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Showing posts from April, 2024

जय हनुमान

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हनुमान जन्मोत्सव पर जय हनुमान        @मानव हनुमान जी के दाएँ हाथ में सुशोभित गदा से काम,क्रोध,लोभ, मोह,मद मत्सर आदि छः विकारों के चूर्ण-विचूर्ण करने का भाव है। बाएँ कंधे पर राम हैं जिससे हृदय में उनकी दृढ़ धारणा करने का आशय लिया जाता है। विशेष रूप से खुले दोनों नेत्र से जाग्रत होने और अधोगामी विचारों व प्रवृत्तियों से दूर रहने का अर्थ लिया जाता है।  ✍️ मनोज श्रीवास्तव

रामकथा

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  रामकथा       @मानव 'राम' माने 'आत्म-ज्योति'; जो हमारे हृदय में प्रकाशित है, वही राम हैं; राम हमारे हृदय में जगमगा रहे हैं। हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियों और पाँच कर्मेन्द्रियों के प्रतीक राजा दशरथ, तथा जो कुशल हैं, उन माँ 'कौशल्या' के यहाँ ही श्री राम का जन्म हो सकता है, यानी जहाँ पाँच ज्ञानेन्द्रियों  और पाँच कर्मेन्द्रियों के  संतुलित संचालन की  कुशलता हो सकती है वहीं रामावतार सँभव है। राम उस अयोध्या में जन्में, जहाँ कोई युद्ध नहीं हो सकता; जब मन सभी द्वंद्व अवस्था से मुक्त हो, तभी हमारे भीतर ज्ञान रुपी प्रकाश का उदय होता है। राम हमारी 'आत्मा' हैं,  लक्ष्मण 'सजगता' हैं,  सीताजी 'मन' हैं, और रावण 'अहंकार' व 'नकारात्मकता' का प्रतीक हैं। मन का स्वभाव डगमगाना है, मन रूपी सीताजी सोने के मृग पर मोहित हो गईं; अहंकार रुपी रावण मन रुपी सीताजी का हरण कर उन्हें ले गया; इस प्रकार मन रुपी सीता जी, आत्मा रूपी राम से दूर हो गई। तब 'पवनपुत्र' हनुमान जी ने  सीताजी को वापस लाने में  श्री राम जी की सहायता की; विश्वास और सजगता की सहाय

शस्त्रधारी श्रीराम

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  शस्त्रधारी श्रीराम        @ मानव त्रेतायुग में जगदंबा ने उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया और द्वापर में श्रीकृष्ण ने  रणभूमि में दोहराया  'शस्त्रधारियों में मैं श्रीराम हूँ'। यानी प्रभु श्रीराम से बड़ा कोई शस्त्रधारी नहीं था। चारों युग में अद्भुत-दिव्य हैं  शस्त्रधारी श्रीराम,  समकालीन हों अथवा भक्त,  सभी एक ही बात कहते हैं,  'राम रमापति कर धनु लेहू..... प्रभु श्रीराम, जो दया के सिंधु तथा क्षमाशील हैं, समुद्र की तरह गंभीर एवं हिमालय की तरह धैर्यवान हैं, वे सज्जनों की रक्षा के लिए  कृत संकल्पित हैं; इसीलिए शस्त्र धारण करते हैं। शस्त्र ही उनकी मूल पहचान है। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम और सनातन राष्ट्र के पर्याय हैं; शास्त्रों में कहा गया है,  शस्त्रों द्वारा सुरक्षित राष्ट्र में ही चिंतन-मनन,तप,स्वाध्याय समेत शास्त्र का चिंतन मनन सँभव है। (' शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्र चिंता प्रवर्तते ') निशिचर हीन करौं महि भुज उठाय प्रण कीन्ह  वाली प्रतिज्ञा की चरितार्थता अस्त्र शस्त्र बिना असंभव है तभी तो तुलसी के राम प्रणम्य हैं नमामि रामम् रघुवंश नाथम्।  ✒️ मनोज श्रीवास्तव

दुर्गा महिमा

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  दुर्गा महिमा         @मानव देवाधिदेव महादेव भी जिस शक्ति से अनुप्राणित होते हैं और जिसके बिना स्पंदनाहीन होते हैं, वह परम शक्ति भगवती दुर्गा हैं, जो सबसे ऊपर हैं; उनके बिना शिव भी निःशक्त हैं। जो अपने अंगों में चिता की राख-भभूत लपेटे रहते हैं,  जिनका विष ही भोजन है,  जो दिगम्बरधारी हैं,  मस्तक पर जटा और कण्ठ में नागराज वासुकि को हार के रूपमें धारण करते हैं  जिनके हाथ में कपाल शोभित है, ऐसे भूतनाथ पशुपति भी जो एकमात्र 'जगदीश' की  पदवी धारण करते हैं, यह केवल दुर्गा से पाणिग्रहण की परिपाटी का फल है; जिससे उनका महत्त्व बढ़ गया। भगवान विष्णु भी उन आद्या शक्ति देवी के  अधीन कार्य करते हैं, जो भुवनेश्वरी हैं और त्रिभुवन संचालन करती हैं। भगवान श्रीराम ने भी रावण विजय के लिए देवी दुर्गा का पूजनकर  सफलता अर्जित की थी। माँ के नाना रूप,भेद,  वर्गीकरण और ध्यान मुद्राएँ हैं, जिनके सम्यक वर्णन की क्षमता शेष और शारदा में भी नहीं है; उन अनेक रूपा एक भगवती दुर्गा की महिमा अपरंपार है।  ✒️ मनोज श्रीवास्तव

शक्ति की उपासना

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  शक्ति की उपासना         @मानव शक्ति की उपासना भगवान भी करते हैं, देवता भी करते हैं और संत महात्मा भी करते हैं। शक्ति की पूजा अर्चना सभी मानव करते हैं, सभी विवेकवान करते हैं, सभी बुद्धिमान करते हैं और सभी चरित्रवान करते हैं। शक्ति की आराधना सैनिक करते हैं, सेनानायक करते हैं, व्यापारी करते हैं, श्रमिक करते हैं, छात्र करते हैं और राष्ट्रभक्त करते हैं। शक्ति की भक्ति में प्रकृति का अभिनंदन है,  नमन है और स्वागत है। शक्ति की स्तुति से मानव जीवन का कल्याण पथ प्रशस्त होता है; शक्ति का रहस्य गहरा है, जिसकी थाह नहीं है। शक्ति वस्तुतः माँ स्वरूपा है; प्रकृति माँ चराचर जगत की सृजक है, तो मातृशक्ति जीव की सर्जना है; इसलिए परमेश्वरी भी परमेश्वर की शक्ति है। मानव के अंदर शक्ति का प्रवाह होता है, वहीं शरीर के बाहर शक्ति का संचालन होता है; शक्ति के प्रवाह और संचालन का केंद्र हमारी आत्मा है, जो परमात्मा का अंश है। जो शक्ति को नहीं पूजता, वह मृतक के समान है; अतः जीवन-शक्ति को धारण करना मानव का परम कर्तव्य है। प्राणी मात्र शक्ति के स्रोत, ऊर्जा के उद्गम और चेतना के प्रवाह से स्थिर है; शक्ति की उपस्थिति

आदि शक्ति

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  आदि शक्ति        @मानव दुर्गा हमें ऊर्जा प्रदान करती हैं। ऊर्जा से हम अपनी खोज करें, दूसरों से प्यार करें और जहाँ तक हमारी पहुँच हो, हम दुनिया की सेवा करें।  शक्ति आराधना हम इसलिए करें ताकि हममें शक्ति प्रकट हो विश्व मंगल के लिए, विश्व के सुख के लिए। माँ शक्ति से प्रार्थना है कि सबका विकास हो, सब को विश्राम मिले। विश्राम के बिना विकास का कोई मूल्य नहीं है। नवरात्र पूजा तब होगी  जब घर में नवजात बेटी का  स्वागत हो, दहेज से मुक्ति हो, स्त्री का किसी भी स्तर पर  किसी भी तरह से अपमान न होने पाए। जगत के मूल में आदिशक्ति हैं, मगर वे अक्सर समझ में नहीं आती, माँ तभी समझ में आती है,  जब हम बच्चे बन जाते हैं; अत: भक्ति में शिशु-भाव होना चाहिए।    ( तुलसीदास ) विश्व का एकाक्षर मंत्र ‘माँ’ है, हमारी चेतना जब बहिर्मुख होती है, तब वह बुद्धि है; वही चेतना जब अंतर्मुखी बनती है तब वह श्रद्धा है। हम विविध होते हुए भी एक हैं, ऐसा भाव रखना भी देवी पूजा के समान ही है; गणेश विवेक का प्रतीक हैं,  कार्तिकेय पुरुषार्थ के; हमारे अंदर विवेक और पुरुषार्थ होगा तो हम भी अंबा की ही  संतान कहलाएंगे। राम कथा स्वयं का

नवरात्र साधना का संदेश

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  नवरात्र साधना का संदेश        @ मानव वासंतिक हो या शारदीय दोनों नवरात्र ऋतुराज परिवार के पर्व हैं; वासंतिक नवरात्र राजा है तो शारदीय नवरात्र राजकुमार। वासंतिक नवरात्र के राजा होने का प्राकृतिक संदेश है कि इसमें रात छोटी होने लगती है, यानी अंधकार कम प्रकाश अधिक होता है।  वसंत त्याग और सृजन की ऋतु है जो वर्ष भर पालित-पोषित पत्तों से मोह छोड़ देता है, नए पल्लव से नवसृजन का संदेश वसंत देता है। वासंतिक नवरात्र में ठंडक कम होना, वातावरण ऊर्जायुक्त होने का सन्देश है, यह आलस्य की शिथिलता से मुक्त होकर  कर्मठता की ओर बढ़ने का संदेश है। शारदीय नवरात्र में रात बड़ी होने का अर्थ है कि जब जीवन में अंधेरे की  अवधि लंबी हो तब भी प्रकृति के संदेश को  आत्मसात किए रहना चाहिए; रात के अंधेरे में साहस की ऊर्जा प्रज्वलित रखने का संदेश है।   रात्रिकाल दिन की अपेक्षा  शांतिकाल है, जहाँ नींद के रूप में विश्राम मिलता है, जो अगले दिन में सक्रिय रखने का सामर्थ्य प्रदान करता है; ' या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता ' की प्रार्थना  नवरात्र की अवधि का उपयोग साधना के लिए करने की प्रेरणा प्रदान करता है।

नववर्ष पर माँ की साधना

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  नववर्ष पर माँ की साधना        @ मानव हिंदुओं का वर्षारंभ " नास्ति मातृ समोगुरुः " पर आधारित है; गुरुरूपिणी माता की वंदना-उपासना से नए वर्ष का आरंभ होता है और वह भी नौ दिन पर्यंत।  दुर्गा माता तो विश्वेश्वरी, विश्वात्मिका,जगद्धात्री तथा जगत प्रसविनी हैं; दुर्गा ही सभी प्राणियों में चेतना,बुद्धि,निद्रा,क्षुधा, तृष्णा,शांति,लज्जा,श्रद्धा, कांति,स्मृति,दया,तुष्टि तथा भ्रांति रूप से व्याप्त हैं; यह सभी उस महाशक्ति की विविध रूपों में अभिव्यक्तियां हैं। इस दिन श्रद्धाभक्ति पूर्वक माता का स्मरण, भजन,पूजन,व्रत,यज्ञ, अनुष्ठान,उपवास आदि कृत्यों से मातृ देवो भव की उक्ति को चरितार्थ करते हैं।    ✍️ मनोज श्रीवास्तव

शक्ति साधना

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  शक्ति साधना पर्व पर शक्ति साधना         @मानव उद्भव,स्थिति और संहार अनवरत चलते रहने वाले सृष्टि में तीन कार्य हैं यही सृजन,पालन और विनाश भी हैं; इनका संचालन स्वतः होता है, पर शक्ति के अभाव में न सृजन संभव है, न पालन और न संहार,  क्योंकि शक्ति जगत के  अस्तित्व का मूल कारण है।  इसी उपादेयता के कारण  भारतीय संस्कृति में शक्ति साधना का महत्व है; शक्ति का अर्जन, संरक्षण और सदुपयोग  इसके उद्देश्य हैं। जिस शक्ति के बिना जीवन संभव नहीं, उसी के संरक्षण एवं सदुपयोग के बिना  आत्मकल्याण और लोककल्याण भी संभव नहीं है। देव और दानव संस्कृति में  विभेद का मुख्य हेतु यही है; इसी से कोई मानव भी दानव बन जाता है और दानव भी देव; अतः शक्ति का प्रयोजन लोकहित में उसका कल्याणकारी प्रयोग है। ऊर्जा ब्रह्माण्ड की केंद्रीय शक्ति है और उसके संचलन का आधार भी; इसीलिए सृष्टि के कण-कण में अपरिमित ऊर्जा व्याप्त है,  जिसका मानव ने विविध रूपों में अर्जन भी किया है। शक्ति के सुनियोजित एवं कल्याणकारी प्रयोग से  दुर्लभ अभीष्ट की प्राप्ति कर  विश्व को स्वर्ग से भी सुंदर  बनाया जा सकता है; यही मानवता की विजय  और पराजय का भी ह

सृष्टि सृजन का हर्ष

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  नव संवत्सर पर सृष्टि सृजन का हर्ष         @मानव धरती से लेकर गगन तक,  चहुँओर नव पल्लव की  सुगंध फैल रही है, प्रकृति की प्रसन्नता बूटे- बूटे में फैली है और मन उत्सुकता भरी  प्रतीक्षा में घिरा हुआ है, मानो खेत-खलिहानों ने  सुनहरे वस्त्र धारण कर लिए हैं; आँगन-ओसारे नवधान्य से  आच्छादित होने को उतावले हैं। प्रकृति ने कैसा अद्भुत श्रृंगार रचाया है। आम के बौर प्रौढ़ हो टिकोरे का आकार ले रहे हैं;  सेमल के पुष्पों ने धरा पर  जैसे मनभावन रंगोली बना दी है; हवा मंद सुगंधित है; यह तैयारी है नवसंवत्सर के स्वागत की।  यह नया प्रात है, नव प्रभात है; संपूर्ण सनातन आस्था में  उत्साह,उमंग,नव्यता की  प्राण-प्रतिष्ठा है; यह नूतन वर्ष सनातन गौरव की पुनर्स्थापना का वर्ष सिद्ध हो ऐसी कामना के साथ आकुल प्रतीक्षा है; सब मङ्गल मय हो यह अखिल विश्व की कामना है। चैत्र मास शुभ मुहूर्तों और पर्वों का मास है ब्रह्मा जी ने संपूर्ण सृष्टि का सृजन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के  सूर्योदय से किया था; पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक इसी दिवस पर हुआ; विक्रम संवत का नामकरण  सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर हुआ, उन्होने उज्जयिनी