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि भौतिक समृद्धि भी आती है; यदि हमें अक्षय तृतीया के दिन कुछ मिलता है तो वह हमेशा बढ़ेगा। इस संसार में जो है, वास्तव में ‘कुछ भी नहीं’ है; एक दिन हमें सब छोड़ जाना है, हमारा शरीर इसी मिट्टी में  वापस मिल जाना है; हम  सदैव समृद्ध होते रहेंगे,  क्योंकि हमारी‘आत्मा’शाश्वत है। (२) सकारात्मकता की यात्रा: चार धाम यात्रा         @मानव जीवन के एकमात्र ध्येय  भगवद्तत्व एवं भगवद्प्रेम की  प्राप्ति का हेतु  चारधाम यात्रा है; "मोह,माया,रागादि जैसे  सांसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए चारधाम यात्रा करनी चाहिए।" (' स्कंद पुराण' के 'केदारखंड ') चारधाम का पहला पड़ाव यमुनोत्री धाम है; यमुना को