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Showing posts from September, 2023

पितृपक्ष:दायित्वबोध का अवसर

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  पितृपक्ष:दायित्वबोध का अवसर        @ मानव पितृपक्ष हमारे पूर्वजों के प्रति हमारे दायित्वबोध का  विशेष अवसर है। पितृकर्म का मूल आधार  हमारा वेद हैं।; वेद का एक नाम श्रुति है; श्रुतियों में उल्लिखित कर्म  श्रौतकर्म कहलाते हैं; श्रौतकर्म के मुख्य तीन स्वरूप होम, इष्टि एवं सोम हैं; वेदों में ही पितृश्राद्ध का महत्व व्यापक स्तर पर वर्णित है। पितृकर्म का सांगोपांग वर्णन गरुड़ पुराण में है, जहाँ उत्तरखण्ड में महर्षि कश्यप के पुत्र  पक्षीराज गरुड़ द्वारा  जिज्ञासा किए जाने पर  भगवान विष्णु के श्रीमुख से मृत्यु के उपरांत के गूढ़ तथा परम कल्याणकारी  वचन प्रकट हुए थे, इसलिए यह पुराण ‘गरुड़ पुराण’ कहा गया है।  जो भी जीव इस संसार से  परलोक हेतु प्रयाण करता है, वह प्रेत नाम से संज्ञित होता है; अतःउत्तरखण्ड को  प्रेतकल्प भी कहते हैं।  ‘प्रेतकल्प’ के पैतीस अध्यायों में  मृत्यु का स्वरूप,  मरणासन्न व्यक्ति की अवस्था तथा उनके कल्याण के लिए अंतिम समय में कृत्य  क्रिया-कृत्य का विधान है; इसमें अनुष्ठान और श्राद्धकर्म आदि का   सविस्तार वर्णन है। इक्ष्वाकुकुलभूषण  महाराज भगीरथ ने कठिन तपस्या द्वारा  सर्वप

दामोदर

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  दामोदर (हाईकू)        @ मानव (१)  योगेश्वर हैं  नटवर नागर  धर्मेश्वर भी । (२) कृपा सिंधु का कण-कण में वास जग पालक ! (३) दुष्ट दलन दामोदर शरण पावैं अभय ! (४) दीपक जला  दर्शन की है आशा तकते नैन!  ✍️ मनोज श्रीवास्तव

श्रीराधारानी

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  श्रीराधारानी          @मानव लीलापुरुष श्री कृष्ण की  रानियों और प्रेमिकाओं में  श्रीराधारानी का सर्वोत्तम स्थान है; जिनकी पूजा-अर्चना बिना श्रीकृष्ण की पूजा को  अधूरा माना गया है। श्रीराधारानी श्रीकृष्ण के प्राणों की  अधिष्ठात्री देवी हैं, भगवान जिनके अधीन रहते हैं; वे संपूर्ण कामनाओं का  राधन करती हैं, इसी कारण वे श्रीराधा हैं। वे श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति हैं; 'कृष्ण वल्लभा' कहकर  उनका गुणगान किया गया है; वे वृंदावनेश्वरी श्रीराधा  सदा श्रीकृष्ण को आनंद प्रदान करती हैं। उनकी रूप माधुरी संपूर्ण जगत को मोहने वाली है और वे सर्वोत्तम गुणवाली हैं; श्रीराधारानी सर्वतीर्थमयी हैं; ऐश्वर्यमयी हैं; वे भगवान की निज स्वरूपा शक्ति हैं; जो सच्चिदानंदमयी एवं नित्य हैं; भगवान श्रीकृष्ण की भाँति ही ब्रह्म स्वरूपा और प्रकृति से परे हैं। स्थायी प्रेम की कामना से  श्रीराधारानी के नामों के जाप से विशेष आशीष प्राप्त होता है, जीवन प्रेम से भर भर जाता है, सांसारिक जीवन सुखमय बीतता है। शब्दार्थ राधन - साधने की क्रिया  ✍️मनोज श्रीवास्तव

वंदन!प्रथम पूज्य!

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  वंदन!प्रथम पूज्य!        @मानव भारतीय संस्कृति में प्रथम पूज्य और सर्व सुलभ देवता, शिव गणप्रमुख के आह्वान और मंगल उपस्थिति बिना "श्रीगणेश"संभव ही नहीं है। गणपति गजानन का सौम्य स्वरूप ऐसा है जो दर्शन करने वाले को  मंगल और आनंद की  अनुभूति कराता है। हमारी सनातन संस्कृति  सबको एक सूत्र से  बाँधने-जोड़ने वाली है, ब्रिटिश गुलामी और मुगलों समेत विदेशी आक्रमणकारियों की प्रताड़ना से कम हुए जन मनोबल को  ऊपर लाने के लिए   लोकमान्य तिलक ने  देशवासियों की एकता  और सामूहिक आत्मबल बढ़ाने के लिए गणेशोत्सव को धूमधाम से  मनाने की शुरुआत पुणे में की। गणपति पंडाल,  पूजा-आरती और विसर्जन में सभी लोग बिना भेदभाव  सम्मिलित हुए और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए गणपति बप्पा! विघ्नविनाशक गणेश शरणदाता देव हैं, जो लोक के सबसे बड़े देव कहलाते हैं, सरल इतने कि चाहे जो रूप दे दो बुरा नहीं मानते, इनकी पूजा भी बड़ी सहज सरल होती है; यह उनकी सरलता ही है  कि घरों-मोहल्लों-मंदिरों  और सार्वजनिक स्थानों पर गणपति विराजते हैं और सबको आशीष देते हैं। गणेश जी इंद्रियों के भी स्वामी हैं; हम सबके भीतर की  आसुरी प्रवृत्त

शिल्पदेव

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  शिल्पदेव        @मानव शिल्प-विद्या के प्रवर्तक  निर्माण और सृजन के आराध्य भगवान विश्वकर्मा ने ही  शिल्प और कला के जरिये  सृष्टि को खूबसूरती दी।  किसी अनगढ़ वस्तु को  आकर्षक बनाने वाला शिल्पकार प्रत्यक्षतः हाथों का प्रयोग करता है पर मस्तिष्क के निर्देश से, अतः मस्तिष्क को सशक्त बनाने का प्रयत्न आवश्यक है। पूरी आकृति देने के पहले  शिल्पकार को आलस्य नहीं करना चाहिए; इनमें संतुलन बनाने से वह शारीरिक रूप से ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी सक्षम होता है। भौतिक-समृद्ध व्यक्ति का सम्मान उसके अपने ही क्षेत्र में होता है। जबकि मस्तिष्क से समृद्ध व्यक्ति का सर्वत्र होता है; विद्वान और राजा की तुलना नहीं की जा सकती है।  विद्वान सुगंधयुक्त पुष्प है, जो जहाँ जाता है ज्ञान की सुगंध बिखेरता है; अतः जीवन में आकर्षक शिल्प और कला के लिए भगवान विश्वकर्मा प्रेरक हैं।  ✍️मनोज श्रीवास्तव

विकास से संवाद की भाषा

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  विकास से संवाद की भाषा          @ मानव गगनयान, व्योम मित्र, विक्रम, प्रज्ञान, आदित्य, शिवशक्ति, यह शब्दावली हिन्दी को ज्ञान-विज्ञान और सामर्थ्य की भाषा बना रही है; यह हिन्दी का नया जगत है, हिंदी का नए जगत के साथ सामर्थ्य का संवाद है; यह हिन्दी का नया उत्साह भाव है; यह आशा की भाषा बन रही है; इन रूपों में हिन्दी धरती से लेकर आकाश तक हर भारतवासी को गौरवान्वित कर रही है; यह राष्ट्र के संकल्प और ताकत का प्रतीक है यही नया भारत है। हिन्दी विकास की भाषा है  जो बाजार और आमजन के साथ आगे बढ़ने का रास्ता खोज लेती है; विकास पर बात करना  उत्तरदायित्व पर भी बात करना है, जीवन की गतिशीलता पर बात करना है, जो भारत के जीवनराग को बनाते हैं, इस जीवनराग की व्याख्या  भारत के सपने की व्याख्या है, इसे समझना हिंदी के चरित्र को समझना है। हिंदी स्वाधीनता आंदोलन की चेतना को अभिव्यक्त करने के लिए भाषायी जरूरत का उत्तर थी; जिन महानुभावों ने हिन्दी की पक्षधरता की वह किसी लाभ के लिए नहीं बल्कि सायास चयन था जो अपने देश को अपनी भाषा के माध्यम से  चलाने की प्रतिबद्धता थी; राष्ट्रीय जागरण का अभ्युदय था। हिंदी ज्ञान की भाष

क्षमावाणी पर्व

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  क्षमावाणी पर्व        @ मानव जिन विकारों के कारण आत्मा संतप्त क्षुब्ध और चंचल बनी हुई है, उन्हें शांत कर आत्मा का पूर्ण रूप से आत्मभाव में निवास करने का अवसर है पर्युषण दशलक्षण पर्व। यानी अपने शुद्ध स्वरूप का चिंतन-मनन कर आत्माभिमुख हो आत्मानुभव में तल्लीन हो जाना। यह धर्म के दस अंगों को  आत्मसात करने का पर्व है। जिसमें प्रयास रहता है कि आत्मा मोक्षगामी बने।  सारे विकारों के जनक क्रोध को क्षमा ही शांत करती है। इसीलिए पर्व का आरंभ  क्षमा धर्म से होकर समापन क्षमावाणी पर्व से होता है।  ✍️ मनोज श्रीवास्तव

योगेश्वर श्रीकृष्ण

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  योगेश्वर श्रीकृष्ण        @मानव योगेश्वर श्रीकृष्ण प्रबंधन, नवनिर्माणकर्ता और मार्गदर्शन करने वाले  महामानव हैं। वे अद्वितीय हैं क्योंकि मानवता की रक्षा और धर्म-स्थापना में  उनके द्वारा किए गए कार्य  उनके पहले द्वापर युग में  किसी ने नहीं किया था। वे ऐसे मनीषी हैं जिनका जीवन मानवीय सद्गुणों और धर्म की रक्षा व स्थापना कर अधर्म और अधर्मियों का  नाश करने से जुड़ा है। वे सर्वहित करने वाले हैं, वे परमहितैषी महाराज हैं, वे सब को साथ लेकर चलते हैं और विपरीत बुद्धि वालों को अपनी नीति और स्वभाव से अपने में समाहित कर लेते हैं। अध्यात्म उनका निराला है; वे उनका भी उद्धार करते हैं  जो सदा असुर नीति के पोषक रहे; क्योंकि उनका कार्य धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करना था। गीता में वे कहते हैं - जो व्यक्ति डर से रहित,  दिल से सदा साफ,  तत्वज्ञान के लिए जिज्ञासु,  योग-ध्यान में समता से युक्त, सात्विकता के गुणों को  धारण करता है; अपने बड़ों की पूजा करता है, वह सच्चे मायने में धर्म को जानता है।  वे कहते हैं, जीवन में धर्म उतना ही जरूरी है जितना कि धन-दौलत; शुभकामना करते रहना  उतना ही जरूरी है जितनी आंनद

कृष्णावतार

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  कृष्णावतार          @ मानव संपूर्ण कलाओं से युक्त  श्रीकृष्ण ने अधर्म के नाश के लिए  अवतार लिया और कर्मयोग की व्याख्या  गीता के माध्यम से संसार को दी। मानव जीवन का सबसे सरल और सहज मार्ग उन्होंने दिखाया; उद्धार और मोक्ष का पथ भी प्रशस्त किया। भौतिक तथा आधिभौतिक  सफलताओं का दिग्दर्शन किया; प्रेम और भक्ति की धाराएं पवित्र कीं; योग का दर्शन सृजित किया; ज्ञान की परंपरा को  प्रवर्तित किया; मनुष्य के आचरण की  संहिता को नवीनीकृत किया; फिर दुष्टों को दण्ड देने का कर्तव्य पुनः निरूपित किया; शत्रुदमन की मीमांसा रची; राजधर्म को सीधे  राजयोग से जोड़ा; दैवीय तत्व को कसौटी पर  परखने का पक्ष स्पष्ट किया, अवतार के उद्देश्य को सिद्ध करके धरती पर जीवन से  आत्मसाक्षात्कार कराया; नीति की प्रयोगशाला  स्थापित की। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर वात्सल्य की गङ्गा को अवतरित किया;  प्रेम तत्व को सिखाया;  संघर्षों से राह खोजना  आसान कर दिखाया;  संपूर्ण जीवन के सभी अंगों में नई ऊर्जा का स्फुरण किया; सुख-दुख में समभाव की  अनुभूति का मंत्र दिया;  पग-पग पर कल्याण  एवं लोकहित का पाठ पढ़ाया। आत्मा के समक्ष मानव का सम