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Showing posts from January, 2023

सा वाग्देवी तु सरस्वती

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बसन्त पञ्चमी पर विशेष (१) सा वाग्देवी तु सरस्वती       @ मानव परम चेतना, ज्ञान की अधिष्ठात्री, बुद्धि, प्रज्ञा  तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका  ईश्वरीय शक्ति  वाग्देवी भगवती सरस्वती का आविर्भाव दिवस जिनके अनुग्रहों के लिए कृतज्ञता भरा अभिनंदन विद्या जयंती  बसन्त पञ्चमी है। माँ के हाथ में शोभित पुस्तक व्यक्ति की भौतिक आध्यात्मिक एवं भौतिक प्रगति हेतु  स्वाध्याय की अनिवार्यता का प्रेरक है,  स्व ज्ञान वृद्धि का प्रेरक है। इस दिशा में बढ़ने का साहस स्वाध्याय को  दैनिक जीवन का अंग बनाने  व ज्ञान की गरिमा को  समझाने के लिए है । देवी के कर कमलों की वीणा  वाद्य से प्रेरणा देती है कि हमारी हृदय रूपी वीणा  सदैव झंकृत रहे, हम संगीत व कला प्रेमी बनें, कला पारखी बनें,  कला-संरक्षक बनें । भगवती का वाहन मयूर मधुर भाषी है,  जो प्रकृति द्वारा कलात्मक सुसज्जित है  अभिरुचि परिष्कृत बनाने की  प्रेरणा देता है। सर्वत्र विद्या अभिवृद्धि से  माँ प्रसन्न होती है जो पशुता से मनुष्यता  अज्ञानता से ज्ञान अविवेक से विवेक की ओर  बढ़ने का संकल्प है। ( २ ) बसन्त        @ मानव बसंत आगमन   मधुरता,उल्लास  तथा दिव्य स्फूर्त

स्व का तंत्र

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  गणतंत्र दिवस हेतु विशेष "स्व" का तंत्र       @मानव धर्म  जीवन का विधान है तो अध्यात्म  जीवन का संविधान है। धर्म वह सोपान है जो हमें अध्यात्म तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करता है।  धर्म प्रकृति का वह नियम है जो समस्त विश्व को  संचालित करता है। वस्तुत: धर्म ही  संपूर्ण जगत का आधार है।                 ( वेदव्यास )  धर्म के दस लक्षण                 ( मनुस्मृति ) आंतरिक और वाह्य जीवन  व्यवस्थित रखते हैं जिनसे हमारे स्व का तंत्र  विकसित व पुष्पित होता है। श्रीकृष्ण की घोषणानुसार  उनका विराट स्वरूप ही प्रकृति है, जो सत् रज एवं तम तीन गुण युक्त है। अपने स्वभावानुकूल  कर्म करना धर्म है।        ( श्रीकृष्ण )  मूल धर्म को भूलना स्वयं की पहचान खोना है।  मन पर नियंत्रण से  कर्म निर्वाह के प्रति द्वंद शमन हो जाता है।  ~ मनोज श्रीवास्तव

मौनाभिव्यक्ति

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  मौनी अमावस्या हेतु विशेष मौनाभिव्यक्ति          @मानव शब्दों का मुख्य उद्देश्य मौन उत्पन्न करना है। शब्द अधिक शोर  मचाते हैं यदि, तो वे स्वलक्ष्य तक  नहीं पहुँचते। मौन जीवन का स्रोत है, मौन जितना दृढ होगा उससे उठने वाले प्रश्न उतने ही प्रबल होंगे। "हम" कोई नहीं हैं, हम इस ब्रह्माण्ड में  नगण्य हैं; 'कुछ' से 'कुछ नहीं' बनने का यही पाठ पढ़ाता है मौन ! संसार में दुःख है यह पहला सत्य है  जो परित: दुनिया में दूसरों के दुःख जानकर अथवा स्वयं अनुभवकर जाना जा सकता है। दूसरा सत्य है- हर दुःख का  कोई न कोई कारण अवश्य है।  तीसरा सत्य बताता है दुख को दूर करना संभव है। जबकि चौथा सत्य है  दुःख से बाहर निकलने का मार्ग है।  अत: स्ववास्तविक स्वरूप का निरीक्षण अपेक्षित है।  हमारा वास्तविक स्वरूप शांति, करुणा,  प्रेम, मित्रता  और आनंद है। यह मौन ही है जो इन सबको  जन्म देता है यह मौन ही है जो उदासी, ग्लानि, दुःख का शमन करता है और आनंद,करुणा  व प्रेम को उपजाता है। इस प्रकार प्रत्येक दुःख का सागर पार हो सकता है।   ~ मनोज श्रीवास्तव

दिव्य उत्तरायण

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दिव्य उत्तरायण       @मानव भारत में पर्व, अनुष्ठान  प्राचीन उज्ज्वल संस्कृति के  आधार स्तंभ हैं,  ऊर्जा एवं दिव्यता के  संचारक हैं।  उत्तरायण मार्ग सकारात्मकता  एवं आध्यात्मिक ज्ञानरूपी  प्रकाश का प्रतीक है। नव स्फूर्ति, प्रकाश  और ज्ञान भी इसी से जुड़ा है। यही दिव्य शक्तियों  एवं सात्विक प्रवृत्तियों को  जगाने की उत्तम वेला है। प्रकृति में भी परिवर्तन  होने लगता है, राते छोटी व  दिन बड़े होने लगते हैं।   अंधकार से प्रकाश की वृद्धि  उत्तरायण प्रेरित करता है।  प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है  भौतिक प्रकाश  एवं आध्यात्मिक प्रकाश से ही  प्राणियों में नव ऊर्जा संचरित होती है। प्राणियों की चेतना एवं कार्यशक्ति में वृद्धि होती है।   ~मनोज श्रीवास्तव

खिचड़ी

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  खिचड़ी पर्व की शुभाकांक्षाएँ खिचड़ी        @मानव दो प्रमुख अन्न चावल व उड़द की दाल के मिश्रण वाला व्यंजन जो कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन,  वसा,विटामिन,  व कैल्शियम की प्रचुरता वाला, नए चावल में अति सुपाच्य, संपूर्ण आहार खिचड़ी है। उड़‌द शनि का अन्न है, खिचड़ी शनि को प्रिय है, मकर राशि भी शनि की है।  शनि की प्रसन्नता हेतु  खिचड़ी का दान  व खाने की परंपरा है। तिल शनि से जुड़ा है  तो गुड़ मंगल से, मंगल ग्रह है- साहस व परंपरा का, सूर्य ग्रहों का राजा है।  खिचड़ी का आध्यात्मिक पक्ष है  कि जीव खुद के साथ  परमात्मा के स्वरूप को अनुभव करे।   ~ मनोज श्रीवास्तव

ऊष्मा व उजास का पर्व

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  मकर संक्रान्ति पर विशेष ऊष्मा व उजास का पर्व       @मानव जब सूर्य स्वगमन पथ के  दक्षिणी मार्ग का परित्याग कर  उत्तरी मार्ग पर  चलना आरंभ करते हैं, धनुराशि का भ्रमण पूर्णकर  मकरराशि में प्रवेश करते हैं,  सूर्य का संक्रमण काल ही मकर संक्रान्ति है। यह युगादि  अर्थात युगारंभ का  प्रथम दिन भी है। एक दूसरे बिम्ब के अनुसार,  महाराज सूर्य  दक्षिण दिशा को जीतकर  अंधकार व शीत सम  घोर शत्रुओं का दमन कर  भारत को प्रस्थान कर रहे हैं; इस तेजस्वी स्वरूप की  चहुँओर जयजयकार हो रही है। संस्कृति, समाज  और ज्योतिष सहित,  विज्ञान और सूर्य से जुड़ा यह पर्व परिवर्तन के प्रमुख पड़ाव के रूप में  प्रतिष्ठित है। मकर राशि दसवीं राशि है,  जो मंगल का प्रदाता है।  मकर में प्रवेश काल से  सर्वाधिक पुण्य काल  बत्तीस घटी     (१२ घण्टे ४८ मिनट) व्रत, तप,  यज्ञ, अनुष्ठान,  जप,हवन, कथा-श्रवण आदि का  अनंत पुण्य दायक है। वैदिक काल से तमसो मा ज्योतिर्गमय  ऐसा संदेश है जहाँ भुवन भास्कर  चराचर जगत की  आत्मा-रूप में स्वीकार्य हैं, जबकि चन्द्रमा मन  और पृथ्वी देह है।  तीनों के विशिष्ट संयोग से ही  सृष्टि संचरित हो रही है।  प्र

परिश्रम का आनंद

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  लोहड़ी पर्व पर विशेष परिश्रम का आनंद       @मानव कृषि केंद्रित स्वयं की उपलब्धियों का  आनंद व्यक्त करने का  पर्व है लोहड़ी।  किसान की लहलहाती फसल  उसके श्रम  व समर्पण का प्रतीक है। हमारा जीवन आचरण  कृषि कार्य है,  हमारा तन खेत व हमारे यत्न जल हैं, नम्रता की  बाड़ की आड़ में  परमात्मा नाम के  वपित बीज से  तैयार उत्तम फसल  जब संतोष की हंसिया से  काटी जाती है   परिश्रम के फल का आनन्द आध्यात्मिक श्रेष्ठता के अर्जन का प्रतीक कृषि बन जाती है।           (गुरु नानक देव)    ~ मनोज श्रीवास्तव