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Showing posts from August, 2022

श्री गणेश

  श्री गणेश      @मानव "प्रथम पूजनीय", "बुद्धि के देवता", "गजानन", विशाल मस्तक  ज्ञान का प्रतीक है। सफलतार्जन हेतु आवश्यक सार्वभौमिक  ईश्वरीय कृपा के प्रदाता हैं विघ्नेश्वर । दैवीय कृपा  और सफलता की  सिद्धि को साक्षात्कार कराने वाले हैं  स्वामी श्री विनायक। शांति व समृद्धि हेतु  अपरिहार्य  जिनका जन्मोत्सव  बुद्धि की संपदा के उल्लास का अवसर है। गणपति स्थापना व विसर्जन जन्म-मृत्यु-चक्र की  निराकार वास्तविकता याद दिलाता है,  'रूप भले नष्ट हो पर निराकार प्रबल' बताता है। ~ मनोज श्रीवास्तव

बीते अमृत महोत्सव का संदेश

बीते अमृत महोत्सव का संदेश                @मानव भादों की ठंडी बयार वाली सुबह वही है,हरी चादर ओढ़े धरा वही और बादल के बिखरे छोटे-छोटे टुकड़ों पर नारंगी फोकस डाल कर उसे स्वर्णमय बनाता सूरज भी वही है और इन सुनहरे पैबन्दों से बिखरा पड़ा आसमान भी वही। लेकिन सड़क से लेकर सोसायटी तक,चाय की टपरी से लेकर समोसे जलेबी व ब्रेड मक्खन वाले तक की आँखों में इस बार आज़ादी का रंग कुछ अलग है।यही नहीं पहली बार मस्जिद के सामने वाले मैदान में मौलवी जी द्वारा झण्डारोहण व भारत माता की जय का नारा लगवाता पन्द्रह अगस्त तो मैंने पहली बार देखा।हर चौराहे पर तिरंगे होर्डिंग्स, झंडे व देशभक्ति के गीत से गुंजायमान वातावरण के साथ कालोनी के हर सीढ़ी की गुमटी या रेलिंग से बंधा फ़रफ़राता तिरंगा,सड़क पर दौड़ लगाते ई रिक्शा और टैम्पो की रफ्तार जो अपने ऊपर लगे तिरंगे झण्डे की उड़ान को धीमी ही नहीं पड़ने देना चाह रहे; पन्द्रह अगस्त को इतना उत्साह कब दिखा था मुझे याद नहीं। एकता संग जाग्रत सामूहिक चेतना की ये शक्ति और चैतन्यता बरकरार रहे। एक नागरिक के तौर पर हम सब जिम्मेदार बनें। सहनाववतु सहनौभुनक्तु का भाव सबमें चरैवेति- चरैवेति का मन्त्र

स्वतंत्रता का मर्म

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  स्वतंत्रता का मर्म        @मानव विचारों व आचरण को  प्रतिरोध न मिलने की  कामना को  पूर्ण स्वतंत्रता मानना अव्यवहारिक है। स्व हित के  अंकुश में  विचारों  और आचरण का निर्धारण मानव में  दायित्व की भावना  उपजाता है। स्व हित से ही  स्वतंत्रता  आरंभ होती है । संयमित, शिष्ट, एवं सद्‌भावपूर्ण  व्यवहार से आत्मसंतुष्टि  प्राप्त होती है। अपने विचार  व कर्म की परख  आत्मिक अनुभूति की  कसौटी पर कसकर  मिली आत्म संतुष्टि ही स्वाधीनता है। (और संताप पराधीनता) अंतर्मन की स्वतंत्रता ही  बाहर प्रकट होती है। मन की निर्मलता  जब तक  अक्षुण्ण रहेगी स्वतंत्रता का  आनन्दपूर्ण उपभोग करने की योग्यता  बरकरार रहेगी। स्वहित के साथ  सर्वहित का सुयोग  स्वतंत्रता के आनंदित उपभोग का  अवसर बन जाएगा। ~ मनोज श्रीवास्तव

विभाजन त्रासदी

  विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर विशेष   विभाजन त्रासदी खिलाफत आंदोलन को अकारण व फालतू का  समर्थन भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिक तुष्टिकरण का पहला प्रयोग था जो इतिहास के पडावों से गुजरता अंततः विभाजन की ओर चला गया;इस सत्य को आज याद रखना जरूरी है। सत्ता हस्तांतरण के फेर में खिलाफत की असफलता की प्रतिक्रिया में हुए 1921 के मोपला साम्प्रदायिक नरसंहार से विभाजन की विभीषिका तक,तत्पश्चात विभाजन के बाद वोट बैंक की राजनीति ने साम्प्रदायिकता के जिन्न का स्थायी समाधान करने का लक्ष्य कभी नहीं बनने दिया।यह भी कटु सत्य है। अंग्रेजों की बनाई नकली सरहद रेडक्लिफ से विभाजन ने हमारी सीमाओं पर रेखाएं ही नहीं खींची,बल्कि देश के मानस पटल पर भी साम्प्रदायिक विभाजन की एक स्थायी लकीर खींच दी है।फिर आजादी के बाद वोट बैंक की शक्ल में हमने अपने यहाँ साम्प्रदायिक ब्लैकमेलिंग को स्थायी अभयदान दे रखा है संविधान व कानून के जरिए,जो देश व नागरिकों के लिए दुर्भाग्य है। इन तथ्यों को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर झुठलाना या भुलाना आने वाली पीढ़ियों के प्रति अपराध है। मनोज श्रीवास्तव

रक्षाबंधन

  रक्षाबंधन प्रस्तुति- मनोज श्रीवास्तव रक्षासूत्र अविच्छिन्नता का प्रतीक,  व्यक्ति की स्वाधीनता को अर्थपूर्ण बनाता है ; रक्षा का वचन है; प्रेम,  समर्पण,  निष्ठा  और संकल्प के साथ हृदय को जोड़ने का भी  वचन देता है। शचि के वैदिक मंत्र अभिमंत्रित रक्षासूत्र को  बृहस्पति द्वारा  इन्द्र के हाथ में बाँधकर अभय बनाना स्वावलम्बन से  स्वधर्म की यात्रा है। सनातन संस्कृति में रक्षाकवच की तरह  समाज,  धर्म,  संस्कृति व देश के रक्षार्थ  संकल्प है। ~ मनोज श्रीवास्तव

सावन-रहस्य

  सावन-रहस्य प्रस्तुति- मनोज श्रीवास्तव (१) श्रावण  श्रेष्ठ, ऊर्जावान, तथा सृजनात्मक काल; हर प्राणी में नव उत्स एवं धारणा का संचारक; भक्ति मार्ग की  सर्वोत्तम अवधि; प्रेमानुभूति का विशेष समय  जो शुभ है, सुगम है,  कल्याणकारी है, हितबद्ध है,  भावनानुकूल हैं, नव संदेशवाहक है -  "दुःखों की तपिश अब नहीं सताएगी,  सुखों की रिमझिम से संसार नहा उठेगा"; यही प्रकृति-संतुलन सावन है। (२) सावन का सान्निध्य  परम सुखकारक है;  समस्त देवलोक,  भूलोक,  नागलोक, और पाताललोक  आध्यात्ममय हो,  आत्मानुभूति में  डूब जाते हैं ; देव गण  प्रसन्न व आनन्दित हो  दयावान हो जाते हैं; धरा पर प्रकृति की  नवीन छटा नृत्य करती है ।  यह कामना-माह है  (वासना का नहीं) पवित्र-कामना को धारण कर प्रभु का सहज तथा सुलभ प्रसाद ग्रहण कर ऐश्वर्यवान और सम्पन्न  बन सकते हैं। ~ मनोज श्रीवास्तव

सोमवार

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  सोमवार       @मानव मानसिक शक्ति  व आयु वृद्धि दायक  दिव्यौषधि है "सोम"। दिवस अधिष्ठाता  शशि की चन्द्रकिरणें वानस्पतिक रसरसायनों की निर्माता हैं तभी तो आयुर्वेद में "शशि" औषधीश है। इसीलिए शीतलता  व आरोग्य प्रदाता है सोमवार दिवस! ~ मनोज श्रीवास्तव

मानस

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तुलसीदास जयंती पर विशेष   मानस प्रस्तुति-मनोज श्रीवास्तव तुलसी की मानस में  स्वाभिमान है, स्वतंत्रता है और स्वावलंबन है।  जीवन में स्वाधीनता  राम की अधीनता  स्वीकारे बिना संभव नहीं है। स्वाभिमान  अपने अभिमान को  भगवान के चरणों में  अर्पण किए बिना   संभव नहीं है। स्वावलंबन   भगवान का  अबलंबन लेकर ही  सिद्ध होता है।  ईश्वर से  जुड़े बिना  सारे महाशीर्षक  अहंकार को ही  जन्म देते हैं। ~ मनोज श्रीवास्तव

सावन

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  सावन   प्रस्तुति-मनोज श्रीवास्तव श्रावण मास में भगवान शंकर कैलाश पर्वत से उतरकर मैदानी परिक्षेत्र में वास करते हैं, पृथ्वीवासियों का हालचाल  निकट से जानते हैं। शीर्ष व उच्चस्थ  विराजित जन  आम जन के मध्य पदार्पण कर  कुशलक्षेम जानें लोक कल्याण  स्वाभाविक है। ~ मनोज श्रीवास्तव

रुद्र

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  रुद्र @ मानव सहज-सरल,  लोकोपकारक, शिव नाट्य प्रवर्तक "नटराज", मंगलकारी सृष्टि हेतु  ताण्डव करने वाले; भूत- प्राणी- स्वामी,  "भूतभावन" "भूतनाथ" ; अनायास प्रसन्न होने वाले "आशुतोष"; चन्द्र धारणकर्ता "चन्द्रशेखर";  भयंकर रव करके भय से रक्षक  "भैरव"; विश्राम के लिए प्राणी जहाँ शयन करे  वह "सर्वाश्रय" शिव; काल के स्वामी "महाकाल";  शिव का आवेशरूप "शरभ"; "अकुल-सद्योजात"  "वामदेव- तत्पुरुष" "दक्षिणमूर्ति" "फणी"  देह से पृथक; जीव-पशुओं के पति "पशुपति नाथ"  अभिषेक प्रिय, रुद्राणां शंकरश्चास्मि  रोदनाति रुद्रः। ~ मनोज श्रीवास्तव