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Showing posts from March, 2023

पूर्ण राम

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  पावन श्री रामनवमी पर पूर्ण राम       @मानव जो भव सागर पार कराता हो  वह गंगा पार करने के लिए नाव माँगे; जो संकल्प से  रावण मार सकता हो, वह विभीषण से रावण - विनाश का उपाय पूँछे; सर्वज्ञ होते हुए भी सीता खोज के लिए  वानर सेना की मदद ले; विज्ञ होकर भी अज्ञ बनकर  जड़ पदार्थों से सीता का पता पूँछे वो ही पूर्ण राम हैं।  ईशावास्योपनिषद् परमात्मा की उपस्थिति की व्याप्ति दर्शाता है;  शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सर्वम् खल्विदम् ब्रह्म प्रतिपादित करता है; सर्वव्यापी ब्रह्म, ईश्वर या परमात्मा की संकल्पना  जीवन जीने के लिए सुदृढ़ आधार प्रदान करती है; जगत को सीय राममय कहकर  यही भावाभिव्यक्ति तुलसीदास की है, जगत में चहुँ-ओर  राम को देखना  जिनके भक्ति की पराकाष्ठा है।  श्रीराम सत्य,  तप, तितिक्षा, संतोष, धैर्य  और धर्मपरायणता की  प्रतिमूर्ति है। श्री राम का भाव  पर दुखकातरता के साथ  प्रतिष्ठित है।  राम को समदर्शी, दीनबंधु, भक्तवत्सल और करुणाकर आदि कहा गया है। राम सबके है, और सबमें उपस्थित है।  लोकमानस में राम की व्याप्ति सर्व और सर्वोदय की संकल्पना है जिससे सर्वे भवन्तु सुखिन: की  कामना फलवती होगी, रा

सुख-धाम राम

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  श्री राम नवमी पर विशेष सुख-धाम राम       @मानव जो भूत हैं, भविष्य भी  वही तो वर्तमान राम हैं  वर्तमान का सदुपयोग करना ही हमारी आस्तिकता है; वही राम की पूजा है। राम जन्मोत्सव प्रतिवर्ष मनाने का तात्पर्य राम को वर्तमान बनाए रखना है। अतीत को  वर्तमान करने का सामर्थ्य  केवल ईश्वर में है जो हर काल में  प्रत्येक जन को  मधुर लीलाओं से सुख प्रदान कर सके, जो रो भी सके, हँस भी सके, छोटा भी हो जाए, पग में ब्रह्माण्ड नाप ले।  भगवान ने जन्म लेकर  माताओं को सुख दिया;  पिता दशरथ को ज्ञान विषयक ब्रह्मानंद व भक्तिविषयक परमानंद  सुख प्रदान किया; ज्ञानी और भक्त दोनों को  आनंद प्रदान करने का सामर्थ्य  केवल राम में है। राम जन्म की सूचना से व्यक्ति की सुखानुभूति  घर घर बधावे से प्रकटी जो प्रकृति तक पहुँच गई, सरयू जल बढ़ने लगा, वृक्षों में फल आ गए, सरोवर भर गए, ऋतु वातानुकूलित हो गई। राम का स्वरूप कौशल्या रूपी पूर्व दिशा से उदित होकर सारे संसार को प्रकाशित करने वाला हो गया। गुरु वशिष्ठ ने राम को  आनंद, सुख और विश्राम से जोड़ा, जो प्राणि मात्र का अभीष्ट है; पर एक साथ सबको संतुष्ट करना राम की व्यापकता है। हरि

देवि सायुज्य अवसर

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  नवरात्रि हेतु विशिष्ट देवि सायुज्य अवसर       @मानव जो देवि स्मरण मात्र से समस्त भयों का  निराकरण कर देती हैं,  जो स्वस्थ मन से भजन, पूजन  व स्मरण करने वालों की दरिद्रता, भय आदि कष्ट हर लेती हैं उन देवी दुर्गा के सायुज्य से नवीन शक्ति-लब्धि का पावन सुअवसर हमें नवरात्र प्रदान करता है। देवी का पूजन,  उपवास, सामूहिक यज्ञ-हवन वातावरण को शुद्धकर ऋतु-परिवर्तन के कुप्रभाव से  हमारी रक्षा करता है साथ ही हमारी  आसुरी विचार व शक्तियों का शमन कर हमारे भीतर शक्ति व सत्प्रवृत्तियों का जागरण करता है।      ~मनोज श्रीवास्तव

देवी उपासना

  नवरात्रि पर विशेष देवी उपासना       @मानव भारतीय अनुभूति में  अनेक देवता हैं, देवी भी हैं; हम सब देवी माँ का विस्तार है; परम सत्य या देवशक्ति भी  इस जगत में माँ के माध्यम से आती है।  देवरूप माँ की उपासना  अति प्राचीन धरोहर है। ऋग्वेद से लेकर  रामायण,पुराण,महाभारत तक देवी उपासना उल्लिखित है; देवी भारत माता इस राष्ट्र की अभिभावक हैं। ऋग्वेद में पृथ्वी माता हैं ही  इडा,सरस्वती और मही तीन देवियाँ उल्लिखित हैं, देवी प्रति क्षण स्तुत्य हैं, दुःख और विषाद प्रसन्नता और आह्लाद में भी।  देवी दिव्यता हैं, माँ हैं, भारत स्वाभाविक ही देवी उपासक है, देवी पूजा से भारत  नई शक्ति अर्जित करता है। प्रत्यक्ष भाव बोध में प्रकृति भी देवीमाता है।  इसे देवी माँ कहने में ही  परिपूर्ण ममत्व प्रीति खिलती है। माँ और संतान के अविभाज्य  और अनिर्वचनीय प्रेम का चरम है देवी उपासना। माँ सर्वभूतेषु उपस्थित हैं, वह देवी हैं, दिव्य हैं, देवता हैं, प्रणम्य हैं। अस्तित्व को माँ रूप में देखना आनन्ददायी है। अस्तित्व से स्वयं को जोड़ने का अनुष्ठान देवी उपासना है।   ~मनोज श्रीवास्तव

नवसंवत्सर

  नूतन वर्ष की मङ्गलकामनाएं नवसंवत्सर       @मानव नवसंवत्सर के आगमन पर प्रकृति नूतन श्रृंगार में निमग्न है  जिससे वह नवीनता की ओर अग्रसर है।  वृक्षों पर नवीन कोपलें, खेतों में लहलहाती सरसों,  झूमती गेहूं की बालियाँ, मदमाती अमराइयों में बौर,  बगीचों में आकर्षित करते सुमन, व शीतल बयार का स्पर्श  सुखद अहसास देता है। इसी तिथि पर जगत रचयिता ब्रह्मा जी ने  परमात्मा की इच्छा एको अहं बहुस्यामः को साकार करने के लिए सृष्टि की रचना की।              ( ब्रह्म पुराण) नवसंवत्सर हमारी गौरवशाली और अविस्मरणीय  ऐतिहासिक-सांस्कृतिक स्मृतियों से जोड़ने की कड़ी है। अपनी संस्कृति से प्रेरणा लेकर, उसके संवर्धन  एवं संरक्षण की दिशा में  संकल्प का अवसर भी  हमें यह दिवस प्रदान करता है।  ~मनोज श्रीवास्तव

प्रकृति देवी

नवरात्रि पर विशेष   प्रकृति देवी       @मानव प्रकृति एक अखण्ड इकाई है,  प्रकृति सदा से है, सदा रहती है।  प्रकृति की शक्ति विराट है, यह दिव्य है सो देवता है ।  जहाँ जहाँ दिव्यता, वहाँ वहाँ देवता । जल सृष्टि का आदितत्व है, ऋग्वेद में भी  जल को माँ देखा गया है, जल माताएं आप: मातरम् हैं  और देवियाँ हैं । ऋग्वैदिक ऋषियों की अनुभूति में  संसार के प्रत्येक तत्व को जन्म देने वाली  यही जल माताएं हैं। प्रकृति को माँ देखते ही हमारी जीवन दृष्टि बदल जाती है। प्रकृति अनन्त है, असीम और आख्येय है, इसे माँ कहने में आह्लाद है। भारत का मन भाव प्रवण है, भाव प्रवण चित्र में ही  शिव संकल्प उपजते हैं ।  भाव प्रवण हो तो पत्थर में भी प्राण देख लेते हैं। अनगिनत जीव प्रकृति गर्भ से आ चुके हैं,  प्रतिपल आ रहे हैं।   सतत्,  अविरल,  पुनर्नवा प्राणि,  वनस्पति, लोभ-मुक्त शिशु। जीवन अद्वितीय है माँ का प्रसाद है, प्रकृति सृजनरत है;  प्रकृति दसों दिशाओं से  अनुग्रह की वर्षा करती है; अनुग्रह के प्रति  अनुग्रहीत भाव स्वाभाविक है। प्रकृति माता का ऋण है हम पर, प्रकृति का पोषण व संवर्धन माँ की ही सेवा है।  प्रकृति के सभी रूप

खुशी सक्रिय प्रक्रिया

  अन्तर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस (20 मार्च)पर विशेष खुशी सक्रिय प्रक्रिया        @मानव जीवन की सुंदरता का पैमाना है, कि हम कितने खुश हैं। मानव जाति की प्रगति  आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने में नहीं  वरन् खुशी में छुपी है, यह खुशी तब मिलेगी  जब यह हमारे भीतर घटित होगी । खुशी कोई अवस्था नहीं है  यह तो सक्रिय प्रक्रिया है,  हम अच्छा सोचें और इसे बरकरार भी रख पाएं तो हम सबसे खुशहाल हैं। जब हम ब्रह्माण्ड की  सकारात्मक ऊर्जा से एकाकार होते हैं  तो हमें खुशी नसीब होती है। खुशमिजाज प्राणी में स्वयं का रूपान्तरण करते ही खुशियाँ न्यौछावर हो जाएंगी। भंवरे का गुंजन,  पक्षियों का कलरव, बच्चों की किलकारी,  मासूम हँसी,  बारिश की बूँद के कारण,  धरती से उठती सौंधी खुशबू,  ठंडी बयार  इन सामान्य चीजों में ही  खुशी की तलाश छुपी है। यदि ये स्वाभाविक चीजें हमें अहलादित नहीं कर पाएं तो मन पर दबाव  बडी ख़ुशी पाने का है। बीमारी मुक्त, स्वस्थ और खुशहाल दुनिया के लिए  खुशी जरूरी है। धर्मग्रंथ निरूपित शिक्षाएं  अच्छे आचरण करो, धर्म पर चलो, कर्म शुभ हो, खुश रहने का ही तरीका हैं। हम खुश रहेंगे तभी बेहतर  कार्य न

रंगों का आध्यात्म

  होली पर्व पर विशेष रंगों का आध्यात्म         @मानव होली पर्व पर  हमारे उल्लास को रंग ही प्रकट करते हैं  जिनकी अपनी भाषा है। हम अपनी बातें,  भावनाएं,  विचार, कर्म, व आनन्द को अपनी चेतना के प्रेम,  करुणा,  भक्ति, ज्ञान, और वैराग्य से सजा पाएं  यह सब रंग बिना असंभव है।  अत: होली रंगों का पर्व है। रंगो के साथ  हमारी चेतना का बहुत गहरा संबंध है।  हर व्यक्ति के आभामण्डल का सीधा संबंध  हमारे विचार,  आचरण,  चरित्र,  रहन-सहन  और अध्यात्म से होता है जो हमारा वास्तविक संबंध है; हर रंग की विशेषता है, स्वभाव व चरित्र है, इन रंगों के साथ  हमारे प्रतिबिम्बित रंग हमारे प्रतिनिधि बन जाते हैं।  लाल रंग जीवंतता का प्रतीक है  जो प्राचुर्यता का भाव है, जो बिना बोले स्व आस्तित्व से अवगत कराता है, इस जीवंतता में कृपा, करुणा,  मातृत्व के भाव की  प्रचुरता पाई जाती है, यह शक्ति उपासना का भी प्रतीक है। भगवान कृष्ण नीलवर्ण हैं, शिव नीलकंठ हैं, नीले रंग से व्यापकता, समावेशिता जैसे भाव आते हैं, आकाश व सागर की तरह; आकाश से अधिक व्यापक सागर से गहरा कुछ भी नहीं है।  नीलांबरा धरो राधा पीताबंरा धरो हरिः, जीवन निधने नि

होली और स्त्री

  होली और महिला दिवस पर होली और स्त्री       @मानव "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते  रमन्ते तत्र देवता।" जब देवता का निवास ही  नारी के पूजे जाने पर निर्भर है  तो कोई भी अनुष्ठान  अथवा त्यौहार  बिना स्त्री पूर्ण कैसे होगा? हम नदी,धरती, गाय को माँ मानते हैं; प्रकृति का जननी समान  आदर-सत्कार करते हैं,  आराध्य शिव  स्वयं अर्धनारीश्वर कहलाते हैं,  जगत को गीता-ज्ञान देनेवाले  योगेश्वर श्रीकृष्ण  स्त्रीत्व प्राप्त करने के लिए  राधा-रूप धरकर निधिवन में रास रचाते हैं,  जिसके दर्शन की मनोकामना  योगी, ज्ञानी,ध्यानी करते हैं,  उस स्त्रीत्व को पाना  हर साधना हेतु  परमावश्यक है।  स्त्री सृष्टि की श्रेष्ठतम कृति है।  बिना स्त्रीत्व लब्ध-सिद्धि सृजन असंभव है;  मातृत्व दैवीय शक्ति है, स्त्री की सृजन शक्ति  उसे ईश्वरीय बनाती है; स्त्री सृष्टिका मूलाधार है;  स्त्री के होने से  अर्थ है,सामर्थ्य है; स्त्री होना ही सौभाग्य है। स्त्री के होने से  उत्सव है,  उत्साह है, रस है, जीवन है। हमारी उत्सवधर्मी संस्कृति   इसीलिए स्थापित है क्योंकि हर उत्सव का प्राण  स्त्री है। होली के उत्सव गान में  गीतों की आत्मा