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Showing posts from August, 2023

रक्षाबंधन

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  रक्षाबंधन        @मानव सतयुग में धर्म और सत्य की  रक्षा के लिए रक्षासूत्र का महत्व रहा। त्रेतायुग में ऋषि- मुनियों,  संत-महात्माओं ने श्रीराम को रक्षासूत भेंट कर रक्षा का सांकेतिक विश्वास  प्रकट किया था। द्वापर युग में श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ने रक्षाबंधन की परंपरा आरंभ की। कलियुग में भारतीय उपमहाद्वीप में  बहनों के द्वारा अपने भाइयों को रक्षासूत्र समर्पित करके  सुरक्षा का अधिकार  अर्जित करना, इसका उद्देश्य है। रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति और समाज का सर्वाधिक संवेदनशील पर्व है, जो सांस्कृतिक दर्शन का ही स्रोत है। वस्तुतः यह सभी लोगों में  एक-दूसरे के प्रति रक्षा के विश्वास अर्थात एकता के प्रदर्शन का ही महापर्व है। यह एक-दूसरे के प्रति  सम्मान और प्रेम का भी अवसर है। भाई-बहन के स्नेह, प्रेम और संकल्प का प्रतीक बन कर राखी समस्त परिवार के लिए धुरी बन गई है। इसमें अनंत वात्सल्य छिपा है। भावनाओं का सबसे बड़ा संकेत राखी के धागे में अंतर्निहित है। राखी संसार की महानतम  सांस्कृतिक धरोहर भी है।  सभ्यता का व्यावहारिक प्रयोग राखी के माध्यम से समाज में व्याप्त होता है।  भाई बहन की सद्भावना का रूपक

चंद्रमिशन और राखी

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  चंद्रमिशन और राखी         @मानव चंद्र मिशन की उपलब्धि  नारी शक्ति की उपलब्धि है,  भारत की बेटियाँ अब अनंत समझे जाने वाले अंतरिक्ष को चुनौती दे रही हैं; किसी देश की बेटियाँ जब इतनी आकाँक्षी हो जाएं तो उस देश को विकसित होने से कौन रोक सकता है?    (प्रधानमंत्री मोदी) निश्चितत: यह प्रगति का  वह सोपान है जहाँ हम कुछ खोते भी जा रहे हैं संचार क्रांति के साथ चाँद को छूने की चाहत ने  व्यस्तता ऐसी बढ़ा दी है कि इन बहनों की राखी  भाइयों की कलाई पर  भतीजियों के माध्यम से ही पहुँच पा रही है। ठीक वैसे जैसे हम बाँध देते थे पिता की सुनी कलाई पर बुआ की भेजी गई राखी। पर तब कारण दूसरा था  संचार क्रान्ति से अछूता  हमारा युग बुआ को  गृहस्थी की जात में जोत कर भाई तक पहुँचने नहीं देता था  न फ्री बस सेवा थी ना वीडियो कॉल बस राखी के साथ भेजी गई घर का हाल-चाल देती  भाभी-भतीजों को याद करती  दिल के तार जोड़ती एक पन्ने की संक्षिप्त चिट्ठी  स्मृति के कोने महका जाती। राखी का त्योहार आज भी मन रहा है  बहन व भाई दोनों के आँगन में; पर बौराया मन मृग मरीचिका के पीछे भाग रहा है और हम भतीजी से बुआ बन चुके हैं।  ~✍️ मनोज

रक्षाबंधन के बहाने

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  लघुकथा रक्षाबंधन के बहाने        @ मानव इस कस्बे में मिली पोस्टिंग के बाद वह मुझे आज दूसरी बार व्यस्त चौराहे के गोलण्डे पर भीड़-भाड़ से निर्लिप्त जनवरी की गुनगुनी धूप सेंकती अपने में खोयी बैठी मिली थी।स्वाभाविकतः ऑफिस खुलने का समय होने के कारण चौराहे की व्यस्तता अधिकतम होते हुए भी वह अपने में रमी थी। लगभग २४-२५ साल की व्यवस्थित कपड़े और ब्लेजर पहने इस छरहरी महिला को यूँ बैठा देखकर अचम्भा होना स्वाभाविक था। पहली बार वह मुझे रेलवे स्टेशन की फर्श पर सुबह पाँच बजे ट्रेन पकड़ने के लिए पहुँचने पर प्लेटफॉर्म के फर्श पर दुपट्टा ओढ़कर सोती मिली थी।मेरे सामने ही वह सोकर उठी थी,पास के नल में जाकर मुँह धोया था,बाल को करीने से ठीक किया था।आस-पास के लोगों की नजर उस पर स्वाभाविकत: थी।वह उठकर पास वेंडिंग काउण्टर पर गई थी।वेण्डर ने तत्काल उसे चाय दे दी थी।चाय लेकर वह एक खाली सीट पर सलीके से बैठकर उसे चुस्कियों के साथ पीने लगी थी।उस दिन तो मैंने इसे स्वाभाविक यात्री मानकर तवज्जो नहीं दिया था और गाड़ी आने पर गंतव्य की ओर चला गया था।पर आज उसकी दशा व कुछ-कुछ पढ़ी गई क्षणिक मनोदशा से विचलित सा हो गया था। मैं अफ

चन्द्र-मिशन - ३

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 चन्द्र-मिशन - ३        @ मानव हमने धरती पर लिया संकल्प विधु- धरा पर किया साकार। संपूर्ण विश्व ने बरबस देखा इतिहास ने प्रत्यक्ष लिया आकार।। विकसित भारत का शंखनाद देश के लिए अभूतपूर्व क्षण।  राष्ट्र जीवन की चेतना का चन्द्रपथ प्रत्येक भारतीय की धड़कन।। इस क्षण भारत के सामर्थ्य का गुँजायमान होता जय घोष। उदीयमान भारत का आह्वान चंद्रयान-दल को धन्यवाद अनुतोष।। ✍️ मनोज श्रीवास्तव (स्वलिखित, मौलिक)

मौलिक रामकथा के मानसकार

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  मौलिक रामकथा के मानसकार         @ मानव गोस्वामी तुलसीदास जी ने  समाज को रामकथामृत देकर धन्य कर दिया; राम नाम के प्रति जिनकी आस्था  सावन मास के अंधे की तरह थी। राम की कृपा के प्रति  तुलसीदास जी की दीनता  और शरणागति है, यही उनका चरम पुरुषार्थ है। कृपा के मूल में पुरुषार्थ नहीं होता है,  अपितु पुरुषार्थ के मूल में  कृपा होती है। इसलिए मानस कृपासाध्य ग्रंथ है, साधन साध्य नहीं।  तुलसीदास जी की अपनी मौलिक दृष्टि है। प्रभु श्रीराम सांसारिक मर्यादा की अग्नि में श्रीसीता जी के लौकिक कलंकों को जलाकर मूल सीता को प्रकट कर दिया। माया जल गई  और त्रिदेवों द्वारा सेवित  उनकी आराध्या निर्मल सीता प्रकट हो गईं।  मानस सत्य प्रधान ग्रंथ न होकर शील प्रधान है। सत्य में अपने अहं का  रक्षण होता है और शील में दूसरे के अहं का। रामचरितमानस में साहित्य, व्याकरण, न्याय- द्वैत-अद्वैत  विशिष्टाद्वैत, द्वैताद्वैत आदि सिद्धांतों का प्रतिपादन  व्यावहारिकता को ध्यान में रखकर भक्ति रस के अनुपान में  किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने  श्रीरामचरितमानस को  सुस्पष्ट स्वरूप दिया है,  कहीं कोई भ्रम या द्वंद्व नहीं रखा है।

नागपञ्चमी

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  नागपञ्चमी        @ मानव सर्प पर्यावरण को संतुलित रखते हैं; कृषि के शत्रु और मानवता के  क्षतिकारकों का भक्षण करते रहते हैं और विष को आत्मसात करते हैं।  संसार के पालक विष्णु जी, उन्हें अपनी शय्या बनाए हैं तो देवों के देव महादेव, उन्हें हारतुल्य कंठ में डाले हैं। फिर वे पूज्य क्यों न माने जाएं? शेषनाग के रूप में पृथ्वी को धारण करते हैं  और वासुकि के रूप में  कष्ट उठाकर समुद्र मंथन में रज्जु का काम करते हैं; रावण जैसे राक्षसों के संहार में शेषावतार लक्ष्मण रूप से  श्रीराम की सहायता करते हैं। सर्पगण कश्यप ऋषि व उनकी पत्नी कद्रू की संतान हैं। जब ये मानवता को कष्ट देने लगे, ब्रह्मा जी ने वासुकि आदि को बुलवा कर डाँटा और अभिशप्त किया; सर्पों के अनुनय-विनय करने पर उन्हें रहने के स्थान सीमित किए और काटने की भी सीमा रेखाएं खींची; यह वृत्तांत नागपञ्चमी तिथि को हुआ।            ( वराह पुराण ) परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के डसने से हुई,  जिसका बदला लेने के लिए उनके पुत्र जनमेजय ने नाग यज्ञ किया; निर्दोष सर्प आ-आकर  यज्ञाग्नि में भस्म होने लगे; तक्षक इंद्र-सिंहासन के  पाये में लिपट गए; उनके यज्ञ कुं

हरियाली तीज

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  हरियाली तीज          @मानव नारी की संकल्प शक्ति का प्रतीक प्रकृति की उपासना व  भारतीय संस्कृति का प्राचीनतम अखण्ड सौभाग्य की  कामना का पर्व है। सावन की झीनी फुहार  दिलों को जोड़ने का त्योहार झूला झूलने के बहाने टूटे संपर्क जोड़ता दिल की श्रद्धा व सच्चे विश्वास को दृढ़तर करता है मेंहदी सजे हाथ खनकती चूड़ियाँ घेवर की मिठास के बीच  जन्म-जन्मांतर मिलन की आस को प्रगाढ़ करता  विष्णु कृपा व शिव आशीर्वाद को विश्वास में प्रकट करता है।  ~ मनोज श्रीवास्तव (मौलिक, स्वरचित)

संवेदनशीलता :लघुकथा

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लघुकथा संवेदनशीलता         @मानव मई माह का अंतिम सप्ताह, प्रचंड गर्मी शाम होते और विकराल पेड़ों का एक पत्ता भी नहीं हिल रहा। बच्चों की छुट्टी के साथ जेठ की लगन का जोर सारे यातायात के साधनों पर भीड़ का दबाव।आजमगढ़ से दिल्ली को लगभग सोलह सौ किमी अप डाउन करने वाली परिवहन निगम की एक्सप्रेस सेवा की यह बस जैसे ही डिपो पर रुकी चढ़ने और उतरने वाली सवारियों में धक्का मुक्की शुरू हो गई। कंडक्टर बार-बार चेतावनी दे रहा था "एक्सप्रेस बस है, चालीस किमी से पहले कोई स्टापेज नहीं है।बीच की सवारी न चढ़े।बीच की कुछ ग्रामीण सवारियाँ व्यवस्था को कोसते हुए उतर गई। फिर भी बस ठसा ठस थी। बस चली जरा हवा लगी कंडक्टर ने टिकट बनाना शुरू किया। उसने एक दो टिकट ही बनाए थे कि एक हृष्ट-पुष्ट युवक ने बीच के टिकट की माँग कर दी। कंडक्टर भड़क गया। "साहब मैंने पहले ही बता दिया था कि कादीपुर से पहले का कोई टिकट नहीं बनेगा। बस अभी डिपो से बाहर ही आई है। आप दूसरी गाड़ी पकड़ लीजिए।" भीषण गर्मी में पसीने से चुहचुहाता जवान दुगने आवेग में भड़क गया - "मैं बस से नहीं उतरूँगा और तुम्हे मेरा बरौंसा का ही टिकट बनाना प

अमृत काल का स्वर्णिम अध्याय

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  अमृत काल का स्वर्णिम अध्याय          @मानव उत्तरं यत् समुद्रस्य  हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः।।       (विष्णुपुराण 2.3.1) भारत के अस्तित्व का यह जयघोष भारत की नित्यनूतन  चिरपुरातन संस्कृति और परंपरा के वर्णन को  उद्धरित व लोक में व्याप्त करता है। स्वाधीनता का अमृत महोत्सव भारत की अस्मिता और गौरवशाली इतिहास की पुनर्स्थापना का उत्सव बन गया है, जिसने पूरे देश में  सकारात्मक ऊर्जा का  संचार किया है। यह एहसास दिलाने का उत्सव है कि भारत नूतन देश नहीं है  बल्कि हजारों वर्ष पुरानी  सभ्यता और संस्कृति वाला राष्ट्र है। भारत को प्रगति के पथ पर  ले जाने वाले विचारों को  आत्मसात करना, भारत को पूर्ण विकसित  देश बनाने के लिए  आवश्यक समाधान के विषय में चिंतन करना, भारत की प्रगति के लिए  कार्य योजना बनाकर अमल में लाना इसका उद्देश्य था। जनसंख्या, जो कुछ समय पहले तक  समस्या के रूप में देखी जाती थी, उसे एक बड़ी शक्ति के रूप में देखे जाने का उपक्रम  अमृत महोत्सव की उपलब्धि है। यह भारत का अपनी अस्मिता के लिए  वैश्विक जयघोष है; यह ऐसे युवा रचने का संकल्प है जो विश्व का नेत

उल्लू:लघु व्यंग

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लघु व्यंग्य   उल्लू           @मानव पूरे प्रदेश में [यू० पी०] बोर्ड की परीक्षाएं सबाब पर थीं। कस्बे के लब्ध प्रतिष्ठित विद्यालय के परीक्षार्थियों का सेण्टर तीन किमी दूर गाँव के इण्टर कालेज में था।सूर्य की लाली फूटने के साथ बच्चे साइकिल पर सवार उसी ओर भागे जा रहे थे।पक्की पर सूनी ग्रामीण सड़क अंततः आम व महुआ के एक विशाल बाग को पार कर स्कूल के सामने से गुजरती थी।इसी के पास एक पुलिया पर दो-तीन बच्चे अपने अभिभावकों के साथ बैठे उनसे निर्देश ग्रहण कर रहे थे।तभी मैं भी अपने दो मित्रों के साथ साइकिल से गुजरा।स्कूल सामने देख पुलिया के दूसरी ओर विश्राम करने व अपने शेष साथियों की बाट जोहने की नीयत से हम सभी वहीं ठहर गए।हमारा ध्यान बराबर सड़क के दूसरी ओर खड़े समूह पर गया जहाँ खड़े एक अभिभावक बच्चों को समझा रहे थे.... "बेहिचक पुर्जी से उतार लेना,मैंने यहाँ के मास्टरों से बात कर ली है,जरूरत पड़ने पर इनसे बाद में भी निपट लूँगा।मैं यहीं खड़ा रहूँगा।अगर बैच [उड़नदस्ता ] आ गया तो इस पुलिया से दिखते ही उल्लू की बोली लगाऊँगा और तुम लोग पुर्जी फेंक देना....।" [ क्योंकि दिन में उल्लू सोते हैं फलतः