महारास का आध्यात्मिक स्वरूप
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महारास का आध्यात्मिक स्वरूप @मानव जो आस्वाद और आस्वाद्यमान दोनों धर्म विशिष्ट रस से युक्त हो, वह रास कहलाता है। गोपियाँ वेद ऋचाएं हैं और श्रीकृष्ण अक्षर ब्रह्म वेद पुरुष; शब्द और अर्थ अथवा ऋषियों और वेद के नित्य संबंध की भाँति गोपियों और कृष्ण का नित्य संबंध और विहार ही रासलीला है। सांख्यवादियों के अनुसार, रासलीला प्रकृति के साथ पुरुष का विलास है। गोपियाँ प्राकृत स्वरूप में अंतःकरण की वृत्तियाँ हैं, भगवान श्रीकृष्ण पुरुष हैं। प्रकृति के अनेक विलास देख लेने के बाद अपने स्वरूप में स्थित होना रासलीला का रहस्य है। योगशास्त्र में अनाहत नाद श्रीकृष्ण की वंशी ध्वनि है। अनेक नाड़ियां गोपियाँ हैं। कुल कुंडलिनी श्रीराधिका रानी हैं। सहस्र दल कमल ही सुरम्य वृंदावन है, जहाँ आत्मा-परमात्मा का आनंदमय सम्मिलन रासलीला है। आत्मशक्ति को प्रधानता देने वाले विद्वान पूर्णानंद में आत्मा के लीन होने को रासलीला मानते हैं। गो शब्द का अर्थ इंद्रिय है, जिस प्रकार इंद्रियाँ या उनकी वृत्तियाँ एक मन एक प्राण होकर अंतरात्मा में विलीन होने की तैयारी करती हैं, उसी प्रकार वंशीध्वनि से गोपिया