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Showing posts from July, 2021

क्रान्ति कथा:जिसने पत राखी

 क्रांति-कथा (३१ जुलाई पर विशेष)                   जिसने पत राखी  वर्ष १९१९ के अप्रैल मास की वह सुबह।उस बगिया में हजारों बच्चे-बूढ़े और जवान चारों ओर फैले सरसों के पीले और मदमाते फूलों व झूमती बालों के बीच से गुजर कर आए थे। सभी मस्ती में हँसी-ठिठोली कर आनंदित हो रहे थे।शाम ढलने को आयी कि चारों ओर ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरे जलियाँवाला बाग में अंग्रेज सेना के जवान घुसने लगे।उन्होंने दीवार के समान्तर अन्दर की ओर एक और दीवार बना डाली। मशीनगनें निहत्थे आबाल वृद्ध नर-नारियों की ओर उठ गयीं।दरवाजे पर खड़े जनरल डायर की आदेशात्मक पिस्तौल गरजी तो मशीनगनों से आग बरस उठी।चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई।भागने का कोई ठौर ठिकाना नजर नहीं आ रहा था।कोई भागा तो कुएँ में जा गिरा।स्त्रियां अपने दुधमुँहे बच्चों समेत या तो गोली खातीं या अपनी लज्जा के निमित्त कुएँ में जा कूदतीं।शीघ्र ही कुआँ लाशों से पट गया।उसमें किसी के बचने का सवाल ही नहीं था।चारों और लाशों के अंबार लग गए।जब भेदने को कोई सीना न रहा तो मशीनगनें शांत हो गयीं। आज दो दिन बीतने को आए थे। आकाश में चारों ओर गिद्ध मंडरा रहे थे और आज ही सुबह के अखबार मे

ऐतिहासिक बाल कथा : वह बालक

        ऐतिहासिक बाल कथा : वह बालक लगभग चार शताब्दी ईसा पूर्व का वह काल।मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र की राजसभा। बड़े-बड़े विद्वान,कुशल योद्धा,चतुर राजनीतिज्ञ, प्रतिभा संपन्न कलाकार व लक्ष्मी के वरद पुत्र धनिकों से सुशोभित सभा में लोग यथास्थान बैठे थे।अमात्य राक्षस व उपमहामात्य शककटार भी अपने स्थान पर विराजमान थे।चारों ओर शस्त्रधारी सैनिक सचेत खड़े थे।तभी द्वार पर शोर हुआ। सभी सचेत हो उठ खड़े हुए।नंदवंशी महापद्मनन्द राजा उग्रसेन ने प्रवेश किया।वे मंथर गति से सिंहासन की ओर बढ़ रहे थे;मानो कोई मदमस्त हाथी अपनी ही धुन में बढ़ा चला जा रहा हो।साथ में चल रहे दीर्घकाय अंगरक्षक उनकी शोभा में चार चाँद लगा रहे थे।उनके सिंहासन ग्रहण करते ही राजसभा में चुप्पी छा गई। महामात्य राक्षस ने उठकर सादर महाराज की जय जयकार की और सभा की कार्यवाही प्रारंभ करने की अनुमति माँगी। अनुमति मिलते ही महामात्य ने इशारा किया।एक व्यक्ति आगे बढ़ा।उसने सम्मान पूर्वक राजा को अभिवादन किया।संभवतः वह एक विदेशी दूत था। उसके इशारे की अनुमति से पीछे खड़े दसियों अनुचर आगे बढ़े।उनमें कुछ के हाथों में बड़े-बड़े थाल थे जिनमें ह

कहानी : काउण्टर - तीन

                                           कहानी : काउण्टर - तीन "आप तो बहुत ही अनुशासन वाले व हिसाब-किताब रखने वाले अध्यापक हैं तो कैसे आपकी पॉलिसी कालातीत (लैप्स) हो गई?"मैंने अपने कार्यालय आए पूर्व परिचित शिक्षक से प्रश्न किया जो उक्त कार्य हेतु मेरे समक्ष खड़े थे। "बस सर हो गया।"कह कर उन्होंने बात टाल दी।मैंने भी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करवाईं।उन्होंने काउण्टर पर पैसा जमा किया फिर मेरे पास आकर बैठ गए।संयोगवश उस समय मेरे पास कोई ग्राहक नहीं था।औपचारिक वार्ता के बाद उन्होंने स्वयं बताना शुरू किया- लगभग सात माह पूर्व (जब उनकी पॉलिसी चालू अवस्था में थी)उन्होंने अपने भतीजे को, जो दिल्ली की किसी फर्म में एकाउण्टेण्ट था और छुट्टियाँ बिताने गाँव आया था,को पैसा जमा करने के लिए भेजा था।काउण्टर पर भीड़ होने के कारण युवक लाइन में लग गया।काउण्टर तक पहुँचने में घंटों लग जाने का एहसास उसकी हिम्मत को चुनौती दे रहे थे।पर मरता क्या न करता।  ५ -७ मिनट बीते होंगे कि एक समवयी युवक उसके पास आया और बड़े ही अदा से नमस्कार कर उसने उससे हाथ मिलाया मानो वह उसका पूर्व परिचित हो। उसने उसका

कहानी : काउण्टर -दो

               कहानी : काउण्टर -दो आज भी काउण्टर पर बड़ी भीड़ है।बारह साल का एक बच्चा जिसके पिता ने उसे दुनियावी ज्ञान सीखने भेजा था लाइन में सबसे पीछे लग गया।१५-२० मिनट में लाइन हनुमान जी की पूंछ की तरह बढ़ती गई और बच्चा बीच में था। पँक्ति के आगे बढ़ने की गति उसे अब से एक घंटे तक का समय लगने का स्पष्ट संकेत दे रही थी।  एक सज्जन जो अभी-अभी आए थे लड़के के बगल आकर बोले-"बेटा तुम कहाँ लाइन में लगे हो?"   "अंकल पापा का पैसा जमा करना है।" "एक ही खाता (पालिसी) है?"  "हाँ!" "तो जाओ तुम बेंच पर बैठ जाओ।मैं अपने पैसे के साथ तुम्हारा भी जमा कर दूँगा।" बच्चे की बुद्धि ने तुलसी के कथन-'जाकी रही भावना जैसी" के अनुसार उस व्यक्ति का निवेदन दोष रहित माना और सहर्षअपना पैसा व चालान (चिट पर्ची) सौंपकर लाइन के पीछे रखी बेंच पर बैठ गया। पाँच मिनट बीते होंगे कि व्यक्ति ने अपने पर दृष्टि रखे बच्चे को इशारे से पास बुलाया।बच्चे को एक छोटी पर्ची व पाँच रुपये का नोट पकड़ाते हुए बोले-"बेटा नीचे मेडिकल स्टोर से यह एक गोली लेते आना सर में बड़ा दर्द है।&

कहानी : काउण्टर-१

                   काउण्टर-१ आज काउण्टर पर बड़ी भीड़ है।कैशियर की उँगलियाँ कंप्यूटर के की-बोर्ड पर व ग्राहक से मिलने वाली नकदी की गणना में तेजी से व्यस्त हैं; पर भीड़ है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही।एक ७०-७५ वय के बुजुर्ग छड़ी टेककर लाइन में लग गये। लगभग पन्द्रह मिनट तक लाइन में लगे होंगे कि पीछे भी कतार में १५-२० नए लोग लग चुके थे।इस दौरान जितने लोग आगे से हटे होंगे उससे यह अनुमान लगाया जा सकता था कि लाइन के इस बिंदु को सरकते हुए काउंटर पर पहुंचने में एक घंटे से अधिक का समय लगना तय है। बुजुर्गवार निराश थे पर मजबूर भी। बीस किलोमीटर से आना जो हुआ था। इतने में एक नवयुवक देवदूत(?) बनकर आया। "दादा इस तरह आप कब तक लाइन में लगे रहेंगे? लाइए आप की जगह मैं खड़ा हो जाता हूँ।आपका पैसा और अपना पैसा साथ में जमा कर दूँगा। आप यहीं बेंच पर बैठ जाएं। दादा को सौदा बुरा नहीं लगा।लड़के को १५-२० लोगों के पहले ही खड़े होने का स्थान मिल जाएगा; इससे उसके भी आधे घंटे से ज्यादा समय की बचत होगी और उनका भी काम निकल जाएगा।उन्होंने अपने हाथ की संपूर्ण राशि व पॉलिसी खाता नम्बर की चिट(चालान) सहर्ष युवक को थ

कहानी:एक कुत्ते की आपबीती

  एक कुत्ते की आपबीती मनोज श्रीवास्तव अजी छोड़िए! मुझसे ज्यादा कौन जानेगा अपने पराए का भेद!          आज सुबह ही में वीआईपी कॉलोनी में ब्रेकफास्ट के लिए इधर-उधर घूम रहा था।सोचा था बड़े आदमियों की बस्ती में कुछ लजीज जूठन मिल जाएगी।अभी दो चार बंगले के आगे लगे कूड़े के ढेर को सूँघा ही था कि एक बंगले के गेट से लगा सफेद अल्सेशियन अंदर से भुक-भुक करने लगा।मैं उसे ध्यान दिए बिना बंगले के आगे सड़क उस पार लगे ढेर का निरीक्षण करने लगा।ढेर के चारों ओर घूमने के बाद जब मुझे कुछ ना मिला तो मैं खिसिया गया।सामने उस नाक पीटे को भुक-भुक करते देख मेरी खिसियाहट और बढ़ गई। मैंने भी अपने होंठ ऊपर कर दाँतों को दिखलाते हुए हल्की गुर्राहट के साथ उसे घुड़क दिया।वह एक बार पूँछ दबा बैठा।पर अंदर लान में मार्निंग -वॉक से लौटी बंगले की जींस टॉप वाली नकचढ़ी मालकिन- कन्या ने यह देख लिया।संभवत: उसे मेरी गुस्ताखी तौहिनी लगी।अंदर की ओर मुँह करके चीखने लगी-"टॉमी टॉमी---"। जाने कहाँ से एक दूसरा अल्सेशियन आ पहुंचा और छोकरी ने दौड़ते हुए गेट खोल दिया।वह चिल्लाई,"टॉमी- टॉमी गो एंड अटैक--।"मैं सिटपिटा गया।मैं

आम आदमी बनाम विपक्ष

         आम आदमी बनाम विपक्ष सिद्धांततः राजनीति का प्राण सुचिता है।पर व्यवहार में लोकतंत्र में यह साम-दाम-दंड-भेद की नीति से चलती है।इसी कारण आमजन को "दस चोरों में सबसे कम चोर कौन ?" की नीति पर चलना पड़ता है।असली चेहरा भी तभी सामने आता है जब उन्हें परखा जाता है।अतः आम आदमी का मत परिवर्तित होना लाजमी है पर आँकलन अपना-अपना...।  लोकतंत्र में दो पक्ष सत्ता व विपक्ष हैं। 2014 के पहले सत्ता पक्ष विपक्ष से इतना घृणा करता था कि विपक्ष तो पहले से ही दूर था ही अपने भी दूर हो गए।फलतः विपक्ष सत्ता में आ गया।  पुराना सत्तापक्ष आज भी घृणा का वैसे ही प्रसार कर रहा है (शायद सत्ता खोने की खीझ बनी हुई है)और आज का सत्ता पक्ष उसे भुना रहा है।फलतःनीतियां नहीं बल्कि विद्वेष की भावना ही महत्वपूर्ण हो चुकी है इस लोकतंत्र में! जिससे टूटे मत पुनः जुड़ नहीं पा रहे क्योंकि आज का विपक्ष(पूर्व सत्ता पक्ष) उनसे घृणा अभी भी कर रहा है।वह अपनी कमी स्वीकार करने को तैयार नहीं।आम आदमी थोड़ा-बहुत नुकसान सह सकता है पर "असम्मान" नहीं।कारण-वह किसी भी पक्ष अथवा सिद्धान्त का मुरीद अथवा बिका नहीं। आम आदमी अपना

लचर सरकार:एक समीक्षा

 लचर सरकार:एक समीक्षा देश सत्ता का दावा करने वाले मौजूदा हर दल को आजमा चुका है।इनके आपस के लगभग प्रत्येक कार्य की परिस्थिति जन्य तुलना स्वाभाविक है।नोटबन्दी,जी यस टी,सी ए ए,अनुच्छेद 370,कृषि सुधार कानून,श्रम नीति सुधार कानून जैसे मुद्दों पर वर्तमान सरकार ने जिस तरह दृढ़तापूर्वक निर्णय लिए,कुछ निर्णयों में इसकी लचर नीतियों ने पूर्व व वर्तमान दावेदार सरकार की याद दिला दी ।उनमें से वर्तमान में घट रही कुछ घटनाओं व उस पर लिए जा रहे निर्णयों की पूर्व सरकारों द्वारा उन्हीं परिस्थितियों में लिए जा सकने वाले निर्णयों की बानगी प्रस्तुत है- 1- 2 मई से बंगाल में भाजपाइयों से हिंसा,लूट,रेप,हत्या;मुण्डन व क्षमा से शुद्धि के साथ TMC में शामिल करने की वारदातें हो रही हैं। भाजपा अपने वोटरों की रक्षामें असमर्थ है। यदि केंद्र की सत्ता में व प्रताडितों में काँग्रेसी होते तो क्या TMC सरकार बची होती? काँग्रेस द्वाराअपने कार्यकाल में संविधान प्रदत्त अनुच्छेद 356 का प्रयोग इसका उदाहरण है। 2-कोरोना संकट के समय अन्य जरूरतमंद राज्यों के लोगों के जान की कीमत पर आवश्यकता से कई गुना ऑक्सीजन की गुहार सुप्रीम कोर्ट तक

लघु कथा :तू भी बदल फलक.....

 तू भी बदल फलक....? "साहब मेरा चेक मिलना था।कागज परसों ही डिस्पैच सेक्शन में जमा कर गया था।देख लें वह आप तक आ गया है?"अधेड़ ने बड़ी विनम्रता के साथ मुझसे कहा।   मैंने डिस्पैच की रिसिविंग देखते हुए रजिस्टर खोला और शालीनता से जवाब देने लगा-"आपके पेपर कल ही आ गए थे और कल ही पेमेण्ट वाउचर भी बन गया था।आज सुपरवाइजर ने उसे चेक कर ए. ओ.साहब के पास,पास होने को भेज दिया है।" "साहब अब हमें क्या करना है?" "आपको क्या करना है?वाउचर आज पास होकर एकाउंट सेक्शन में पहुँच जाएगा।कल चेक बनकर अन्य जांच के बाद दो अधिकारियों के साइन होते हुए परसों आपके पते पर डिस्पैच हो जाएगा।हफ्ते के अंत में आपको चेक डाक से मिल जाना चाहिए। "मेरा मतलब है मुझे किससे मिलना होगा?" "जब काम हो रहा है तो मिलने की क्या जरूरत है?"मैं उसी रौ में कह गया। इस दौरान वह बराबर मेरे चेहरे पर नजर गड़ाए हुए मुझे पढ़ने की कोशिश करता रहा।पर मेरे निर्विकार भाव को पाकर वह बोल पड़ा-"साहब बुरा ना माने तो एक बात कहें?" "हाँ हाँ! बोलिए।" "साहब!मैं प्राइमरी स्कूल में मास्टर